रोड की है अजीबोगरीब कहानी
ऐसा माना जाता है कि डीएम आवास से अंबेडकर चौराहे के बीच एक बंजारे की आत्मा भटकती है। रात में सुनसान होने पर वह गाड़ियों की सीट पर बैठ?जाता है। हरिओम नगर से अंबेडकर चौराहे तक लोगों को महसूस होता है कि सीट पर कोई बैठ गया है। यह वाकया 50 साल से ज्यादा पुराना वाकया है। तमकुही कोठी मैदान के पास से बसें चलती थीं। तमकुही कोठी मैदान में कुछ बंजारों का डेरा था। एक रात एक बंजारे के साथ बस वालों की मारपीट हो गई। बंजारे की हत्या करके ड्राइवर- खलासी में नाली में फेंक दिया। तभी से ऐसी धारणा है कि उसकी आत्मा भटक रही है। अक्सर ही लोगों को इस बात का अहसास होता है।

झाड़ियों में खनकती है पायल
डीडीयू में एक सिक्योरिटी गार्ड की मानें तो दीक्षा भवन के आसपास झाड़ियों से रात के सन्नाटे में पायल के खनकने की आवाज आती है। चूड़ी और पायल की आवाज रात के 12 बजे सुनाई पड़ती है। लेकिन झाड़ियों के बीच से आने वाली आवाज किसी का नुकसान नहीं करती है। यूनिवर्सिटी कैंपस में इस खनखनाहट को लेकर काफी चर्चा होती हैं लेकिन नौकरी जाने के डर से गार्ड इसका जिक्र अफसरों से कोई शिकायत नहीं करता है। पुराने सिक्योरिटी गार्ड इस बात को बखूबी जानते हैं।

रेलवे लाइन बिछाने में छूट गए थे पसीने
रेलवे स्टेशन के पूर्वी छोर पर एक बाबा का मजार है। वहां लोग मन्नतें मांगते है। रेलवे कर्मचारियों की मानें तो आजादी के पहले से ही रेलवे लाइन बिछाने का काम हो रहा था। बाबा की कब्र के ऊपर से पटरियां बिछाई गई तो वह अपने आप उखड़ने लगी। अंग्रेज इंजीनियर काफी परेशान हो गए तो किसी ने बताया कि यहां आत्मा बसती है। हालांकि उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया। कई बार कोशिश हुई लेकिन कामयाबी नहीं मिली। उसके बाद अंग्रेज अफसरों ने पटरियों के उखड़ने वाले स्थान को छोड़कर लाइन बिछाई गई तो सफलता मिली।

और जब धूं धू कर जलने लगा परदा
सिटी के एक सिनेमा हाल की भी अजीबो गरीब कहानी है। बताया जाता है कि फिल्म चलते ही परदे पर आग लगने लगी। थियेटर के मालिक और कर्मचारी परेशान हो गए। लोगों ने बताया कि परदे वाली जगह पर कोई आत्मा बसती है। बाद में थियेटर के स्थान में थोड़ा परिर्वतन करके मजार बनाई गई। तब कहीं जाकर फिल्म का प्रदर्शन हो सका। तभी से थियेटर के पास बने मजार पर पूजा पाठ होती है।

यहां जाना मना है -

सिटी का वीआईपी एरिया तारामंडल, यहां अपना घर बनाने का सपना हर आंखों में सजता है। सिटी का विकास करने वाले डिपार्टमेंट जीडीए भी लगभग एक दशक पहले इसी एरिया में बनी एक आलीशान बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ। आलीशान बिल्डिंग के दो गेट थे। एक एंटर और दूसरा एग्जिट। मगर एंटर गेट पर कुछ माह में ही ताला लग गया। क्योंकि इस गेट के आसपास कुछ था। जिसने इस गेट से एंटर किया, या तो उसका ट्रांसफर हो गया या फिर वह किसी हादसे का शिकार हुआ। यह बात धीरे-धीरे जीडीए के इंप्लाई के साथ आसपास के इलाके में फैल गई। फिर क्या था, लोगों ने उस गेट के आसपास फटकना भी बंद कर दिया। जीडीए के बड़े अधिकारी दबी जुंबा से इस बात को मानने लगे और आखिर गेट में ताला पड़ गया। आज भी जीडीए का यह गेट बंद है।

