- 4 स्टेडियम में चल रहे 11 लोकल कैंप
- 1 हजार बच्चे लोकल कैंप से जुड़े हैं
- 40 बच्चे ही एक खेल से जुड़े हैं
- 6 हजार ही बच्चे खेल से हैं जुड़े
- राजधानी में मोबाइल गेम के प्रति बढ़ रही है बच्चों में दीवानगी
- फिटनेस के लिए खेल विभाग की देखरेख में चल रहे हैं कई कैम्प
- इन कैम्प में प्रैक्टिस के लिए सिर्फ लिया जाता है रजिस्ट्रेशन शुल्क
LUCKNOW: मोबाइल गेम की लत बच्चों को जहां अनफिट बना रही है वहीं इसके चलते उन्हें कई तहर की बीमारियां भी हो रही हैं। पैरेंट्स भी अपने बच्चों में मोबाइल के प्रति बढ़ती दीवानगी को लेकर बेहद परेशान हैं। ऐसे में पैरेंट्स को बच्चों द्वारा मोबाइल से दूरी बनाने के लिए चिकित्सीय सलाह लेनी पड़ रही है। वहीं खेल विभाग की देखरेख में संचालित लोकल कैंप ज्वाइन कर जहां बच्चे फिट हो सकते हैं वहीं वह खुद ही मोबाइल गेम से दूरी बना लेते हैं। पेश है एक रिपोर्ट।
अनफिट हो रहे हैं बच्चे
पैरेंट्स की मानें तो नौनिहाल से लेकर यंगस्टर्स तक मोबाइल गेम के लती बन चुके हैं। देर रात तक वह मोबाइल में गेम खेलते रहते हैं। ऐसे में जहां उनकी दिनचर्या पूरी तरह से चौपट हो जाती है, वहीं फिजिकल वर्क ना करने की वजह से बच्चे अनफिट हो रहे हैं। ऐसे में बच्चों में कई तरह की बीमारियां सामने आ रही हैं। पैरेंट्स बच्चों में मोबाइल की लत को छुड़ाने के लिए लोग डॉक्टर्स से भी एडवाइज ले रहे हैं जबकि ग्राउंड पर पहुंचते ही बच्चे खुद ही मोबाइल से दूरी बना लेते हैं।
नहीं बढ़ रही ग्राउंड पर बच्चों की संख्या
खेल विभाग के अनुसार राजधानी में आबादी तो बढ़ रही है, लेकिन यहां मौजूद कैंप में बच्चों की संख्या नहीं बढ़ पाती है। समर वोकेशन में ही राजधानी के स्टेडियमों में नए प्लेयर्स की संख्या बढ़ती है, लेकिन उसके बाद सन्नाटा पसर जाता है। आलम यह है कि पिछले कई वर्षो से हर गेम में कहीं 35 तो कहीं 40 बच्चे ही प्रैक्टिस के लिए पहुंचते हैं जबकि खेल विभाग ने बच्चों की फिटनेस के लिए राजधानी के सभी स्टेडियमों में कोई ना कोई खेल संचालित कर रखा है जिसे ज्वाइन कर बच्चे अपनी फिटनेस बरकरार रख सकते हैं। राजधानी के चार स्टेडियम में चलने वाले लोकल कैंप में मात्र एक हजार खिलाड़ी ही प्रैक्टिस कर रहे हैं। प्राइवेट में सिर्फ क्रिकेट के कैंप चलते हैं। वही सरकारी स्टेडियम में तकरीबन 3000 हजार बच्चे ही प्रैक्टिस में जुटे हैं। खेल विभाग के अधिकारियों के अनुसार आज भी सभी स्टेडियमों में प्रैक्टिस करने वाले खिलाडि़यों की संख्या छह हजार से अधिक नहीं है।
कोट
लोग यदि अपने बच्चों को सिर्फ ग्राउंड तक लेकर आएं और उन्हें किसी भी कैंप में दाखिला दिलवा दें तो उनकी फिटनेस बनी रहती है। ऐसे में ना तो वह किसी तरह की बीमारी का शिकार होंगे और ना ही कभी वे निराशावादी होंगे।
डॉ। आरपी सिंह
खेल निदेशक
11 कैंप हैं
केडी सिंह बाबू स्टेडियम
वेटलिफ्टिंग, बॉक्सिंग, जिम्नास्टिक, क्रिकेट, ताइक्वांडो, वॉलीबाल, हैंडबाल, हॉकी, जूडो, एथलेटिक्स,
चौक-कबड्डी, ताइक्वांडो, हैंडबाल, हॉकी, पॉवरलिफ्टिंग, क्रिकेट, बॉक्सिंग, वुशू और साइकिलिंग
