लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी के मेडिकल कॉलेज पहले ही डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं। एक ओर जहां मेडिकल संस्थानों में डॉक्टरों की भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हो रही है। तो दूसरी ओर संस्थानों में बॉन्ड पर आये डॉक्टरों की मियाद पूरी होने पर उनको रोकने की जगह कार्यमुक्त किया जा चुका है, जिसका खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ रहा है। आलम यह है कि केजीएमयू और लोहिया संस्थान में बॉन्ड पर आये गैस्ट्रोमेडिसिन के डॉक्टर कार्यमुक्त हो चुके हैं। ऐसे में अब मरीजों को कौन देखेगा और कौन प्रोसिजर करेगा, यह सवाल खड़ा हो गया है।

ओपीडी और प्रोसिजर में दिक्कत

केजीएमयू के गैस्ट्रोमेडिसिन विभाग की ओपीडी में रोजाना 300-400 के करीब मरीज आते हैं। विभाग में रोजाना ईआरसीपी 5-6, एंडोस्कोपी 30-40 और कोलोनोस्कोपी 5-10 होती हैं। विभाग में चार पोस्ट पर महज एक ही पर्मानेंट डॉक्टर, विभागाध्यक्ष डॉ। सुमित रूंगटा हैं। वहीं, दो साल के बॉन्ड पर दो डॉक्टर मिले थे। जिसमें एक पहले ही पीजीआई वापस चले गये, जबकि दूसरे बचे डॉ। अनिल गंगवार के दो साल 21 अगस्त को पूरे हो चुके हैं। उनको कार्यमुक्त का आर्डर दिया जा चुका है। ऐसे में सवाल खड़ा हो गया है कि मरीजों को अब कैसे देखा जायेगा और कौन प्रोसिजर करेगा, क्योंकि एचओडी की ओपीडी सप्ताह में केवल दो दिन होती है। ऐसे में न केवल मरीजों की वेटिंग संख्या बढ़ जायेगी, बल्कि प्रोसिजर करवाने वालों की भी वेटिंग लंबी हो जायेगी। ऐसे में पेट और लीवर की समस्या से जूझ रहे मरीजों को बड़ी समस्या आने वाली है।

बढ़ सकती है मरीजों की समस्या

वहीं दूसरी ओर, लोहिया संस्थान की गैस्ट्रोमेडिसिन में 4 पदों पर केवल एक ही डॉक्टर तैनात है। यहां ओपीडी सप्ताह में दो दिन ही चलती है। ओपीडी में 150 से 200 के करीब मरीज आते हैं। विभाग में पर्मानेंट फैकल्टी के नाम पर केवल डॉ। पीयूष हैं, जो पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट है। वहीं, बॉन्ड पर आये तीन डॉक्टरों में डॉ। प्रशांत और डॉ। स्वप्निल का बॉन्ड पीरियड ओवर होने के बाद वे कार्यमुक्त हो चुके हैं। अब बॉन्ड पर केवल डॉ। गंगाधर रह गये हैं। ऐसे में यहां भी पूरा विभाग केवल एक डॉक्टर के भरोसे है, जिससे मरीजों को देखने और प्रोसिजर करने का संकट खड़ा हो सकता है।

पढ़ाई पर पड़ेगा असर

गैस्ट्रोमेडिसिन में एंडोस्कोपी, कोलोनोस्कोपी जैसे प्रोसिजर भी होते है। जिसे प्रोफेसर द्वारा सीनियर रेजिडेंट को सिखाया जाता है। इसके अलावा उन्हें मरीजों को देखने में भी लगाया जाता है। डॉक्टरों के न होने से इनकी ट्रेनिंग और पढ़ाई पर भी असर पड़ेगा। नए डॉक्टर तैयार करने में भी दिक्कतें आ सकती हैं।

भर्ती न निकलना बड़ी समस्या

एक अर्से से दोनों संस्थानों में पर्मानेंट पोस्ट के लिए कोई भर्ती का विज्ञापन नहीं निकला है। जिसकी वजह से संकट और बढ़ता जा रहा है। इसी के कारण बॉन्ड पर आये डॉक्टर भी अप्लाई नहीं कर पा रहे हैं। वहीं, मरीजों की दिक्कतों को देखते हुए संस्थान प्रशासन द्वारा भी इस दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया जा रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में पेट और लीवर की समस्या वाले मरीज कहां दिखाने जायें, यह संकट खड़ा हो सकता है।