- जुलूस व ताजिया दफन करने की नहीं थी इजाजत

- घरों के अंदर अजादारों ने मनाया शहीदों का गम

LUCKNOW:

राजधानी में करीब 21 वर्षो में पहली बार 10 मोहर्रम पर हजरत इमाम हुसैन अ.स। की कर्बला में हुई शहादत के गम पर यौम-ए-आशूर का जुलूस नहीं निकाला गया, और न ही कर्बलाओं में ताजिया दफन किए गए। वहीं कुछ खास इमामबाड़ों में प्रशासन द्वारा सिर्फ 5 लोगों के साथ मजलिस पढ़ने की इजाजत दी गई थी।

घरों में ही मनाया मातम

खुद को और दूसरों को कोरोना से बचाने के लिए शिया समुदाय ने मोहर्रम को सादगी के साथ घरों में ही मनाया। गौरतलब है कि पुराने लखनऊ में हजरत इमाम हुसैन की याद मे यौम-ए-आशूर का जुलूस गमजदा माहौल मे कड़ी सुरक्षा के बीच निकाला जाता था। सुबह करीब 10 बजे से नाजिम साहब के इमामबाड़ा में मौलाना कल्बे जव्वाद नकवी जुलूस से पहले मजलिस पढ़ते थे। जिसके बाद जुलूस में शामिल मातमी अंजुमनों में शामिल अजादार कमा और छुरियों का मातम कर इमाम हुसैन की याद में खुद को लहुलुहान करते थे।

काम आई शिया धर्म गुरुओं की अपील

सुप्रीम कोर्ट के बाद हाईकोर्ट द्वारा कोरोना के खतरे को देखते हुए ताजिया कर्बलाओं में दफन करने की इजाजत नहीं दी गई। जसके बाद शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जव्वाद, मौलाना हमीदुल हसन द्वारा सोशल मीडिया पर वीडियो संदेश से शिया समुदाय से अपील की गई थी। जिसमें कोर्ट का सम्मान करते हुए इस बार घरों में रखे ताजिया को कर्बलाओं में दफन न करें। कोरोना का खतरा बड़ा है इसलिए कोरोना समाप्त होने के बाद ही घरो में रखे ताजिया को एहतराम के साथ परंपरा के अनुसार दफन किया जाए। ऐसे में शिया समुदाय के लोगों ने कर्बला के शहीदों की याद में घरों मे गम मनाया और मातम भी किया।

लगातार होती रही निगरानी

नौ मोहर्रम की रात से ही पुराने लखनऊ के शिया बाहुल्य इलाकों में भारी पुलिस बल पूरी तरह मुस्तैद रहा। पुलिस के आला अफसर लोगों को समझाते रहे कि सरकारी गाइडलाइन लोगों की भलाई के लिए है। यौम-ए-आशूर के दिन कोई अजादार अपने घर से ताजिया लेकर बाहर न निकले इसलिए पुलिस सुबह से ही चैकन्नी थी। पुलिस सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन कैमरों के अलावा बॉडी वार्न कैमरों से भी निगरानी करती रही। ऊंचे मकानों की छतों पर भी पुलिस तैनात रही।