लखनऊ (ब्यूरो)। ऑटोइम्यून बीमारी ल्यूपस एसएलई से पीडि़त मरीजों का अब और सटीक इलाज हो सकेगा। संक्रमण के दौरान बुखार आने का सटीक कारण यानि फंगल, वायरस और बैक्टीरिया क्या है, इसका पता लग सकेगा, जिससे मरीज को इलाज में फायदा मिलेगा। यह शोध पीजीआई के क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग के डॉ। किशन मजीठिया ने विभाग की प्रमुख डॉ। अमिता अग्रवाल की मदद से 159 मरीजों पर किया है।

सही दवा दी जा सकेगी

डॉ। किशन मजीठिया ने बताया कि ल्यूपस के मरीज इमरजेंसी में बुखार के साथ आते हैं। अक्सर बुखार का कारण सही पता न होने की वजह से मरीजों को एंटीबायोटिक दवाएं चला दी जाती हैं। इससे मरीज की तकलीफ बढ़ जाती है। खून की मामूली जांचों से बुखार की पहचान संभव है। सभी जांच संस्थान में उपलब्ध हैं। तीन से चार घंटे में रिपोर्ट मिल जाती है। शोध में पाया गया कि बैक्टीरिया संक्रमण होने पर सीआरपी, ईएसआर, न्यूट्रोफिल एवं लिम्फोसाइट का अनुपात, सीडी 64, सीडी 14 मार्कर बढ़ जाता है। ऐसे में बैक्टीरिया के संक्रमण से बुखार होने पर एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। अन्य में एंटीबायोटिक देने की जरूरत नहीं होती है। इससे मरीजों के उपचार आसान हो गया है।

यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा

डॉ। किशन के मुताबिक, ल्यूपस बीमारी महिलाओं में ज्यादा होती है। यह 20 से 50 साल की उम्र में ज्यादा मिलती है। इसमें बुखार, निमोनिया, प्लेटलेट्स की कमी, मुंह में छाले, त्वचा में चकत्ते और पेशाब से प्रोटीन आता है। बीमारी काबू में न होने पर किडनी पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। यह शोध पीजीआई में उपचार कराने वाले मरीजों पर किया है, जिससे मरीजों के इलाज में बड़ी राहत मिलेगी।