शायद यही कारण है कि पाकिस्तानी स्टार शाहबाज सीनियर और माराडोना से प्रेरित सरदार लंदन ओलंपिक में उस दर्द को एक पदक में बदलने की उम्मीद कर रहे हैं।

बीबीसी से बातचीत में टीम के स्टार खिलाड़ी सरदार सिंह ने कहा, “वह बहुत ही बुरा दौर था। चिली से लौटने में काफी लंबा सफर था। हम सभी काफी दुखी थे। घर लौटने पर हमने हॉकी के मैच भी नहीं देखे। क्योंकि ओलंपिक देखने का दिल ही नहीं कर रहा था.” लेकिन इस बार सरदार सिंह अपनी टीम को लेकर काफी आश्वस्त हैं।

नॉब्स का असर

सरदार सिंह ने कहा, “माइकल नॉब्स के आने के बाद से हम अपनी परंपरागत आक्रामक हॉकी खेल रहे हैं। पूरी टीम एक यूनिट की तरह खेल रही है। ओलंपिक क्वालिफाइंग में भी हमने काफी अच्छे अंतर के साथ मैच जीते हैं.”

सरदार सिंह ने माना कि दिल्ली में हुए क्वालिफायर टूर्नामेंट में युवा टीम ने जबरदस्त खेल दिखाया था। हालांकि टीम ने कुछ गलतियां भी की। इन्हें सुधारा जा रहा है। उस प्रदर्शन के बाद टीम से सभी की उम्मीदें बढ़ गई हैं। जाहिर है कि टीम को और अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। ओलंपिक क्वालिफायर में सरदार सिंह 'प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट' चुने गए थे

जिम्मेदार सरदार

सरदार सिंह टीम की रणनीति का सबसे अहम हिस्सा है। सिरसा के इस दिलेर खिलाड़ी को भी टीम के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास है। सरदार सिंह ने बताया, “टीम के साथ लंबा अभ्यास करने के बाद मैं और संदीप व्यक्तिगत तौर पर भी करीब एक घंटा तैयारी करते हैं।

मैंने पाकिस्तानी खिलाड़ी शाहबाज सीनियर और माराडोना के इंटरव्यू पढ़े हैं। इन दोनों का कहना है कि जो खिलाड़ी टीम से अलग भी तैयारी करता है, वह बाकियों से बेहतर प्रर्दशन करता है और उसे बाकियों से अलग अधिक हासिल होता है.” सरदार सिंह अपना मनोबल बढ़ाने के लिए मैच से पहले माराडोना के बेहतरीन गोल का वीडियो भी देखते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं।

विरासत में हॉकी

हॉकी सरदार सिंह के परिवार का हमेशा हिस्सा रही है। बड़े भाई दीदार सिंह भी भारत के लिए खेल चुके हैं। सरदार यहां रहते हैं, वहां इस खेल का अच्छा माहौल है।

सरदार सिंह ने बताया, “मैंने अपने भाई को देख कर ही हॉकी खेलनी शुरू की और अपने खेल को निखारा। आज मैं जो कुछ भी हूं, बड़े भाई की ही बदौलत हूं। मेरे गांव में हॉकी का बहुत अच्छा माहौल है। हर दिन करीब 150 युवा खिलाड़ी वहां खेलते हैं। हमारे गांव ने दो ओलंपियन दिए हैं.”

सरदार सिंह ने कहा कि 2008 में राष्ट्रीय टीम का कप्तान बनना उनके करियर का सबसे बेहतरीन टाइम था। इसके अलावा वह इंटरनेशनल हॉकी फेडेरेशन की ऑल स्टार टीम में चुने जाने को भी अपनी उपलब्धि मानते हैं।

नुकसान होने से बचा

हालांकि एक समय ऐसा भी आया कि उन्होंने हॉकी छोड़ कर विदेश जाने का मन बना लिया था। ये वाकया वर्ष 2004 का है जब सरदार सिंह का चयन जूनियर हॉकी कैंप में हुआ था।

इस बारे में सरदार ने बताया, “मैं बंगलौर कैंप में था। टीम को पोलैंड जाना था। मेरा नाम टीम में था। वीजा भी लग चुका था लेकिन दिल्ली पहुंचने पर पता लगा कि मैं टीम से बाहर था। लेकिन बाद में परिस्थितियां ठीक होती गईं और मेरा टीम में नाम आने लगा.” आज सरदार भारतीय हॉकी टीम की मिडफील्ड की रीढ़ हैं।

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