- तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं मिली बेड, चली गई मरीज की जान

- शादाब ने अपने घर के सामने खाली मकान में दिया आसरा

- ऑक्सीजन के साथ करवाए जरूरी इंतजाम

GORAKHPUR: जिंदगी का हर पल खौफ के साए में गुजर रहा है। ऐसा मौका है जब अपने भी साथ निभाने से कतरा रहे हैं। जब कोरोना पॉजिटिव मरीजों को जिन्दगी में व जिन्दगी के बाद अपनों का साथ मिलना मुश्किल साबित हो रहा है वहीं ऐसे मुश्किल हालात में रोजेदार शादाब ने न सिर्फ मदद के लिए हाथ बढ़ाया है, बल्कि मरीज और तीमारदारों को अपने घर में रहने के लिए जगह भी दी। ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करवाया। इसके बाद शादाब के पूरे परिवार ने रोजा रखकर पूरी शिद्दत से तीमारदारी भी की है। मगर होनी को जो मंजूर था, वही हुआ। तमाम कोशिशों के बाद भी मरीज की जान नहीं बचाई जा सकी।

27 अप्रैल को बीआरडी रेफर

रामकोला कुशीनगर के रहने वाले शुभम की 55 वर्षीय मां कुछ दिनों से बीमारी चल रही थीं। पडरौना के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। जब कोई राहत नहीं मिली और सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ तो वहां के डॉक्टर्स ने उन्हें 27 अप्रैल को बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। यहां कोरोना जांच हुई। रिपोर्ट में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई। मेडिकल कॉलेज में एडमिट करने का प्रयास किया गया, लेकिन वहां बेड नहीं मिला। इसके बाद परिजनों ने शहर के कई और निजी अस्पतालों में एडमिट करने का प्रयास किया गया लेकिन वहां भी बेड नहीं मिला।

नहीं हो सका इंतजाम

इसी बीच मरीज का ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा। तो शुभम ने गोरखपुर में रहने वाले अपने दोस्त अविनाश से बात की। अविनाश ने अपने दोस्त शादाब को फोन किया और सारी दास्तान बयां की। शादाब ने ऐसी मुश्किल घड़ी में परिवार को अपने घर में पनाह दी। देर रात ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की। सिलेंडर का रेग्यूलेटर नहीं मिल रहा था तो दौड़भाग कर उसकी व्यवस्था की। दिन में ऑक्सीजन खत्म हो जाने पर गीडा से सिलेंडर भी रिफिल करवाया। वहीं शादाब दिनभर अस्पतालों में एक बेड पाने के लिए जद्दोजहद करते रहे। मगर बेड का इंतजाम न हो सका और बुधवार की शाम 55 वर्षीय महिला ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया।

खोली पड़े मकान में ठहराया

पेशे से इवेंट मैनेजर शादाब ने अपने मकान के सामने अपने खाली पड़े मकान में पीडि़त परिवार को ठहराया हुआ था। मरीज के साथ उनकी बेटी व पति भी ठहरे थे। शादाब मरीज व उसके परिवार को दवा व खाने पीने की हर चीज मुहैया करवा रहे थे। उनकी बस यही चाह रहे थे कि जल्द से जल्द मरीज को एक बेड मिल जाए और मरीज का सही ढंग से वक्त पर इलाज हो जाए। लेकिन इस मुश्किल की घड़ी में बेड का इंतजाम नहीं हो पाया और शुभम ने मां को सदा के लिए खो दिया।