लखनऊ (ब्यूरो)। इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानि आईवीएफ की मदद से निसंतान दंपत्ति संतान सुख पा सकते हैं। प्राइवेट क्लीनिक में इसका इलाज महंगा होता है। हालांकि, राजधानी के केजीएमयू के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग यानि क्वीन मेरी में आईवीएफ की सुविधा उपलब्ध है। पर कोरोना के बाद से यह क्लीनिक लगातार बंद चल रहा है, जिससे निसंतान दंपत्तियों को यहां की सस्ती सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उनको मजबूरन महंगे प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है। संस्थान के अधिकारियों के मुताबिक, जल्द ही आईवीएफ क्लीनिक शुरू कर दिया जाएगा।

निराश लौट रहे मरीज

क्वीन मेरी में रोजाना 300 से अधिक महिला मरीज दिखाने के लिए आती है, जिनमें रोजाना करीब 20 से अधिक ऐसे मरीज आते है जो संतान सुख से वंचित हैं। चूंकि यहां पर आईवीएफ क्लीनिक का संचालन होता है, ऐसे में मरीजों की संख्या भी अधिक होती है। निजी क्लीनिक में जहां यह खर्च डेढ़ लाख से शुरू होता है। वहीं, क्वीन मेरी में यह खर्च महज 35 हजार के ही करीब होता है। हालांकि, थोड़ा बहुत खर्च दवा के मद में होता है, पर वह भी बेहद कम होता है। पर कोरोना काल के बाद करीब तीन साल से यह क्लीनिक बंद है। जिसकी वजह से संतान की चाह में यहां आने वाले मरीजों को निराश होकर लौटना पड़ रहा है।

इंफर्टिलिटी के कई कारण

आईवीएफ की नोडल इंचार्ज डॉ। अंजु अग्रवाल के मुताबिक, आईवीएफ के दौरान परिपक्व अंडों को अंडाशय से निकाला जाता है। जिसे लैब में शुक्राणु द्वारा निषेचित किया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडे भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रासंफर कर दिया जाता है।

20 फीसद मामलों में आती है दिक्कत

इंफर्टिलिटी की समस्या महिला और पुरुष, दोनों में हो सकती है। पर करीब 20 फीसदी मामलों में इसका कोई कारण नहीं मिलता कि गर्भधारण न होने में क्या दिक्कत है। इसे अनएक्सप्लेंड इफर्टिलिटी भी कहते है। जहां तक महिलाओं में समस्या की बात की जाये जो इसमें फेलोपियन ट्यूब की प्राब्लम, अंडा नहीं बनना, एंडोमेट्रोयोसिस की प्राब्लम, यूटरस में प्राब्लम आदि है। साथ ही पहले कई बार अर्बाशन होना या यूटरस में इंफेक्शन होने के कारण भी गर्भाधारण में दिक्कतें आती हैं। पर हमारे यहां ओपीडी में आने वाले हर मरीज को आईवीएफ सजेस्ट नहीं किया जाता है। पूरी तरह गहन जांच के बाद ही आईवीएफ के लिए कहा जाता है। हालांकि, अभी आईयूआई की सुविधा दी जा रही है।

कुछ सामान आना बाकि

अस्पताल प्रशासन के मुताबिक, क्लीनिक में आईवीएफ के लिए जरूरी सभी उपकरण मौजूद हैं, लेकिन कुछ चीजें खत्म हो गई हैं, जिनकी डिमांड की गई है। इसमें मीडिया यानि वो साल्यूशन जिसमें अंडा को निकालकर रखा जाता है। जो अंडे को पोषित करने का काम करते है। जैसा कि गर्भाशय में मिलता है। इसके अलावा कुछ डिस्पोजेबल आइटम भी आने हैं, जो आईवीएफ के दौरान इस्तेमाल होते हैं। इनके आते ही आईवीएफ की सुविधा जल्द से जल्द शुरू कर दी जाएगी।

कुछ सामान आना बाकि है। उम्मीद है कि एक माह के भीतर आईवीएफ की सुविधा दोबारा शुरू हो जायेगी।

-डॉ। अंजु अग्रवाल, नोडल इंचार्ज आईवीएफ, केजीएमयू