- सब्जी का ठेला लगाने वाले की बेटी मुमताज ने बनाई जूनियर हॉकी टीम में जगह

- खेल चुकी है कई इंटरनेशनल मुकाबले

- आज भी पिता लगाते हैं सब्जी का ठेला

LUCKNOW: परिवार के पास रहने के लिए एक ढंग का कमरा भी नहींआर्थिक स्थिति ऐसी कि गुजारा करना भी आसान नहीं था, लेकिन मुमताज ने जिंदगी में एक ही चीज सीखी थी कि नामुमकिन कुछ भी नहीं। इसी के चलते उसने कामयाबी की सीढ़ी पर पांव रखा और भारतीय जूनियर हॉकी टीम का हिस्सा बनी। मुमताज की मेहनत और लगन देख कर प्रशिक्षक भी दांतों तले अंगुलियां दबाने को मजबूर हैं। उन्होंने भी कभी नहीं सोचा था कि सब्जी का ठेला लगाने वाले की बेटी एक दिन भारतीय जूनियर हॉकी टीम में जगह बना सकेगी।

परिषदीय स्कूल में कर रही थी पढ़ाई

मुमताज ने बताया कि पांच भाई बहनों में वह चौथे नंबर पर है। कैंट में एक परिषदीय स्कूल से उन्होंने अपना खेल कॅरियर शुरू किया। उनके घर की मॉली हालत अच्छी नहीं थी। घर वाले भी मुझे हॉकी का प्रशिक्षण दिलाने को तैयार नहीं थे। उन्होंने बताया कि स्कूली खेल के दौरान उन्हें स्टेडियम आने का मौका मिला। उस समय वह रेस में हिस्सा ले रही थी। उसी दौरान बाबू स्टेडियम की हॉकी कोच नीलम सिद्दीकी की नजर मुझ पर पड़ी। मेरे प्रदर्शन और खेल के प्रति मेरा इंटरेस्ट देख कर उन्होंने मुझे हॉकी खेलने के लिए मोटीवेट किया। मैने तुरंत ही उनकी बात मान ली और पहुंच गई स्टेडियम।

घर वालों ने जताई नाराजगी

हॉकी पकड़ते ही घर में सभी लोग नाराज हो गए। किसी ने कहा लड़की है, घर के काम काज सीखे। हॉकी खेलकर क्या हासिल होगा। सभी का विरोध देख कर मैंने अपनी दिक्कत प्रशिक्षकों को बताई तो उन्होंने हमारे पैरेंट्स को समझाया। इसके बाद मेरी दीदी फराह खान ने मुझे हॉकी की ट्रेनिंग दिलाना स्वीकार कर लिया और लगातार मुझे दमदार प्रदर्शन करने के लिए कहती।

घर नहीं ले जाती थी हॉकी

मुमताज बताती हैं कि शुरुआती दौर में प्रैक्टिस के लिए खासा संघर्ष करना पड़ा। प्रैक्टिस के लि न तो ढंग की हॉकी थी, ना ही किट। मैदान में आने वाले अन्य खिलाडि़यों के पास जहां ब्रांडेड हॉकी हुआ करती थी वहीं अपनी सामान्य हॉकी से ही प्रैक्टिस करती थी। घर जाते समय सभी हॉकी लेकर जाते थे जबकि मैं अपनी हॉकी स्टेडियम में ही रखवा कर जाती थी, जिससे घर वाले इसे देख कर मुझसे नाराज न हो। उन्हें मेरा खेलना कतई पसंद नहीं था। कई बार फटे हुए जूते सिला कर महीनों चलाना पड़ता, लेकिन मैं घर में ना तो जूतों के लिए कहती, न ही हॉकी के लिये। कहीं इसकी डिमांड करने पर घर वाले अधिक नाराज ना हो जाए।

ठेला लगाते हैं पिता हफीज

मुमताज ने बताया कि मुमताज के पिता हफीज खान कैंट इलाके में सब्जी का ठेला लगाते हैं। मां कैसर घर के कार्यो के साथ ही हफीज खान का हाथ भी बंटाती है। मुमताज के साथ ही उसकी अन्य बहनें भी पिता की हेल्प करने के साथ घरेलू कामों में हाथ बंटाती हैं। खुद हफीज ने भी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी एक दिन भारतीय टीम में जगह बना लेगी। हफीज सुबह मंडी से लौटकर दोपहर के बाद अपने ठेले पर खड़े हो जाते हैं और सब्जी की बिक्री करते हैं। उनके पास जीविकोपार्जन का एक मात्र यही साधन है। ऐसे में यह तो कभी किसी ने नहीं सोचा था कि मुमताज कभी हॉकी खेलेगी।

एशिया कप में किया शानदार प्रदर्शन

वर्ष 2014 में लखनऊ हॉस्टल में प्रवेश मिलने के बाद मैंने अपने कॅरियर में पीछे मुड़कर नहीं देखा। मुमताज बताती हैं कि जूनियर नेशनल में यूपी की टीम में शानदार प्रदर्शन के लिए बतौर इनाम मेरा चयन थाईलैंड में होने वाली अंडर-18 एशिया कप के लिए भारतीय टीम में किया गया। इसके बाद 2017 में ऑस्ट्रेलिया, 2018 में नीदरलैंड और बेल्जियम में जूनियर हॉकी में शामिल होने वाली भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रही। वर्ष 2018 में बेलारू में आयोजित हुए फोर नेशन हॉकी टूर्नामेंट में भी मुमताज का प्रदर्शन बेहद शानदार रहा। सेंटर फारवर्ड की पोजिशन पर खेलने वाली मुमताज से पार पाना विरोधी टीम के खिलाडि़यों के लिए नामुमकिन था।

यह रही उपलब्धि

- फोर्थ ग‌र्ल्स अंडर-18 एशिया कप 16 से 22 दिसम्बर 2016 में भारतीय टीम ने ब्रांज मेडल जीता।

- आस्ट्रेलियन हॉकी लीग 28 सितंबर से 8 अक्टूबर तक पर्थ, आस्ट्रेलिया में भी उन्होंने दमदार प्रदर्शन किया।

- बैंकाक में यूथ ओलम्पिक गेम्स क्वालीफायर 25 से 29 अप्रैल तक खेला गया। इसमें हिस्सा लेने वाली भारतीय हॉकी टीम में शामिल रही।