-स्वतंत्रता संग्राम में लखनऊ के काकोरी, रेजीडेंसी

- जीपीओ व चारबाग रेलवे स्टेशन का अहम स्थान

LUCKNOW : देश की आजादी के समर में देशभर में तमाम जगहों पर आजादी के मतवालों ने अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिये। इनमें प्रदेश की राजधानी लखनऊ का महत्वपूर्ण स्थान है। राजधानी की तमाम जगहें ऐसी हैं जिनका आजादी की लड़ाई से खास संबंध है। 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 में आजादी मिलने तक राजधानी इसका प्रमुख केंद्र रही। जीपीओ, रेजीडेंसी, काकोरी और चारबाग रेलवे स्टेशन में आज भी इसके निशान मौजूद हैं। आइये आपको बताते हैं इन खास जगहों और उनके ऐतिहासिक महत्व के बारे में-

जगह: काकोरी

देश में अंग्रेजो का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। जो भी आजादी की मांग करता उसे अंग्रेजों की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता। यह बात क्रांतिकारियों को नागवार गुजर रही थी। उन्होंने आजादी को लेकर जारी लड़ाई में आ रही पैसों की कमी को दूर करने के लिये शाहजहांपुर में बैठक की। बैठक में क्रांतिकारी पं। राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई। योजना के मुताबिक, दल के प्रमुख सदस्य राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के काकोरी स्टेशन से छूटी 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर कुछ दूरी पर ही चेन खींचकर ट्रेन को रोक दिया। जिसके बाद पहले से घात लगाए बैठे पं। राम प्रसाद बिस्मल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खां और चंद्रशेखर आजाद ने छह अन्य सहयोगियों की मदद से गार्ड के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। क्रांतिकारी बक्से का ताला तोड़कर उसमें रखे चांदी के सिक्कों और नोटों से भरे बैग को चादरों में बांधकर वहां से भाग निकले। ट्रेन डकैती की यह घटना ने अंग्रेजी सरकार में हड़कंप मचा दिया था। डकैती वाली जगह पर एक स्मारक बनाया गया है। जहां क्रांतिकारियों की मूर्तियां लगी हुई हैं।

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जगह: रेजिडेंसी

राजधानी के कैसरबाग क्षेत्र में मौजूद रेजिडेंसी देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की गवाह है। रेजिडेंसी का निर्माण अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1775 में शुरू कराया। इसे नवाब सआदत अली खां ने 1800 में पूरा कराया। नवाबों ने अंग्रेजों की आरामगाह के लिये रेजिडेंसी का निर्माण कराया था लेकिन, तब उन्हें नहीं पता था कि अंग्रेजों के लिये बनाई गई यह आरामगाह उनका कब्रिस्तान बन जाएगी। 30 जून 1857 को चिनहट के पास इस्माइलगंज में अंग्रेजों का पहली बार क्रांतिकारियों से सामना हुआ। क्रांतिकारियों के हौसले के आगे अंग्रेज सेना की चूलें हिल गयीं और उन्हें वहां से भागकर रेजिडेंसी में शरण लेनी पड़ी। बेगम हजरत महल के बेटे के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने रेजिडेंसी को 40 दिनों तक घेरे रखा। गोलीबारी के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी के एडवर्ड पाउनी, एमटी ऐरम व सर हेनरी लॉरेंस समेत दर्जनों अंग्रेज मारे गए। रेजिडेंसी की दीवारों पर गोलियों व गोलों के निशान आज भी मौजूद हैं, साथ ही इस संघर्ष में मारे गए अंग्रेज अफसरों की कब्रें भी मौजूद हैं।

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जगह: जीपीओ (तत्कालीन रिंग थियेटर)

काकोरी ट्रेन डकैती कांड को लेकर अंग्रेज सरकार में हड़कंप मचा हुआ था। इस घटना को अंजाम देने वाले क्रांतिकारियों के बारे में सूचना देने वाले को पांच हजार रुपये के इनाम की घोषणा की गयी थी। 9 अगस्त को हुई इस घटना के बाद 26 सितंबर से पूरे प्रदेश में गिरफ्तारियों और तलाशियों का दौर चल पड़ा। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, प्रेम किशन खन्ना, हरगोविंद व तीन अन्य क्रांतिकारियों को शाहजहांपुर से अरेस्ट किया गया। जबकि, सुरेश चंद्र भट्टाचार्य, दामोदर स्वरूप सेठ, मन्मथ नाम गुप्ता, रामनाथ पांडेय व दो अन्य लोग वाराणसी जबकि, गोविंद चरण और शचींद्र नाथ विश्वास को लखनऊ से अरेस्ट किया गया। सभी का मुकदमा तत्कालीन रिंग थियेटर जो कि वर्तमान में जीपीओ है, में चलाया गया। जहां वर्ष 1927 में राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गयी।

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जगह: चारबाग रेलवे स्टेशन

साल था 1916 और तारीख थी 26 दिसंबर, यह वही तारीख थी जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व पं। जवाहर लाल नेहरू की चारबाग रेलवे स्टेशन के बाहर पहली मुलाकात हुई। दरअसल, इंडियन नेशनल कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में शामिल होने के लिये 26 दिसंबर 1916 को 27 वर्षीय जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद से ट्रेन के जरिए लखनऊ पहुंचे थे। इसी अधिवेशन में शामिल होने के लिये महात्मा गांधी भी आए हुए थे और चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने उन दोनों की पहली मुलाकात हुई। 20 मिनट तक चली इस मुलाकात में दोनों के बीच स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में बातचीत हुई। नेहरू ने गांधी जी से देश के युवाओं और मजदूर वर्ग की ओर ध्यान देने की अपील की थी.नेहरू के इन विचारों को सुनकर गांधी जी बेहद प्रभावित हुए। आजादी के बाद रेलवे ने महात्मा गांधी व नेहरू की पहली मुलाकात वाली जगह पर यादगार लम्हों को संजोने के लिये वहां गांधी उद्यान बना दिया साथ ही एक शिलापट्ट भी लगाया गया है।