- 16 लोक सेवकों समेत 189 आरोपितों के विरुद्ध दर्ज किया दूसरा केस

- प्रदेश के 13 शहरों के अलावा कोलकता व अलवर में भी हुई छानबीन

LUCKNOW :

सपा शासनकाल की 1500 करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी गोमती रिवरफ्रंट परियोजना से जुड़े करीब 407 करोड़ रुपये के और कामों में घपला पकड़ा गया है। सीबीआइ लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने 407 करोड़ रुपये के 661 कार्यों की आरंभिक जांच के बाद रिवरफ्रंट घोटाले में ¨सचाई विभाग के 16 तत्कालीन अधिकारियों व कर्मियों समेत कुल 189 आरोपितों के विरुद्ध अपनी दूसरी एफआइआर दर्ज की है। आपराधिक षड्यंत्र व धोखाधड़ी की धाराओं में दर्ज एफआइआर में निजी फर्म संचालकों, ठेकेदारों व अन्य लोगों के नाम भी शामिल हैं। जांच में सामने आया है कि अधिकारियों की मदद से नियमों को दरकिनार कर निजी फर्मों को अधिक कीमत पर काम दिए गए थे। इस घोटाले की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी कर रहा है।

अहम दस्तावेज बरामद

सीबीआई ने दो जुलाई को यह केस दर्ज करने के बाद सोमवार को आरोपितों के उत्तर प्रदेश समेत तीन राज्यों के 15 जिलों में स्थित 42 ठिकानों पर छापेमारी की। इनमें गोरखपुर में राप्तीनगर कालोनी स्थित भाजपा विधायक राकेश सिंह बघेल का आवास भी शामिल है। विधायक का छोटा भाई अखिलेश सिंह भी सीबीआई की एफआईआर में नामजद आरोपित है। अखिलेश की फर्म रिशू कंस्ट्रक्शन ने भी रिवरफ्रंट में काम किया था। सीबीआइ ने सबसे अधिक लखनऊ स्थित 25 ठिकानों पर छानबीन की। जबकि, राजस्थान के अलवर व कोलकता स्थित दो स्थानों पर भी छापा मारा। लखनऊ, गाजियाबाद, रायबरेली, सीतापुर, गौतमबुद्धनगर, अलीगढ़, गोरखपुर, आगरा, बुलंदशहर, एटा, मुरादाबाद, मेरठ व इटावा समेत सूबे के 13 जिलों में छापेमारी के दौरान घोटाले से जुड़े कई अहम दस्तावेज, लैपटाप व अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरण बरामद किए गए हैं।

इनके ठिकानों पर छापे

¨सचाई विभाग के तत्कालीन अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव, शिवमंगल यादव, जीवन राम यादव, सुरेन्द्र कुमार पाल, कमलेश्वर सिंह, तत्कालीन चीफ इंजीनियर ओम वर्मा, काजिम अली, एसएन शर्मा, एक्जीक्यूटिव इंजीनियर अर¨वद यादव समेत अन्य अधिकारियों व फर्म संचालकों के ठिकानों पर छापे मारे हैं। इनमें गोरखपुर में राप्तीनगर कालोनी स्थित भाजपा विधायक राकेश सिंह बघेल का आवास भी शामिल है। विधायक का छोटा भाई अखिलेश सिंह भी सीबीआइ की एफआइआर में नामजद आरोपित है। अखिलेश की फर्म रिशू कंस्ट्रक्शन ने भी रिवरफ्रंट में काम किया था।

फर्जी दस्तावेजों के जरिए हुआ करोड़ों रुपये का खेल

जांच में सामने आया है कि तत्कालीन अधिकारियों की सांठगाठ से निजी फर्मों व ठेकेदारों को नियमों को दरकिनार कर काम दिए गए। इसके लिए फर्जी दस्तावजों का उपयोग किया गया। मिलीभगत से एल-2 व एल-3 फर्माें के फर्जी दस्तावेज तैयार कराए गए और बिना टेंडर के हाई रेट पर कामों का आवंटन किया गया। चहेती फर्मों को काम देने के लिए राष्ट्रीय अखबारों में विज्ञापन भी नहीं दिए गए। पूर्व में सीबीआई ने 20 नवंबर 2020 को ¨सचाई विभाग के तत्कालीन अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव (अब सेवानिवृत्त) व वरिष्ठ सहायक राजकुमार को लखनऊ से गिरफ्तार किया था। रुप सिंह दोनों एफआइआर में नामजद आरोपित हैं।

दो अधीक्षण अभियंताओं के घर से मिले लाखों रुपये

सीबीआइ छापों के दौरान दो अधीक्षण अभियंताओं के घर से लाखों रुपये नकद भी बरामद हुए। सूत्रों का कहना है कि आरोपित रूप कुमार यादव समेत दो अधीक्षण अभियंताओं के ठिकानों से पांच-पांच लाख रुपये से अधिक नकदी बरामद की गई है। कई जरूरी दस्तावेज भी कब्जे में लिए गए हैं।

यूपी कैडर के अधिकारी ने प्रभावित की जांच

सीबीआई ने करीब चार साल पहले रिवरफ्रंट घोटाले में अपना केस दर्ज किया था, लेकिन अब तक इस मामले में केवल दो आरोपितों की ही गिरफ्तारी हो सकी है। एक बार फिर इस मामले की सीबीआई जांच ने रफ्तार पकड़ी है। सूत्रों का कहना है कि इस मामले में पूर्व में सीबीआइ में तैनात रहे यूपी कैडर के एक अधिकारी के प्रभाव की वजह से जांच प्रभावित रही।

- योगी सरकार ने गोमती नदी चैनलाइजेशन परियोजना व गोमती नदी रिवरफ्रंट डेवलमेंट में वित्तीय अनियमितताओं की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी।

- रिवरफ्रंट घोटाले में सीबीआई ने पहली एफआईआर 30 नवंबर 2017 को दर्ज की थी।

- एफआईआर गोमतीनगर थाने में ¨सचाई विभाग के 8 अधिकारियों व अन्य के विरुद्ध दर्ज के को आधार बनाकर की

- सीबीआई दो चरणों में इस घोटाले की जांच कर रही है।

- पहली एफआईआर के तहत करीब 1031 करोड़ रुपये की लागत से कराए गए 12 कामों की जांच की जा रही है।

- जबकि 407 करोड़ रुपये की लागत से कराए गए 661 कामों की आरंभिक जांच के बाद 189 आरोपितों के विरुद्ध दूसरी एफआइआर दर्ज की।

- 15 जिलों में की गई छापेमारी

- 42 ठिकाने सीबीआई ने खंगाले

- 25 जगहों पर लखनऊ में पहुंची सीबीआई

- 407 करोड़ रुपये के और कामों में घपला