कानपुर (ब्यूरो)। संसद में महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण देने का कानून पास हो चुका है। हालांकि यह व्यवस्था नए परिसीमन के बाद साल 2029 से लागू होगी। महिलाओं की भागीदार बढ़ाने के लिए सभी राजनीतिक दल बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेकिन हकीकत में वो महिलाओं को कितनी राजीनतिक भागीदारी देना चाहते हैं, आंकड़े इसकी पोल खोल देते हैं। अगर कानपुर की बात करें तो पहले आम चुनाव से अब तक 74 साल बीत चुके हैं लेकिन शहर को सिर्फ एक महिला सांसद मिली है। पिछले 34 साल से कानपुर को महिला सांसद का इंतजार है। ये इंतजार इस बार भी पूरा होने वाला नहीं है। क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल ने महिला प्रत्याशी नहीं उतारा है।

बढ़ रही है जागरूकता
लोक सभा इलेक्शन में आधी आबादी ने भागीदारी और बढ़ाई है। जागरूकता बढऩे से वोटर लिस्ट में मेल की अपेक्षा फीमेल वोटर ने अधिक नाम शामिल कराए हैं इससे वोटिंग परसेंटेज में भी सुधार होने की संभावना है। कानपुर के राजनैतिक इतिहास में आठवें लोकसभा इलेक्शन 1989 में शहर को पहली महिला सांसद सीपीआई (एम) पार्टी से सुभाषिनी अली मिली थी। हालांकि, लोकसभा अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। जनतादल की सरकार गिर गई और 1991 में दोबारा लोकसभा इलेक्शन हुए। जिसमें सुभाषिनी अली प्रत्याशी तो थीं लेकिन बीजेपी की लहर में वह बुरी तरह हार गईं।

90 के बाद से बीजेपी व कांग्रेस का कब्जा
90 का दशक कानपुर के राजनीतिक परिदृश्य का टर्निंग पॉइंट था। मंदिर आंदोलन का असर दिखा। 1991, 1996 और 1998 में बीजेपी के जगतवीर सिंह द्रोण कानपुर लोक सभा सीट से जीत कर दिल्ली पहुंचे थे। इसके बाद 1999 में कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल ने बीजेपी प्रत्याशी को हरा दिया और लगातार तीन इलेक्शन जीतकर श्रीप्रकाश केंद्र में गृहराज्य मंत्री और कोयला मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने। 2014 की मोदी लहर में कद्दावर मुरली मनोहर जोशी ने श्रीप्रकाश को 2.22 लाख वोटों से हराया। 2019 में सत्यदेव पचौरी ने फिर श्रीप्रकाश को 1.55 लाख वोटों से हराया।

बढ़ रहा फीमेल वोटर्स का वोटिंग परसेंटेज
इलेक्शन में आधी आबादी अब अपनी मजबूती के साथ सरकार चुनने में अहम रोल अदा कर रही है। पिछले इलेक्शन को देखते हुए 2014 और 2022 के लोक सभा व विधान सभा इलेक्शन में फीमेल वोटिंग परसेंटेज में 5 प्रतिशत का इजाफा भी हुआ है। जबकि मेल वोटर्स का वोटिंग परसेंटेज केवल 3 प्रतिशत ही बढ़ा है। लोक सभा इलेक्शन 2024 में फीमेल वोटर प्रत्याशियों के भाग्य विधाता भी बन सकती है।