अध्ययन बताता है कि पहले तो भारत में महिलाओं के वज़न और उनकी सामाजिक-आर्थिक हैसियत के बीच वैसा ही रिश्ता था जैसा कि आमतौर पर होता है। यानी ग़रीबों के बीच कम वज़न की समस्या थी और अमीरों में अधिक वज़न की।

लेकिन ताज़ा आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में भी निम्न सामाजिक-आर्थिक हैसितय वाले परिवारों की महिलाओं में भी अधिक वज़न की समस्याएँ पैदा हो रही हैं। ठीक वैसी ही जैसी कि विकसित या अमीर देशों में होती है।

अमरीकन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अध्ययन के अनुसार भारत में निम्न सामाजिक-आर्थिक हैसियत वाले परिवारों में कम वज़न और अधिक वज़न दोनों ही तरह की समस्याएँ हैं।

समस्या

शोधकर्ताओं का कहना है कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सामान्य से कम और सामान्य से अधिक वज़न की समस्या का एक साथ मौजद होना साधारण बात है लेकिन भारत को जल्दी ही ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है जिसमें निम्न आय वर्ग की महिलाओं में सामान्य से कम और सामान्य से अधिक वज़न की समस्या एक साथ दिखाई पड़े।

शोधकर्ताओं ने बीएमआई के आधार पर ये अध्ययन किया है। बीएमआई यानी बॉडी मास इंडेक्स। इससे ये पता चलता है कि आपके क़द और वज़न का अनुपात कैसा है। यदि बीएमआई 18.5 से कम है तो वज़न सामान्य से कम माना जाता है जबकि बीएमआई 18.5 से अधिक होने पर वज़न सामान्य से अधिक माना जाता है।

अध्ययन के लिए भारत में वर्ष 1998-1999 के और वर्ष 2005-2006 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों की तुलना की गई है।

अध्ययन के नतीजे कहते हैं कि वर्ष 98-99 से 05-06 के बीच सामान्य से कम वज़न वाली महिलाओं की संख्या में तीन प्रतिशत की कमी आई लेकिन इसी दौरान सामान्य से अधिक वज़न वाली और मोटापे की शिकार महिलाओं की संख्या में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

अधिक वज़न वाली या मोटापे की शिकार महिलाओं की संख्या वर्ष 98-99 में 18.8 प्रतिशत थी जो 05-06 में बढ़कर 24.4 प्रतिशत हो गई थी। ये अध्ययन अमरीकन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के तीन वैज्ञानिकों एसवी सुब्रमण्यम, जेसिका एम पर्किंस और काशिफ़ टी ख़ान ने किया है।

अपने शोध पत्र में उन्होंने लिखा है, "जिस समय भारत में सामान्य से अधिक वज़न की समस्या धीरे-धीरे बढ़ रही है उसी समय सामान्य से कम वज़न वालों की संख्या में कोई कमी नहीं दिखती। इससे भारत में वज़न बढ़ने की वैज्ञानिक स्थिति का पता चलता है."

शोधकर्ताओं का कहना है, "भारत को ऐसी नीति बनाने की ज़रुरत है जिससे सामान्य से कम वज़न की स्थाई समस्या से निपटा जा सके और साथ ही वज़न बढ़ने की उभरती समस्या का हल भी तलाश किया जा सके."

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