कोई तकरार लिखता है, कोई इनकार लिखता है
मगर अच्छा जो ब्लॉगर है हमेशा प्यार लिखता है.
गिरीश पंकज ने बली प्रेक्षागृह में जब यह पंक्तियां पढ़ीं तो एक बारगी ऐसा लगा कि वेब और सोशल मीडिया सेंसरशिप की बात करने वाली सरकार को एक बार इन पंक्तियों के पीछे छिपे भाव को जरूर समझ लेना चाहिए। गिरीश के साथ इस हाल में कई हस्तियां मौजूद रहीं जो अभिव्यक्ति के पंख लगाकर उडऩे में यकीन रखती हैं, और शायद यही रीजन था कि जब ब्लॉगर्स को एक जगह जुटने का मौका मिला तो सरहदें उन्हें बांध न सकीं.
प्रोग्राम में लंदन से लेकर शारजाह तक के हिंदी ब्लॉगर्स ने शिरकत की और सभी ने फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की संकल्पना को साकार करने वाले इस मीडियम की सराहना की और इसको किसी भी तरह के पॉलिटिकल या गवर्नमेंट रेगुलेशन से फ्री रखने की वकालत की.
मंडे को बली प्रेक्षागृह में तस्लीम एवं परिकल्पना ने संयुक्त रूप से इंटरनेशनल हिंदी ब्लॉगर्स कान्फ्रेंस का आयोजन किया। कान्फ्रेंस में ब्लॉगर जगत के कई बड़े नाम मौजूद रहे। प्रोग्राम के इनॉगरेशन सेशन में ही साहित्यकारों और ब्लागर्स ने वेब सेंसरशिप को आड़े हाथों लिया, पर साथ ही सभी सेल्फ रेगुलेशन के फेवर में दिखे.
उद्भ्रांत ने ब्लॉग के कान्सट्रक्टिव यूज की बात की तो अरविंद मिश्र ने बताया कि कहने की सुंदरता संक्षिप्तता में होती है। सहीं यह भी बात उठी कि कहीं टेक्नोलॉजी हम पर हावी तो नहीं होती जा रही है। कहीं हम आजादी और अभिव्यक्ति के बहाने मानवीय मूल्यों की हत्या तो नहीं कर रहे हैं। ब्लॉग सिर्फ माध्यम ही नहीं विधा भी है। इसकी गरिमा और कलात्मकता का ख्याल रखा जाना चाहिए। ब्लॉग और सोशल मीडिया का इस्तेमाल तो करें पर नियंत्रित रहकर.
शिखा वाष्र्णेय ने लंदन दंगों और ओलम्पिक के दौरान सोशल मीडिया के रोल को बताते हुए कहा कि हर मीडियम की खासियत और खामियां होती हैं। हमें इसमें आई गिरावट के लिए कानून की नहीं बल्कि समझदार बनने की जरूरत है। बातचीत के दौरान पारंपरिक मीडिया में आई गिरावट और उससे निपटने पर भी चर्चा हुई। इसके साथ ही इस अवसर पर ब्लागिंग की दुनिया में बेहतर काम करने वालों को सम्मान भी प्रदान किए गए.
लखनऊ में बने ब्लॉगिंग के लिए फोरम
प्रोग्राम में सिटी के ब्लॉगर रवींद्र प्रभात ने ब्लागिंग के करीब एक दशक पूरे होने और इसपर चल रहे विवादों के मद्देनजर ब्लागर्स के लिए एक फोरम की आवश्यकता बताई। उन्होंने बताया कि इस संबंध में जल्द ही यूपी के सीएम से मिलकर स्टेट में अपनी तरह की पहली ब्लागिंग संस्था की स्थापना के लिए कहा जाएगा। ताकि इस मीडियम को आगे बढ़ाया जा सके.
पैसे कमाने में परेशान है युवा
पहली वेब पत्रिका निकालने के लिए जानी जाने वाली, शारजाह से आई पूर्णिया वर्मन से जब पूछा गया कि फेमस ब्लॉगर्स में यूथ का इन्वाल्वमेंट क्यों नहीं दिखता तो उन्होंने बताया कि इंडियन यूथ पैसा कमाने में ही परेशान है। इसमें उसकी क्रिएटीविटी बेकार हो जा रही है। दूसरी कई कंट्रीज में यूथ के पास अपनी स्किल डेवलप करने के इससे बेहतर मौके हैं। इसके बावजूद कई युवा बेहतर काम कर रहे हैं और आने वाले समय में ब्लॉगिंग के सिरमौर साबित होंगे.