क्या है लोक अदालत
लोक अदालत किसी भी केस को सुलह समझौते के आधार पर निस्तारित कराने का वैकल्पिक मंच है। इसमें सिविल के सभी केस और क्रिमिनल के छोटे केस का निस्तारण सुलह समझौते के आधार पर किया जाता है। इसके फैसले को कोर्ट का निर्णय माना जाता है। जिसे कोर्ट की डिग्री की तरह सभी पक्षों को मानना अनिवार्य होता है। इसके फैसले के खिलाफ किसी कोर्ट में अपील नहीं हो सकती है।लोक अदालत से है दोहरा फायदा
लोक अदालत से दोहरा फायदा है। इससे आम वादकारी कोर्ट के चक्कर लगाने से बच रहे हैं। उनको जल्द न्याय मिल रहा है। कई साल पुराने केस निस्तारित हो रहे हैं। वहीं कोर्ट से मुकदमों की पेंडेंसी कम हो रही है। आपको बताते दें कि देश में मुकदमों की पेंडेंसी में कानपुर कोर्ट नम्बर वन है। यहां पर करीब 1.30 लाख मुकदमे पेंडिंग हैं। लोक अदालत से मुकदमों की पेंडेंसी कम हो रही है। वहीं जल्द न्याय मिलने से वादकारी को भी राहत मिल रही है।
कैसे दर्ज करा सकते हैं केस
लोक अदालत में अपना केस दर्ज कराने के लिए आपको किसी वकील की जरूरत नहीं है। आप खुद शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके लिए आपको एक सादे कागज पर एप्लीकेशन देनी होती है। जिसके बाद लोक अदालत में आपके केस की सुनवाई की जाती है।
सुलह समझौते से निस्तारण
लोक अदालत में मुकदमों का निस्तारण सुलह समझौते के आधार पर किया जाता है। क्रिमिनल केस में जुर्म स्वीकार करने पर आरोपी को जुर्माने की सजा सुनाई जाती है। जिसे अदा कर आरोपी जेल से छूट सकता है। वहीं उत्तराधिकारी, पारिवारिक विवाद के केस में दोनों पक्षों के बीच सुलह करायी जाती है। जिसमें उनकी रजामंदी से केस को निस्तारित कर दिया जाता है। इसी तरह सिविल के केस का भी निस्तारण होता है।
इन मामलों में होती है सुनवाई
लोक अदालत में सिविल के सभी केस और क्रिमिनल के छोटे केस का निस्तारण किया जाता है। इसके साथ ही 138 एनआई एक्ट, बैैंक के ऋण, बिजली चोरी, उत्तराधिकारी वाद, स्टाम्प वाद, राजस्व से जुड़े मामले, पारिवारिक विवाद, लेबर कोर्ट के केस और एसीएम कोर्ट से जुड़े केस की सुनवाई होती है।
एक महीने में तीन से चार बार
जिला कोर्ट में महीने के पहले और तीसरे रविवार को मेगा लोक अदालत लगती है। एक मेगा लोक अदालत में तीन से चार हजार मुकदमों में सुनवाई कर फैसला सुनाया जाता है। इसमें अर्थदंड और मुआवजा के रूप में लाखों रुपए दिलाए जाते हैं। वकील और वादकारी जल्द न्याय के लिए लोक अदालत की तारीख का इंतजार करते हैं।
जेल में भी लगती है लोक अदालत
जेल में कई बंदी ऐसे है, जिनके परिजन उनकी पैरवी नहीं करते हैं। जिसके चलते वह जेल से नहीं छूट पाते हैं। ऐसे बंदियों के लिए जेल में भी लोक अदालत लगाई जाती है। जिसमें जज जेल में जाकर मुकदमों की सुनवाई कर निर्णय सुनाते हैं। जेल अधीक्षक पीडी सलोनिया ने बताया कि जेल में लोक अदालत से बंदियों को काफी राहत मिलती है। इसके जरिए कई बंदी रिहा हो चुके हैं।
प्रचार-प्रसार के लिए लगते हैं कैम्प
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण लोक अदालत के प्रचार प्रसार के लिए जगह जगह कैम्प का आयोजन कर रहा है, ताकि लोग लोक अदालत का फायदा उठा सकें। पूर्व संयुक्त मंत्री विनय अवस्थी का कहना है कि अभी भी ज्यादातर लोगों को लोक अदालत के बारे में मालूम नहीं है। जिसके चलते वे कोर्ट के चक्कर लगाने को मजबूर हैं। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिए लगने वाले कैम्प में लोगों को लोक अदालत के बारे में बताया जाता है।
लौटा दी जाती है कोर्ट फीस
लोक अदालत में सुलह समझौते के आधार पर निस्तारित केस की कोर्ट फीस भी लौटा दी जाती है। इसके साथ ही यहां पर अन्य कोर्ट की अपेक्षा कम जुर्माना लगाया जाता है। जिससे वादकारी और आरोपी को काफी राहत मिलती है। इसके अलावा जो केस कोर्ट के समक्ष नहीं आए हैं, उन्हें भी प्री लिटीगेशन स्तर पर बिना केस दायर किए निस्तारित कराया जा सकता है।
19849 केस निस्तारित, 8.27 करोड़ मुआवजा
जिला कोर्ट कैम्पस में पिछले आठ महीने में 24 लोक अदालत लगी। जिसमें 19847 केस निस्तारित किए गए है। जिसमें 8.27 करोड़ से ज्यादा रुपए अर्थदंड या मुआवजा के तौर पर वसूला गया है। इसी तरह जेल में लगी 31 लोक अदालत में 145 केस निस्तारित किए गए.
किसको मिलती है नि:शुल्क सहायता
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तहत अनुसूचित जाति, जनजाति के सदस्य, अनैतिक अत्याचार के पीडि़त, महिलाओं, बच्चों, मानसिक रोगी, विकलांग, शहीद सैनिक के आश्रित, औद्योगिक श्रमिक, बंदियों और अस्पताल में एडमिट व्यक्ति को नि:शुल्क हेल्प करने का नियम है.
Figures speak
लोक अदालत का विवरण
महीना केस निस्तारित मुआवजा/अर्थदंड
अगस्त-12 3649 2268 1,93,22,876
सितंबर-12 4652 2562 93,30,315
अक्टूबर-12 4822 2832 50,00,870
नवंबर-12 3523 2273 1,22,46,879
दिसंबर-12 3638 2538 32,66,413
जनवरी-13 3657 2579 64,06,010
फरवरी-13 2826 1184 21,35,570
मार्च-13 5076 3594 2,22,10,937
"लोक अदालत से कोर्ट की पेंडेसी कम हो रही है। साथ ही सालों से कोर्ट के चक्कर लगा रहे लोगों को जल्द न्याय भी मिल रहा है। लोक अदालत जल्द न्याय पाने का बेहतर विकल्प है। इससे आम वादकारी को राहत मिल रही है। राजस्व में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। "
विनय अवस्थी, पूर्व संयुक्त मंत्री बार एसोसिएशन
"लोक अदालत से कोर्ट का बोझ कम होने के साथ बड़ी संख्या में वादकारियों को राहत मिल रही है। मेगा लोक अदालत में तो एक तारीख में हजारों केस सॉल्व हो जाते हैं। इससे सालों से जेल में बन्द बंदी छूट रहे हैं। जेल का भी बोझ कम हो रहा है। "
रुद्र प्रताप सिंह, एडवोकेट