अंधविश्वास या हकीकत -

ऐसा माना जाता है जीडीए की बिल्डिंग जिस जमीं पर बनी है, वहां कुछ तो है। वरना सबसे सेफ कहे जाने वाली जॉब में से एक सरकारी दफ्तर जहां काम करने वाले लोगों पर हमेशा डर का साया बना रहता है। कभी ट्रांसफर का खतरा तो कभी सस्पेंड का डर। यहीं नहीं जिंदगी पर भी मौत का साया बना रहता है। क्योंकि जीडीए की बिल्डिंग जिस जमीं पर बनी है, वहां कभी जंगल था। जिसका यूज अक्सर बदमाश लूट, हत्या और बॉडी छिपाने के लिए करते थे। यही वजह है कि यहां आत्मा बसती हैं। इस बात को भले ही कोई खुली जुबान से न कहता हो, मगर 2006 में तत्कालीन डीएम डॉ। हरिओम के आदेश पर जीडीए के तत्कालीन सेक्रेट्री विजय बहादुर सिंह की ओर से कराया गया शतचंडी यज्ञ हकीकत बयां करता है। इस यज्ञ के बाद जीडीए का एंट्री गेट हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। इस गेट से जीडीए का जो भी इंप्लाई एंटर करता था, उसका या तो ट्रांसफर, सस्पेंसन या फिर कोई घटना जरूर होती थी। नगर निगम से जब ऑफिस बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ तो दो साल के अंदर 15 इंप्लाई या इंजीनियर सस्पेंड हो गए और एक दर्जन से अधिक कर्मचारियों के साथ अनेक हादसे हुए। इसके बाद 2010 में जीडीए के इंजीनियर शैलेंद्र मिश्र ने राप्ती में कूद कर सुसाइड कर लिया। यहीं नहीं पिछले तीन साल में दो दर्जन से अधिक इंजीनियर, क्लर्क सस्पेंड हो चुके हैं। इस गेट की भयावता का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है, मार्च में एक फोर्थ क्लास इंप्लाई ने इस बंद गेट को खोला था, मगर कुछ दिन बात ही उसकी मौत हो गई। हालांकि जीडीए के अफसर इसे एक संयोग मात्र बता रहे हंै।

हाइलाइट में लेना मस्ट है
2006 में तत्कालीन डीएम डॉ। हरिओम के आदेश पर जीडीए के तत्कालीन सेक्रेट्री विजय बहादुर सिंह की ओर से कराया गया शतचंडी यज्ञ हकीकत बयां करता है। इस यज्ञ के बाद जीडीए का एंट्री गेट हमेशा के लिए बंद कर दिया गया।


थाने पर किसका साया
कहते है खाकी के सामने भूत भी भागते हंै,  लेकिन सिटी का एक ऐसा थाना है जहां पुलिस कर्मियों को किसी साए का एहसास होता है। जी हां शाहपुर थाना। जहां कुछ समय पहले तक वहां पर तैनात पुलिसकर्मी अक्सर बीमार रहते थे और उन्हें थाने कैंपस में किसी अनजान साए की मौजूदगी में भी डर सताता था।
कहा जाता है कि थाने में ऐसा माहौल कस्टडी डेथ के बाद शुरू हुआ। तत्कालीन एसओ संजय सिंह के कार्यकाल के दौरान एक आरोपी ने हवालात में जान दे दी थी। इसके बाद शाहपुर थाने में तैनात एस नाम से शुरू होने वाले पुलिस कर्मियों आए दिन परेशान रहते थे। यहीं नही कई साल पहले जन्माष्टमी के दिन थाने में नौटंकी के दौरान एक डांसर को एक पुलिस कर्मी ने गोली मार दी थी, जिससे उसकी मौत हो गई थी।

मंदिर निर्माण से कराया दोष मुक्त
लगातार कई सालों से परेशानी झेलने के बाद पुलिस कर्मियों ने थाने कैंपस को दोष मुक्त कराने के लिए वहां मंदिर निर्माण का फैसला लिया। थाने के कैंपस में हनुमान जी का मंदिर बनवाया गया। तब जाकर कैंपस में अंजान साए से लोगों को कुछ हद तक राहत मिली।

 

report by : Team inext