गोरखपुर (ब्यूरो)। 10 अप्रैल को शक्ति आराधना के साथ रामनवमी (राम जन्मोत्सव) भी भक्ति भाव से मनाया जाएगा। मां दुर्गा के श्रृंगार के सामान का बाजार सज गया है और मंदिरों में जोर-शोर से सफाई हो रही है। चूंकि, भक्त शनिवार को शुभ मुहूर्त में मां दुर्गा की भक्ति में लीन हो जाएंगे। ऐसे में गोरखपुर के शक्तिपीठों को स्मरण भी जरूरी है। गोलघर स्थित काली मंदिर, तरकुलहा देवा, कालीबाड़ी, बुढिय़ा माई के दर्शन मात्र से भक्तों की मुराद पूरी हो जाती है। शक्तिपीठ के आशीर्वाद से गोरखपुर लगातार संवर रहा है। इसलिए नवरात्रि पर जानें कि गोरखपुर की सभी शक्तिपीठ की मान्यता क्या है

काली मंदिर, गोलघर: धरती फाड़कर निकली थीं मां काली

गोलघर स्थित काली मंदिर में नवरात्रि में पूजा करने वालों की भीड़ उमड़ती है। सड़क पर मेले जैसा माहौल हो जाता है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां जो प्रतिमा स्थापित है। वो धरती चीर कर निकली थी। बहुत पहले यहां जंगल हुआ करता था, उसी समय यहां धरती फाड़ कर एक मुखड़ा बाहर आया। जब इसकी खबर फैली तब लोग यहां आए और पूजा अर्चना शुरू की। श्रद्धालुओं की भीड़ और आस्था देखकर जंगीलाल जैसवाल ने यहां मंदिर बनवा दिया। इसके बाद यहां प्रतिदिन पूजा शुरू कर दी। मंदिर में प्रार्थना करने वालों की हर ख्वाहिश पूरी होती है। मंदिर के आसपास पूजन सामग्री की दर्जनों दुकानें सजती हैं। यहां भक्त दूर-दूर से आकर मां की पूजा करते हैं और उनकी हर मुराद पूरी होती है।

्रबुढिय़ा माई पूरी करती हैं हर मुराद

कुसम्ही जंगल के बीचोंबीच स्थित है बुढिय़ा माता का प्राचीन मंदिर। मान्यता है कि यहां दर्शन करने वालों की हर मुराद पूरी होती है। यह मंदिर एक नाले के दोनों तरफ बना हुआ है। इतिहास की बात करें तो यहां के लोगों का कहना है कि इस घने जंगल में बहुत पहले एक नाला बहता था। नाले पर एक लकड़ी का पुल था। एक दिन एक बारात आकर नाले के पास रुकी। वहां सफेद कपड़े में एक बूढ़ी महिला थी, उसने नाच करने वालों से अपनी कला दिखाने को कहा। नाच मंडली वालों ने उसका मजाक उड़ा दिया लेकिन बारात के साथ ही जा रहे एक जोकर ने बांसुरी बजाकर और नाच कर बुढिय़ा को दिखा दिया। इसके बाद बुढिय़ा ने जोकर से कहा कि वापस आते समय सबके साथ मत आना। बारात जब वापस लौटी तो जोकर पीछे चल रहा था। वो महिला पुल के पश्चिमी छोर पर खड़ी थी। जैसे ही बारात पुल पर पहुंची। वैसे ही पल टूटकर गिर गया और सभी बाराती नाले में गिर गए। इसके बाद वो बूढ़ी महिला अदृश्य हो गई। इसके बाद से ही यहां बुढिय़ा माता का मंदिर बन गया।

कालीबाड़ी मंदिर: पानी में मिली काली जी की मूर्ति

रेती चौक स्थित मां काली के इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। यहां के पुजारी पंडित उपेंद्र मिश्रा ने बताया, यहां पहले केवल संकट मोचन हनुमान मंदिर हुआ करता था। बहुत पहले की बात है, जब यहां नदी बहा करती थी और चारों ओर जंगल था, तभी एक दिन नदी में मां काली की मूर्ति पानी में बहती हुई दिखी। मूर्ति को देखकर ग्रामीणों ने उसे पानी में से निकालकर बाहर रखा। इसके बाद उन्होंने इस मूर्ति को संकट मोचन हनुमान जी के मंदिर में स्थापित कर दिया। इसके बाद से इसका नाम संकट मोचन कालीबाड़ी मंदिर पड़ गया। पुजारी ने बताया, जिन लोगों ने मूर्ति की स्थापना में भूमिका निभाई थी। उन्होंने आगे चलकर बहुत तरक्की की। यहां मां काली और हनुमान जी के अलावा दुर्गा जी, विष्णु जी, राधे कृष्णा आदि देवी देवताओं की मूर्तियां भी हैं।

तरकुलहा देवी सुनती हैं हर पुकार

यह मंदिर चौरीचौरा से लगभाग 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह मंदिर पूर्वांचल में आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां की मान्यता है कि क्रांतिकारी बाबू बंधु सिंह को माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था। वह यहां के घने जंगलों में रहकर माता की पूजा अर्चना करते थे और देश को अंग्रेजों से आज़ाद कराने के लिए अंग्रेजों की बलि माता को चढ़ाते थे। बाबू बंधु सिंह गोरिल्ला टेक्निक से अंग्रेजों को मारते थे। इसीलिए उनसे अंग्रेज भी डरते थे, पर एक दिन अंग्रेजों ने धोखे से उनको पकड़ लिया और फांसी की सजा सुना दी। जल्लाद ने जैसे ही उनको फंदे पर चढ़ाया, फंदा टूट गया। ऐसा लगातार 7 बार हुआ। फांसी पर चढ़ाते ही फंदा टूट जाता था। यह देखकर अंग्रेज भी आश्चर्यचकित रह गए। इसके बाद बाबु बंधु सिंह ने मां से गुहार लगाई कि हे मां मुझे अपने चरणों मे ले लो। फिर मां ने पुकार सुन ली और आठवीं बार में उन्होंने फंदा खुद पहन लिया और उनको फांसी हो गई। इस मंदिर में मुंडन, जनेऊ और अन्य संस्कार भी होते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर लोग यहां बकरे की बलि भी चढ़ाते हैं।