लखनऊ (ब्यूरो)। ड्रग माफियाओं के नेटवर्क को तोडऩे के लिए प्रदेश सरकार ने स्पेशल एंटी नारकोटिक्स फोर्स का गठन किया है। ड्रग तस्करी के लिए इस धंधे के मंझे खिलाड़ी पुराने पैटर्न को छोड़ हाईटेक टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर रहे हैं, जिनमें से एक डार्क वेब है। डार्क वेब के जरिए वे विदेश में बैठकर ड्रग तस्करी ही नहीं बल्कि आम्र्स व टेरर फंडिंग का काम भी कर रहे हैं। इसी नेक्सेस को तोडऩे के लिए अब एंटी नारकोटिक्स फोर्स ने साइबर क्राइम से हाथ मिलाया है

विदेश से हो रही डार्क वेब से तस्करी

नेपाल, म्यांमर, अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि यूएसए व यूके से ड्रग माफियाओं के लिए यूपी हॉटस्पॉट बन चुका है। एक जगह बैठ कर ड्रग माफिया गैंग के सदस्य डार्क वेब के जरिए यूरोपीय देशों तक ड्रग पहुंचा रहे हैं। हाल ही में लखनऊ व गोंडा से पकड़े गये गैंग के सदस्यों से इस बात का खुलासा हुआ है।

ड्रग माफियाओं का यूरोप कनेक्शन

सितंबर 2022 को यूपी एसटीएफ ने आलमबाग इलाके से शाहबाज खान, आरिज एजाज, गौतम लामा, शारिब एजाज, जावेद खान और सऊद अली को गिरफ्तार किया था। एसटीएफ को इनके पास से यूके और अमेरिका में प्रतिबंधित दवाइयां मिली थीं। ये लोग यूरोपीय देशों से ऑर्डर लेते थे।

डार्क वेब के जरिए कारोबार

अक्टूबर 2022 को गोंडा पुलिस ने ऐसे ही एक और गिरोह के अब्दुल हादी, अब्दुल बारी व विशाल श्रीवास्तव को पकड़ा। वे डार्क वेब के जरिए ड्रग्स की अवैध रूप से खरीद फरोख्त कर रहे थे। पूछताछ में सभी ने बताया था कि जिस मेफेड्रोन की डिमांड मुंबई जैसे बड़े शहरों में है, उनकी यूपी, एमपी व उत्तराखंड में बड़ी तेजी डिमांड बढ़ी है। तभी उन्होंने यूपी में ही ऑनलाइन ड्रग्स की सप्लाई करने का गिरोह तैयार किया था।

क्या है डार्क वेब

यूपी एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स के डीआईजी अब्दुल हमीद ने बताया कि डार्क वेब एक ऐसी जगह है, जहां हथियार व ड्रग्स की बिक्री और टेरर फंडिंग जैसे गैरकानूनी काम होते हैं। साइबर एक्सपट्र्स के अनुसार, आम तौर पर लोग इंटरनेट का महज 10 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल करते हैं। जिसे सरफेस वेब कहते हैं। वहीं बाकी का 90 प्रतिशत हिस्सा डार्क वेब कहलाता है। इसका इस्तेमाल करने के लिए एक स्पेशल ब्राउजर की जरूरत होती है। यह इतना खतरनाक होता है कि वीपीएन जैसे टूल्स के साथ लोकेशन बदलकर डार्क वेब पर किसी भी अति गोपनीय चीजों का सौदा किया जा सकता है। ठीक इसी तरह डार्क वेब के जरिए इंटरनेशनल से लेकर भारत में ऑनलाइन ड्रग ढूंढने वालों की लिस्ट तैयार की जाती हैं और उनसे संपर्क होने के बाद डील फाइनल होती है। भुगतान क्रिप्टो करेंसी में होता है।

कहां से आते हैं मादक पदार्थ

यूपी में ऑनलाइन ड्रग्स की सप्लाई के अलावा सड़क व रेल मार्ग से भी मादक पदार्थों की सप्लाई होती है। इसमें हीरोइन म्यांमार, बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, असम, दिमापुर व गुवाहाटी के रास्ते होकर यूपी आती है। इसी तरह अफीम झारखंड के पलामू, चतरा से होते हुए पटना से वाराणसी आती है और यहां से ट्रेन और सड़क के रास्ते बरेली, बदायूं, अलीगढ़ और दिल्ली तक सप्लाई होती है। चरस नेपाल के बढऩी, सनौली और बीरगंज बॉर्डर से बिहार, यूपी, हरियाणा, दिल्ली व पंजाब पहुंचती है। उड़ीसा भवानी, नाल्को, सोनपुर बरगढ़ की पहाडिय़ों में सबसे ज्यादा प्रोडक्शन गांजा का होता है और यहां से बिहार छत्तीसगढ़ के रास्ते पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहुंचता है।

छह माह में कितना मादक पदार्थ पकड़ा

नाम मात्रा

हीरोइन 13 किलो

गांजा 42,900 किलो

कोकीन 300 ग्राम

स्मैक 85 किलो

सिंथेटिक नारकोटिक्स 14 किलो

चरस 650 किलो

डार्क वेब के जरिए ड्रग की सप्लाई करने वाले कई गिरोह हैं। ऐसे माफियाओं के जाल को तोडऩे के लिये रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। ऑनलाइन ड्रग की खरीद फरोख्त करने वालों से निपटने के लिए एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स व साइबर क्राइम संयुक्त रूप से काम कर रही है। इसके लिए एक डेडीकेटेड टीम बनाई गई है। टीम ऐसे सभी प्लेटफॉर्म पर नजर रखे हुए है जहां अवैध ड्रग्स से जुड़ी छोटी से छोटी एक्टिविटी होती है।

-अब्दुल हमीद, डीआईजी, एंटी नारकोटिक्स फोर्स