कानपुर(ब्यूरो)। रोड सेफ्टी जागरुकता के नाम पर सिर्फ मजाक हो रहा है। शासन के आदेशों का पालन करने के लिए कुछ कार्यक्रम आरटीओ, ट्रैफिक पुलिस व सामाजिक संस्थाओं की तरफ से कर दिए जाते हैैं। इन कार्यक्रमों के नाम पर करोड़ों रुपए स्वाहा हो जाते हैैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता। इसका प्रमाण है रोड एक्सीडेंट व उसमें होने वाली मौतों पर अंकुश नहीं लग रहा है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि एनसीआरबी का रिकार्ड है। देश में कानपुर ऐसा शहर है, जहां एक्सीडेंट में होने वाली मौतों की संख्या देश के अन्य सभी शहरों में अव्वल है। सडक़ पर जिस तरह से बेततरतीब ट्रैफिक, ओवरलोड व डग्गामर वाहन चलते है, वह साफ बताते है कि जिस तरह से कोरथा गांव में आज मातम है वैसी पुनरावृत्ति फिर हो सकती है। सीएम योगी भी रोड सेफ्टी के लिए चिंतित हैैं, लेकिन जब तक जिम्मेदार विभाग ईमानदारी से लोगों को ट्रैफिक के प्रति जागरूक नहीं करेंगे, कुछ नहीं बदलने वाला। और तो और रोड सेफ्टी नियमों को पालन कराने के लिए आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस को जो उपकरण दिए गए है वह खड़े धूल खा रहे हैैं। अब इसका जवाब कोई देने वाला नहीं हैै।

इंटरसेप्टर हो गई कंडम
ट्रैफिक नियमों को फॉलो कराने व ट्रैफिक नियमों का उलंघन करने वालों पर अंकुश लगाने के लिए कुछ वर्षो पहले शासन की तरफ से आधुनिक तकनीक से लैस लाखों की लागत से इंटरसेप्टर आरटीओ व ट्रैफिक पुलिस को मुहैया कराई गई थी। जिनकी मौजूदा दशा यह है कि आरटीओ की इंटरसेप्टर कार्यालय में लगभग कंडम खड़ी है। वहीं ट्रैफिक विभाग की दोनों इंटरसेप्टर में लगे सभी आधुनिक सिस्टम मेंटीनेंस न होने से खराब हो गए है। लिहाजा अब यह कार्रवाई नहीं बल्कि पेट्रोलिंग के काम आ रही है।

प्लान 10 दिनों का, प्रोग्राम दो दिन होता
आरटीओ हो या फिर ट्रैफिक विभाग शासन के सख्त होने के बाद रोड सेफ्टी अभियान का प्लान दो 10 दिनों का लिखा पढ़ी में बना लेता है लेकिन यह अभियान दो से तीन दिन चलने के बाद फाइलों में सिमट जाते है। इन दो-तीन दिन जागरूकता के नाम पर खानापूरी होती है। बीते वर्ष ट्रैफिक मंथ में चलाए गए अभियान में यहीं खेल हुआ था। जिसमें एक माह में महज 15 दिन ही स्कूलों, चौराहों, कार्यालयों में रोड सेफ्टी अवेयर प्रोग्राम चलाए गए थे। अभियान का परिणाम क्या रहा यह देखने की फुरसत जिम्मेदार अफसरों को नहीं रही।

धक्का मारने के बाद होती स्टार्ट
आरटीओ व नगर निगम को शासन की तरफ से रोड सेफ्टी प्रोग्राम के तहत प्रचार-प्रसार वाहन मुहैया कराए गए है। जो प्रचार-प्रसार के लिए नहीं बल्कि बड़े प्रोग्राम में मंत्रियों को दिखाने के लिए ही भेजे जाते है। इस तरह के प्रोग्राम साल में एक दो बार ही होते है। यानी इन वाहनों का यूज साल में एक से दो बार ही होता है। ऐसे में ये वाहन खड़े-खड़े कंडम होने की स्थिति में है। लिहाजा अब उनको स्टार्ट करने के लिए धक्का मारना पड़ता है। फिर आधे घंटे स्टार्ट कर इंजन गर्म करने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद यह सडक़ पर भेजी जाती हैं।

ड्रिंक एंड ड्राइव में नहीं लगाम
रोड एक्सीडेंट के मुख्य दो प्रमुख कारणों में एक कारण ड्रिंक एंड ड्राइव भी है। जिसके खिलाफ आरटीओ की प्रवर्तन टीम व ट्रैफिक विभाग सिर्फ खानापूर्री के लिए अभियान चलाती है। ड्रिंक एंड ड्राइव के मामलों में कार्रवाई के आंकड़ों को देखा जाए तो ड्रिंक एंड ड्राइव पर कार्रवाई महज पांच परसेंट भी नहीं होती है। इसका मुख्य कारण ऑनलाइन चालान है। ड्रिंक एंड ड्राइव चेक करने के लिए ट्रैफिक पुलिस को मैनुअल ब्रीथ एनलाइजर के साथ जुटना पड़ता जो वह करती नहीं। कभी अभियान चला तो कुछ चालान करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है।

एक नजर में
2 ट्रेवलर प्रचार प्रसार वाहन आरटीओ डिपार्टमेंट के पास
1 इंटरसेप्टर आरटीओ डिपार्टमेंट के पास
2 इंटरसेप्टर ट्रैफिक डिपार्टमेंट के पास
1 साल में दो-तीन बार ही यूज होते प्रचार-प्रसार वाहन