- साहित्यकार बोले, मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा है हिंदी साहित्य

LUCKNOW:

जब तक मानवीय संवेदनाएं रहेंगी हिंदी साहित्य की सार्थकता बनी रहेगी। आज के डिजीटल युग में साहित्यकारों को खुद को भी अपडेट रहना चाहिए। हम सभी की जिम्मेदारी है कि गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ वहां भी काम करें। डिजीटल युग में बदलाव होता रहेगा इसलिए हमें भी थोड़ा सजग रहना होगा। ये बातें सोमवार को हिंदी संस्थान के 43वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान साहित्यकारों ने बातचीत के दौरान बताई।

नई पीढ़ी नए तरीके से लिख रही

हमारी पीढ़ी लिखने वाले युग की है। नई पीढ़ी नये तरीके से लिख रही है। डिजीटल युग में व्यापक बदलाव आ रहा है। जिसमें हिंदी साहित्य भी व्यापक दिख रहा है। जितना बुरा लोग हिंदी साहित्य को लेकर सोच रहे हैं, हालत उतने बुरे नहीं हैं। आज से सौ साल के बाद भी जब साहित्य पढ़ा जायेगा तो हम लोगों को याद किया जाएगा।

डॉ। उषा किरण खान

हिंदी कभी पीछे नहीं है

हिंदी साहित्य न तब पीछे था और न ही अब है। आज के डिजीटल युग में भी वो आगे ही बढ़ रहा है। लोग ऑनलाइन भी खूब हिंदी साहित्य को खरीद रहे हैं। हिंदी जन साधारण की भाषा और अंग्रेजी रोजगार की भाषा है। यह दुर्भाग्य है कि राजनीति के कारण हिंदी के साथ ऐसा हो रहा है। डॉ। कमल कुमार

हर कोई पढ़ा लिखा नहीं

डिजीटल युग हिंदी साहित्य के लायक नहीं है। आज के दौर में अधिकतर साहित्यकार इसे ज्यादा नहीं जानते हैं, जबकि जानना जरूरी है। यह भी सोचने वाली बात है कि कितने लोग पढ़े-लिखे हैं जो नेट को यूज करते हैं। मेरा मानना है कि जितना समय मोबाइल को देंगे उतने समय में तो कई पन्ने का साहित्य लिखा जा सकता है।

डॉ। मनमोहन सहगल

लिखने का अनुभव अलग

डिजीटल युग में सभी साहित्य की बात की जाती है। कई लोग उस ओर गये भी हैं लेकिन मैं नहीं गया। लेखन के लिए डिजीटल होना जरूरी नहीं है, क्योंकि जो धर खुद से लिखने में आती है वो डिजीटल होकर नहीं आती। हाथों से लिखने का अनुभव ही कुछ और होता है। वैसे भी हिंदी साहित्य बेहद व्यापक है।

श्रीभगवान सिंह

साहित्य मनुष्य की पहचान

हिंदी साहित्य मनुष्य की पहचान है। साहित्य की खुराक मानवीय संवेदनाएं ही हैं। जब तक इंसान की संवेदनाएं हैं हिंदी साहित्य जीवित रहेगा। डिजीटल युग आने से कई परिवर्तन हो रहे हैं। हिंदी साहित्य भी खुद को उसके अनुसार ढाल रहा है। जो आज के दौर में भी उतना ही मौलिक है जितना रहा है।

ओम प्रकाश पांडेय

अधिक रास्ते खुले

डिजीटल युग में बहुत कुछ असंपादित साहित्य सामने आ रहा है। लाभ-नुकसान कोई नहीं देख रहा है लेकिन नेट के आने से सभी के लिए और रास्ते खुले हैं। इससे साहित्यकारों की जिम्मेदारी बढ़ी है। सोच-समझकर ही कुछ भी अपलोड करना चाहिए।

सूर्य सिंह पांडेय

एक सशक्त और व्यापक माध्यम

डिजीटल युग समाज में परिवर्तन के साथ नई विधा सामने लेकर आया है। जिसे सभी को अपनाना चाहिए। यह एक सशक्त और व्यापक पहुंच वाला माध्यम है। इससे साहित्य सुरक्षित और संरक्षित हो रहा है। लोग धीरे-धीरे पढ़ रहे हैं इसलिए भविष्य डिजीटल साहित्य का ही है।

संजीव जायसवाल 'संजय'

नये शब्द मिलते हैं

ज्यादा प्रयोग होने वाले शब्दों के साथ नये शब्दों को बनाने का माध्यम मिलता है। डिजीटल के माध्यम से हम लोग अंग्रेजी के शब्दों को सरल हिंदी पर्याय शब्द बनाते हैं। लोगों से अपील भी करते हैं कि देवनागरी में ही लिखें। क्योंकि हिंदी भाषा वृहद लोक संस्कृति को व्यक्त करने का माध्यम है।

डॉ। विजय कर्ण