लखनऊ (ब्यूरो)। सैकड़ों योजनाएं, करोड़ों का बजट, नाले टैपिंग का दावा फिर भी गोमती नदी का आंचल मैला है। उप्र पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से जारी रिपोर्ट कुछ ऐसी ही कहानी बयां कर रही है। जो आंकड़े सामने आए हैैं, वे बेहद चौंकाने वाले हैैं। गोमती का पानी प्रदूषण के चलते आचमन योग्य भी नहीं रह गया है। जिम्मेदारों की ओर से समय-समय पर गोमती सफाई के लिए अभियान तो चलाया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि इस सफाई अभियान के बाद भी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं दिखाई देता। गुजरते वक्त के साथ गोमती में पॉल्यूशन का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है, जो बेहद चिंताजनक है। आखिर कौन है गोमती को प्रदूषित करने का सीधे तौर पर जिम्मेदार, नाला टैपिंग का सच क्या है, जनता इसके लिए कितनी जिम्मेदार हैै, जानने के लिए पढ़ें सैयद सना की रिपोर्ट।

चारों तरफ से पॉल्यूटेड

गोमती नदी में खतरनाक स्तर का पॉल्यूशन है। एक तरफ बिना ट्रीट किए सीवर का पानी सीधे गोमती में जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ जलकुंभी भी गोमती के लिए मुसीबत बन चुकी है। 1090 चौराहे के आसपास गोमती की बदहाल तस्वीर को देखा जा सकता है। कुडिय़ाघाट के आसपास तो नाले सीधे गोमा में गिर रहे हैैं। जबकि इन्हें टैप किए जाने का दावा किया जा चुका है। सवाल खड़ा होता है कि आखिर गोमा कैसे पॉल्यूशन फ्री होगी?

यहां पानी अधिक प्रदूषित

यूपीपीसी की अप्रैल 2023 की रिपोर्ट को देखें तो साफ है कि निशातगंज पुल, भरवारा और गोमती बैराज के पास गोमती का पानी सबसे ज्यादा प्रदूषित है। वहीं, शहीद स्मारक व शनि मंदिर के पास भी गोमती का पानी प्रदूषित है। इसी तरह रिपोर्ट में कई अन्य प्वाइंट्स का भी जिक्र किया गया है, इस नदी की दुर्दशा को आसानी से समझा जा सकता है।

नहाने के लिए भी पानी ठीक नहीं

विशेषज्ञों का कहना है कि गोमती का पानी पीने को तो छोड़ें, नहाने के लिए भी ठीक नहीं है। साल 2006 से गोमती के पानी में हेवी मेटल्स के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे। इसका कारण फ्लो में कमी का होना है। गोमती नदी में डिसॉल्व ऑक्सीजन की कमी के कारण जलीय जीवों के जीवन पर भी संकट है। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी का डीओ डिसॉल्व ऑक्सीजन 5 एमजी प्रति लीटर से कम है, जो कम से कम 8.5 एमजी प्रति लीटर होना चाहिए। ऑक्सीजन के इस लेवल से नदी में रहने वाले जीवों के जीवन में भी संकट होता है। गोमती में मौजूदा समय में मछलियों की 51 प्रजातियां ही बची हुई हैं।

गोमती बचाने वाले भी कम नहीं

शहर में गोमती का स्तर भले ही कितने खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका हो, लेकिन शहर में कुछ ऐसे प्रहरी भी हैं जो गोमती को जिंदा रखने का काम कर रहे हैं। ये प्रहरी कहीं कुडिय़ाघाट से जलकुंभी हटा रहे हैं तो कहीं हर रविवार नदी से कुंतलों कचरा निकाल कर उसे साफ करने में लगे रहते हैं। इन प्रहरियों में प्रदूषण पर काम कर रहीं संस्थाओं के साथ साथ इंडीविजुअल लोग भी हैं।

हमें भी सुधरना होगा

अगर गोमती को साफ रखना है तो सबसे पहले हमें यानि आम जनता को भी अपने अंदर सुधार करना होगा। हम लोग अक्सर गोमा में गंदगी डाल देते हैैं। इस आदत को तत्काल बदले जाने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें दूसरों को भी जागरूक करने की जिम्मेदारी निभानी होगी। सबके प्रयास से ही गोमा का रूप फिर से निखरेगा।