विनयखंड- तलवारबाजी, सॉफ्ट टेनिस,
विजयंत खंड- टेबल टेनिस, टेनिस, वेटलिफ्टिंग,
सभी कैंप में प्रैक्टिस करने वाले खिलाडि़यों की संख्या तकरीबन-1000 से अधिक
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अन्य जगह भी खेल सुविधाएं
राजधानी में खेल विभाग के स्टेडियमों के अतिरिक्त साई सेंटर और स्पोर्ट्स कॉलेज भी मौजूद हैं। साई सेंटर में डे बोडिंग से लेकर कम एंड प्ले की स्कीम चलती है तो स्पोर्ट्स कॉलेज में भी बच्चों को खेलने का मौका मिलता है। इसके बावजूद खेल की दुनिया में बच्चों की संख्या कम है।
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शुल्क जमा कीजिए और वॉक कीजिए
राजधानी के स्टेडियमों में जो बच्चे कोई खेल गेम ज्वाइन नहीं करना चाहते सिर्फ वे अपनी फिटनेस के लिए आना चाहते हैं तो उनके लिए भी व्यवस्था की गई है। वे स्टेडियम में निर्धारित शुल्क जमा कर और स्पोर्ट्स किट में प्रैक्टिस के लिए जा सकते हैं। आवश्यकता पड़ने पर वह स्टेडियमों में तैनात प्रशिक्षकों से भी फिटनेस के लिए गाइडेंस ले सकते हैं।
अभिभावकों से बातचीत
कोट
छोटे बच्चों में मोबाइल के प्रति तेजी से दीवानगी बढ़ रही है। पैरेंट्स बच्चों को बिजी रखने के लिए मोबाइल दे देते हैं, लेकिन बाद में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। बच्चों में मोबाइल की लत लग जाती है। इससे उनकी आंखे ही नहीं फिटनेस भी कम हो रही है।
बीआर वरुण
हजरतगंज
स्कूलों में कई अभिभावक बताते हैं कि उनका बच्चा बहुत मोबाइल खेलता है। हर वक्त मोबाइल क लिए जिद करता है। फिर घंटों एक ही जगह बैठा रहता है। यह परिस्थितियां बेहद ही घातक हैं। ऐसे में पैरेंटस को बेहद संभल कर कदम उठाने होंगे।
निधि, जानकीपुरम
खिलाडि़यों से बातचीत
कोट
फिटनेस के प्रति लोगों को जागरुक करना होगा। लोगों को अपने दिन भर के काम से फुर्सत निकाल कर बच्चों को फील्ड गेम प्रति प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे वे फिट रहने के साथ स्वस्थ्य भी रहेंगे।
सुधा सिंह
इंटरनेशनल एथलीट
ग्राउंड आने वाले बच्चे हमेशा फिट रहते हैं, लेकिन बदलते कल्चर में कारों से घूमना और मोबाइल खेलना फैशन है। यह बस बच्चों को बीमार बना रहा है। पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वह समय निकाल कर बच्चों को ग्राउंड लाए और फिटनेस के लिए प्रोत्साहित करें।
सैयद अली
पूर्व ओलम्पियन
कोट
बड़ा हो जाता है पैरेटिंग का रोल
कहने को मोबाइल है, लेकिन उसमें संसार है। बच्चों में उत्सुकता अधिक होती है और वे इंटरनेट का प्रयोग कर नई चीजें जानने की कोशिश करते हैं। आलम यह है कि बच्चे को मोबाइल दे दीजिए तो वह एक कमरे में दिन भर बंद रहेगा। इससे उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में पैरेटिंग का रोल बड़ा हो जाता है। उन्हें बच्चों को खेलों की तरफ प्रोत्साहित करना चाहिए। पहले लोग क्रिकेट, फुटबाल, वॉलीबाल सहित कोई ना कोई खेल ज्वाइन करते थे। ऐसे में एक बार फिर बच्चों को खेलों से जोड़ने की जरूरत हैं।
डॉ। देवाशीष शुक्ला
मानसिक रोग विशेषज्ञ
लोहिया हॉस्पिटल