-डब्ल्यूटीआई, वन विभाग और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की टीमों को अब इंतजार है बाघिन के 30 मिनट तक एक जगह पर रुकने का

-'स्पेशल टाइम' में ही बाघिन पर धावा बोलेंगी टीमें, ऑपरेशन पूरा करने के लिए टीमों वो टाइम है अहम

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KANPUR: लखीमपुर खीरी से गंगा बैराज के जंगल में पहुंची बाघिन को डेढ़ दर्जन से ज्यादा टीमों ने चारों ओर से घेर लिया है। करीब एक किलोमीटर के एरिया में पांच दिनों से विचरण कर रही बाघिन अब ये बात समझ चुकी है। इस वजह से वो एक जगह रुक नहीं रही है। दिन में कई बार उसके दहाड़ने की आवाज सुनाई देती है। वो बेस कैंप के नजदीक पहुंच चुकी है। उसके ताजा पगमार्क भी आई नेक्स्ट के कैमरे में कैद हो गए हैं। अब उसके वहां से भागने के चांसेज बिल्कुल जीरो हो चुके हैं। वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के विशेषज्ञ मानते हैं कि सूरज निकलने के बाद यानि दिन में जिस टाइम वो फ्0 मिनट एक जगह पर बैठेगी। टीम को उतना ही 'स्पेशल टाइम' चाहिए उसको कब्जे में लेने के लिए।

बेस कैंप तक पहुंची वो

पिछले करीब 70 दिनों से डब्ल्यूटीआई, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और वन विभाग की टीमों को चकमा देकर घूम रही बाघिन अब बेस कैंप तक पहुंच गई है। डब्ल्यूटीआई राधेश्याम के मुताबिक संडे देर रात वो बेस कैंप तक आई थी। मंडे को कॉम्बिंग टीम के साथ नरकुल के जंगलों में आई नेक्स्ट टीम भी पहुंची। कॉम्बिंग टीम के मेंबर्स ने कई घंटे तक कॉम्बिंग की। इस दौरान जब टीम बाघिन के करीब पहुंची वैसे ही बाघिन वहां से आगे बढ़ गई। करीब 8 घंटे तक घने जंगलों में डॉ। सौरभ सिंघई के नेतृत्व में टीमों ने कॉम्बिंग की। इस दौरान कई बार बाघिन की दहाड़ सुनाई दी। एक बार तो लगा कि टीम बाघिन तक पहुंच जाएगी लेकिन उस बार भी वो चकमा देने में कामयाब हो गई। टीमों के बेस कैंप तक बाघिन चक्कर लगाकर वापस चली गई। बेस कैंप के पास उसके ताजा पगमार्क भी मिले हैं। जो कि आई नेक्स्ट के कैमरे में कैद हो गए।

फ्0 मिनट में क्या होगा?

डब्ल्यूटीआई के सीनियर चिकित्सक डॉ। सौरभ सिंघई मुताबिक टीम को बाघिन को पकड़ने के लिए स्पेशल टेक्निक का यूज करना पड़ता है। क्योंकि वो एक खतरनाक जंगली जानवर है। ऐसे में पूरे प्लान के बाद ही उसको पकड़ा जा सकता है। ऐसे में जरा सी भी लापरवाही उसके और टीम मेंबर्स दोनों के लिए घातक साबित हो सकती है। डॉ। उत्कर्ष शुक्ला के मुताबिक टीम बाघिन के पास पहुंचे वो करीब फ्0 मिनट तक एक जगह पर स्थित रहे। अगर वो स्थिर नहीं रहेगी तो केज, जाल और दूसरे सामान उस तक पहुंच नहीं पाएंगे। फिलहाल दर्जनों बार टीमें बाघिन तक पहुंची लेकिन जैसे ही हम लोगों ने तैयारी पूरी की। वो चकमा देकर निकल गई, क्योंकि उसको सामने से नहीं पकड़ा जा सकता है। डॉ। सौरभ के मुताबिक उसके सामने आकर किसी ने कोई हरकत की तो वो उसको अपना दुश्मन मान बैठेगी और हमला कर देगी। ऐसे में अपने को बचाने के लिए कोई ऐसा कदम न उठ जाए। जिससे उसको किसी तरह का कोई नुकसान पहुचे। इस वजह से छिपकर उसको ट्रंक्यूलाइज किया जाएगा।

नीलगाय का शिकार नहीं कर पाई

वन विभाग के रेंजर्स के मुताबिक बाघिन ने संडे को जाल में बंधे हुए पड़वे को मारा लेकिन सिर्फ वो क्भ् किलोग्राम मीट ही खा सकी। उसने फिर नीलगाय के शिकार के लिए कदम बढ़ाया लेकिन वो उसका शिकार नहीं कर पाई। वन विभाग की टीम अब हर पिंजड़े में पड़वे को बांधेगी। पिंजड़े से कुछ मीटर की दूरी पर जमीन में जाल भी बिछा दिए गए हैं। ट्यूजडे को सुबह ब् बजे से कॉम्बिंग होगी।

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बाघिन को घेर लिया गया है। इसकी भनक उसको लग चुकी है। इस वजह से वो रात में एक जगह पर बैठती है दिन में वो कुछ-कुछ देर में चहलकदमी करती रहती है। रात में कोहरा काफी होता है और यहां नरकुल के जंगल हैं। ऐसे में दिन में जैसे ही बाघिन आधा घंटे एक जगह पर बैठेगी वैसे ही ऑपरेशन शुरू हो जाएगा और उसको पिंजड़े में कर लिया जाएगा।

डॉ। सौरभ सिंघई, सीनियर चिकित्सक, डब्ल्यूटीआई