माना जा रहा है कि वैज्ञानिक हिग्स कण की मौजूदगी के बारे में अब तक के सबसे ठोस सबूतों की जानकारी दे सकते हैं। इस बाबत अफवाहों का बाज़ार भी गर्म है। हिग्स बॉसन या God Particle विज्ञान की एक ऐसी अवधारणा है जिसे अभी तक प्रयोग के ज़रिए साबित नहीं किया जा सका है। अगर इसकी मौजदूगी के प्रमाण मिलते हैं तो ये पता लग सकेगा कि कणों में भार क्यों होता है। साथ ही ये भी पता चल सकेगा कि ब्रह्रांड की स्थापना कैसे हुई होगी। हिग्स बॉसन के बारे में पता लगाना भौतिक विज्ञान की सबसे बड़ी पहेली माना जाता रहा है।

इस बाबत लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर नामक परियोजना में दस अरब डॉलर खर्च हो चुके हैं। इस परियोजना के तहत दुनिया के दो सबसे तेज़ कण बनाए गए हैं जो प्रोटान से टकराएंगे प्रकाश की गति से। इसके बाद जो होगा उससे ब्रह्रांड के उत्पत्ति के कई राज खुल सकेंगे।

क्यों है हिग्स बॉसन महत्वपूर्ण

लीवरपूल यूनिवर्सिटी में पार्टिकल फिजिक्स पढ़ाने वाली तारा सियर्स कहती हैं, ‘‘हिग्स बॉसन से कणों को भार मिलता है। यह सुनने में बिल्कुल सामान्य लगता है। लेकिन अगर कणों में भार नहीं होता तो फिर तारे नहीं बन सकते। आकाशगंगाएं न होंती और परमाणु भी नहीं होते.ब्रह्रांड कुछ और ही होता.’’

भार या द्र्व्यमान वो चीज है जो कोई चीज़ अपने अंदर रख सकता है। अगर कुछ नहीं होगा तो फिर किसी चीज़ के परमाणु उसके भीतर घूमते रहेंगे और जुड़ेंगे ही नहीं। इस सिद्धांत के अनुसार हर खाली जगह में एक फील्ड बना हुआ है जिसे हिग्स फील्ड का नाम दिया गया इस फील्ड में कण होते हैं जिन्हें हिग्स बॉसन कहा गया है।

जब कणों में भार आता है तो वो एक दूसरे से मिलते हैं। हालांकि कणों में भार आने और उनके मिलने की बात समझ में आती है लेकिन अभी तक कोई प्रयोग हिग्स कणों की मौजूदगी का प्रमाण नहीं दे सका है। हिग्स सिद्धांत का प्रतिपादन 1960 के दशक में प्रोफेसर पीटर हिग्स ने किया था। हिग्स को भी इस समय जेनेवा बुलाया गया है इसलिए अफवाहें हैं कि कोई बड़ी घोषणा हो सकती है।

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