इस सेशन से ये नही चलेगा

स्कूली वैन में जरूरत से ज्यादा बच्चें भरना, म्यूजिक प्लेयर चलाना, निर्धारित से अधिक स्पीड में वैन चलाना इस शहर में आम नजारा है। लेकिन इस सत्र से अगर स्कूल वैन के ड्राइवर और कंडक्टर की ये मनमानी उन्हें सीधा हवालात पहुंचा सकती है। ट्रैफिक विभाग ने इसके खिलाफ सीधे एफआईआर करने का प्लान बनाया है। ट्रैफिक विभाग के सर्वे में सामने आई खामियों के बाद ही विभाग अलर्ट हो गया है। मंडे से विभाग ने सिटी के स्कूलों में लेटर भेजकर स्कूल ड्राइवर और कंडक्टर का डाटा भी मांगना शुरू कर दिया है। ट्रैफिक सेल पूरी तरह से स्कूलों के खुलने से पहले ये प्रॉसेस पूरा करना चाहता है।

पेरेंट्स की होगी काउंसलिंग

सीओ ट्रैफिक आरके नायक ने बताया कि डाटा कलेक्ट करने के बाद पेरेंट्स के लिए काउंसलिंग प्रोग्राम ऑर्गनाइज किया जाएगा। जिसमें उन्हें स्कूल वैंस में होने वाली खामियों के बारे में डिटेल से समझाया जाएगा। परेंट्स को ये भी क्लियर किया जाएगा कि वो जिस स्कूल वैन में अपने बच्चों को भेज रहे हैं उसके ड्राइवर और कंडक्टर का पूरा डिटेल जैसे मोबाइल नंबर, फोटो, आईडी प्रूफ अपने पास जरूर रखें। जिससे किसी दुर्घटना के बाद उन्हें आसानी से ट्रेस किया जा सके। स्कूली वैन में आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस से अटेस्टेड प्रोफार्मा भी चिपकाना जरूरी होगा।

59 रजिस्टर्ड, 2 हजार फर्जी

आप ये जानकार हैरान रह जाएंगे कि सिटी में सिर्फ 59 स्कूल वैन ही रजिस्टर्ड हैं जबकि करीब 2 हजार से ज्यादा स्कूल वैन यूं ही डग्गेमारी कर रही हैं। जिसका मतलब आरटीओ बातें और दावे तो बड़े-बड़े करता है लेकिन उनपर अमल नहीं करता। पेरेंट्स में अवेयरनेस की कमी और स्कूल प्रशासन की मिलीभगत से बच्चों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ हो रहा है। वैन चालक गाड़ी में 15 से 20 बच्चों को सामान की तरह ठूंस लेते हैं। जिससे कभी भी दुर्घटना होने का खतरा बना रहता है।

बच्चों के लिए pain तो लेना पड़ेगा

कई बार लोग अपनी फाइनेंशियल प्रॉब्लम, अत्यधिक व्यस्तता और दूसरे कई रीजंस के कारण बच्चे पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। और किसी भी पब्लिक कन्वेंस से उन्हें स्कूल भेज देते हैं।

कई पैरेंट्स ये कहते हैैं कि क्या करें स्कूल बस घर तक नहीं आती इसलिए जो साधन मिलता है उससे बच्चे को भेजना पड़ता है। कुछ लोग कहते है कि उनका बजट वैन की इजाजत ही देता है। पर जरा सोचिए कि अपनी सीमाओं के लिए बच्चे को रिस्क में डालना ठीक है। बच्चे के लिए पेन तो लेना ही पड़ेगा। बच्चे को माता या पिता अगर स्कूल छोडऩे जाएंगे तो उनका कॉन्फिडेंस लेवल ज्यादा होगा।

पेरेंट्स अपनी जिम्मेदारी को समझें

सिविल लाइंस स्थित हडर्ड स्कूल के प्रिंसिपल केवी विंसेंट का कहना है कि पेरेंट्स अपनी जिम्मेदारी को समझें, तो इस प्रॉब्लम को रोका जा सकता है। बच्चों को प्राइवेट कन्वेंस की जगह स्कूली बस से भेजें। या तो खुद ही बच्चे को स्कूल लाने ले जाने का काम करें। इससे बच्चों को अच्छा लगेगा और वो खुश व हेल्दी रहेंगे। उनका कहना है कि बच्चों के लिए पेरेंट्स को पेन तो लेना ही होगा।

