गोरखपुर (ब्यूरो)।इस वॉर में गोरखपुर के वीरों ने बैकबोन की तरह काम किया था। इसमें कुछ सैनिकों को देश के लिए अपनी शहादत भी देनी पड़ी थी। भारत-पाक युद्ध में जहां अपनों को खोने का गम है। वहीं, शहदात का भी फक्र है।

गोरखपुर से हुए थे तीन शहीद

1971 की लड़ाई में गोरखपुर के तीन वीरों ने अपनी शहादत दी थी। इसमें इंडियन नेवी में सीमैन के पद पर तैनात गोरखपुर के अशोक कुमार त्रिपाठी 9 दिसंबर 1971 को आईएनएस खुकरी के डूबने में शहीद हो गए। इस हादसे में कालेसर के रहने वाले सीमैन रामवृक्ष सिंह भी शहीद हो गए थे। इसके अलावा गार्ड रेजिमेंट में तैनात गोला बाजार के राम नवल शुक्ला ने भी इस युद्ध में अपनी शहादत दी थी।

रावि नदी पर बनाया था पुल

गोरखपुर के प्रेम नारायण शर्मा बंगाल इंजीनियर ग्रुप में स्टॉक होल्डर के पद पर तैनात थे। उन्होंने बताया कि उस समय पूरी टीम का एक ही टारगेट था दुश्मन पर विजय। साथ ही शक्करगढ़ जाने के लिए जब कोई रास्ता नहीं था तब उनकी टीम ने रावि नदी पर पुल बनाया था। इसके बाद भारतीय सेना ने नदी पार किया।

गोरखपुर से कई सैनिक शामिल

1971 के युद्ध में गोरखपुर के लगभग 100 सैनिकों ने भाग लिया था। इसमें कुछ ने बैकबोन की तरह काम किया था। इसमें इलेक्ट्रिकल मेकैनिकल इंजीनियर के ईश्वर लाल की टीम सिविल ड्रेस में बॉर्डर पर नजर रखती थी तो वहीं इंडियन आर्मी में वायरलेस ऑपरेटर बीएन पोद्यार आर्मी को सिग्नल देते हुए आगे बढ़े थे।

क्यों मनाया जाता है विजय दिवस?

भारत में हर साल 16 दिसंबर को 'विजय दिवसÓ के रूप में मनाया जाता है। यह वो दिन है जब भारतीय सैनिकों ने अपनी वीरता और साहस से पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को घुटनों पर ला दिया और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश को बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई।

लोकसभा में हुई थी घोषणा

यह युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक रहा और पाकिस्तान को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। इसमें पाकिस्तान के कई हजार सैनिकों की मौत हुई थी। जब भारत को विजय मिली तब इंदिरा गांधी संसद भवन के अपने दफ्तर में एक टीवी इंटरव्यू दे रही थीं। तभी जनरल मानेक शॉ ने उन्हें बांग्लादेश में मिली शानदार जीत की खबर दी। इंदिरा गांधी ने लोकसभा में शोर-शराबे के बीच घोषणा की कि युद्ध में भारत को विजय मिली है। इंदिरा गांधी के इस बयान के बाद पूरा सदन जश्न में डूब गया।