लखनऊ (ब्यूरो)। नई तकनीक आ गई है। पहले किडनी में स्टोन के ऑपरेशन केलिए चीरा, टांका से निशान आते थे लेकिन, आरआईआरएस यानि रेट्रोग्रेट इंट्रा रिनल सर्जरी आ गई है। इसमें हम चीरा न लगाकर पेशाब के रास्ते में यूरोटोस्कोप डालकर लेजर लगाकर, अंदर देखकर किडनी स्टोन को तोड़ देते हैं। इसकी मदद से कोई चीरा, टांका व निशान नहीं लगता है। सबसे बड़ी बात मरीज दो-तीन दिन में घर चला जाता है और अपने नार्मल काम कर सकता है। जबकि पहले सर्जरी में 15-20 दिनों तक आराम करता है। यह तकनीक आपरेशन से डरने वाले मरीजों के लिए बेहतर विकल्प है। यह सर्जरी करीब 50-60 हजार में हो जाती है।
डॉ प्रशांत लावनिया, यूरो सर्जन आगरा

25 फीसद मरीजों में ब्रेस्ट बचाया जा सकता है
ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में बीते 20 सालों में काफी सुधार आया है। पहले ब्रेस्ट कैंसर होने पर ब्रेस्ट निकालना पड़ता था। अब नई तकनीक की मदद से करीब 25 फीसद मरीजों में ब्रेस्ट बच जाता है। इसके लिए रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी और हार्मोनल थेरेपी से ट्रीटमेंट किया जाता है। जिसे मल्टी मोरेलेटी थेरेपी कहा जाता है। इसमें केवल गांठ निकालकर ट्रीट किया जाता है। लोग भी जागरूक हो रहे हैं, जिससे स्टेज-4 में आने वाले मरीजों के मुकाबले अब स्टेज-1 या 2 में ही पकड़ में आ जा रहा है।
डॉ राहुल खन्ना, सर्जन बीएचयू

लेजर सर्जरी से वेरिकोंस वेंस का इलाज
वेरिकोंस वेंस समस्या में पैरों में नसों में उबार देखने को मिलता है। यह महिलाओं में ज्यादा होता है। खासतौर पर उन लोगों को जो एक जगह खड़े होकर घंटों काम करते है या फिर जेनेटिक होता है। इससे पैरों के नीचे घाव हो जाता है जो बिना ट्रीटमेंट के सही नहीं होता है। अब इस बीमारी के इलाज के लिए लेजर तकनीक आ गई है। हालांकि, यह थोड़ा महंगा पड़ता है। इसका फायदा यह है कि जिस दिन मरीज आता है उसी दिन सर्जरी की जाती है और छह घंटे में मरीज को डिस्चार्ज भी कर दिया जाता है।
डॉ मानवेंद्र वैद्य, गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज

स्टोन, कैंसर में बदल सकता है
पित्त की थैली में पथरी का जल्द से जल्द ऑपरेशन करवाना लेना चाहिए, नहीं तो कैंसर हो जाता है। इसके रोकथाम के लिए नई-नई सर्जरी सामने आई है। जिसमें लिवर का टुकड़ा भी निकाला जाता है। साथ ही गॉल ब्लैडर भी निकाला जाता है, नहीं तो कैंसर ज्यादा एडवांस होने पर मौत की संभावना हो जाती है। एडवांस स्टेज में पीलिया, दर्द, पेट में पानी भरना, सूजन, भूख न लगना आदि लक्षण है। अगर, कंडीशन ऐसी है कि यह सब भी नहीं कर पा रहे है तो पैलिएशन करा जाता है। जिसके तहत अगर पीलिया है तो उसे कम करने के लिए नली डाली जाती है। खाने-पीने में दर्द हो तो बाईपास करा जाता है।
डॉ अनुभव गोयल, आगरा