बच्चों के मस्तिष्क पर पड़ता है इफेक्ट

साइकोलॉजिस्ट डॉ। उन्नति कुमार बताते हैं कि छोटी उम्र में बच्चों के साथ किसी भी प्रकार हरकत या छेड़छाड़ उनके माइंड पर डीपली इफेक्ट करती है। क्योंकि इस उम्र में अधिकतर बच्चे काफी सेंसटिव होते हैं। वो बातों को घर पर नहीं बताते और लेकिन अंदर ही अंदर उसके बारे में सोचा करते हैं। ऐसे में वो बच्चा जिसके साथ डेली टीजिंग हो रही है। वो धीरे-धीरे चिड़चिड़ा होने लगता है। उसके नेचर में अवॉयडनेस बढ़ती है। उसकी पढ़ाई पर तो असर पड़ता है इसके साथ ही बच्चे की तबियत भी खराब हो सकती है। बच्चे का करियर चौपट हो सकता है।

For your help

- बच्चों के लिए समय निकालें और संभव हो तो खुद उन्हें भेजने और लेने जाएं

- अगर ऐसा पॉसिबल न हो तो स्कूली बस से ही बच्चों को भेजें

- किसी कारण वैन से भेजना मजबूरी है तो ये चेक कर लें कि वैन आरटीओ के नॉम्र्स को फॉलो कर रही है।

- वैन के ड्राइवर का नाम, एड्रेस, मोबाइल नंबर और आईडी प्रूफ का डेटा अपने पास कलेक्ट कर लें।

- बच्चों से वैन ड्राइवर के बारे में डेली फीडबैक लेते रहें

- किसी प्रकार की गड़बड़ी सामने आने पर वैन चेंज कर दें और उसकी शिकायत नजदीकी पुलिस स्टेशन पर करें

safety norms for school vans

- वैन 12 साल से अधिक पुरानी नहीं होनी चाहिए (रजिस्टे्रशन की तारीख से कामर्शियल होनी चाहिए)

- स्कूल वैन पर चारों तरफ पीले रंग की 6 इंच चौड़ी पट्टी तथा आगे व पीछे की तरफ लाल रंग से स्कूल वैन लिखा होना चाहिए

- कोई भी वैन क्षमता से अधिक बच्चों को नहीं ले जाएगी।

- स्कूल वैन में फस्र्ट एड बॉक्स होना जरूरी है।

- स्कूल वैन में आग बुझाने का यंत्र होना जरूरी है।

- स्कूल वैन में सीट बेल्ट लगी होनी चाहिए।

- स्कूल वैन को निर्धारित गति सीमा में ही चलाया जाएगा।

- ड्राइवर अनुभवी और उसके पास प्रॉपर ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए।

ये है परमिट प्रॉसेस

प्राइवेट से कॉमर्शियल में कनवर्जन फीस - 50 रुपए

फिटनेस फीस- 320 रुपए

मंथली टैक्स - 770

परमिट आवेदन फार्म - एसआर 20

परमिट के लिए आवेदन फीस - 1100 रुपए

परमिट की अवधि - 5 वर्ष

परमिट शुल्क - 6000

पूरी तरह से होगा बैन

- ऑटो- टैम्पो में स्कूली बच्चों को ले जाना

- खुले रिक्शे में बच्चों का चलना

"सभी स्कूल वैन को कोआरटीओ की ओर से जारी नॉम्र्स फॉलो करने होंगे। अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो सीधे एफआईआर होगी। ट्रैफिक पुलिस के सर्वे मे सामने आया है कि वैन में बच्चों के साथ छेड़छाड़ भी होती है। हम सभी स्कूल्स को लेटर भेज रहे हैं। आरटीओ ऑफिस की मदद से कार्रवाई की जाएगी। "

आरके नायक, सीओ ट्रैफिक

ऐसे आई हकीकत सामने

सीओ ट्रैफिक आरके नायक ने बताया कि उनके पास कुछ शिकायतें आई थीं कि वैंस में बच्चों के छेड़छाड़ की जाती है। इसके बाद उन्होंने खुद स्कूल वैंस को वॉच करना शुरू किया और चेकिंग भी की। बच्चों से बात की गई। जिसमें प्राइमरी जांच में शिकायतों को सही पाया गया। इसके बाद कई टीमों को सर्वे के लिए लगाया गया। स्कूल वैंस को कई दिनों तक प्रॉपर्ली वॉच किया गया। इसके बाद ये सामने आया कि लगभग 60 फीसदी वैंस के ड्राइवर-कंडक्टर बच्चों से किसी न किसी रूप में छेड़छाड़ करते हैं। अक्सर बच्चों को इसका अहसास भी नहीं हो पाता।