लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी में केजीएमयू, लोहिया और संजय गांधी पीजीआई जैसे बड़े संस्थान हैं। वहीं, प्रदेश का सबसे बड़ा जिला अस्पताल बलरामपुर अस्पताल समेत सिविल अस्पताल, लोकबंधु अस्पताल, डफरिन, झलकारीबाई अस्पताल, भाऊराव देवरस अस्पताल और रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त अस्पताल समेत करीब 12 जिला स्तरीय अस्पताल हैं। इसके अलावा 8 अर्बन सीएचसी, 11 रूरल सीएचसी समेत पीएचसी और हेल्थ पोस्ट सेंटर भी है। जहां रोजाना 20 हजार से अधिक मरीज अपना इलाज कराने आते हैं। अकेले 10 हजार से अधिक मरीज केजीएमयू, पीजीआई और लोहिया में ही आ जाते हैं। यहां विदेशों से भी मरीज अपना इलाज कराने आते हैं।

करोड़ों खर्च होते हैं दवाओं पर

सरकारी संस्थानों में दवाओं के लिए अलग-अलग संस्थाओं द्वारा दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। मेडिकल कॉलेज जहां एचआरएफ समेत अन्य माध्यमों से दवाओं की खरीद करते हैं। वहीं, सरकारी अस्पतालों में मेडिकल कार्पोरेशन द्वारा दवा डिमांड के अनुसार उपलब्ध कराई जाती है। इसके अलावा, नेशनल हेल्थ मिशन समेत सेंट्रल गवर्नमेंट की स्कीमों के तहत भी दवा उपलब्ध या दवा के लिए बजट दिया जाता है। अगर दवाओं पर खर्च की बात करें तो केजीएमयू, पीजीआई और लोहिया जैसे बड़े संस्थानों द्वारा दवा के मद में हर माह औसतन 3-4 करोड़ खर्च किए जाते है। वहीं, बलरामपुर, सिविल आदि अन्य सरकारी अस्पतालों को मिलाकर हर माह करीब 8-10 करोड़ रुपये दवाओं के मद में खर्च किया जा रहा है।

हार्ट, किडनी आदि की नहीं मिलतीं पूरी दवाएं

दवाओं पर करोड़ों खर्च के बावजूद मरीजों को दवा काउंटर पर पूरी दवाएं नहीं मिल रही हैं। आलम यह है कि दवा काउंटर पर बैठा कर्मचारी मरीजों को बाहर से दवा खरीदने के लिए भेज देता है। सबसे ज्यादा हार्ट, किडनी, लिवर, बुखार और कैंसर की दवाओं की डिमांड रहती है, पर इन बीमारियों में काम आने वाली दवाओं की सबसे ज्यादा कमी बनी हुई है। कई बार तो पेन किलर दवाएं तक बाहर से लिखनी पड़ती हैं। वहीं, कई अस्पतालों में दवाओं की शार्टेज के चलते कम दिनों के लिए दवा उपलब्ध कराई जाती है। जिसकी वजह से मरीजों को बार-बार अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ते हैं। जिससे मरीजों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। खासतौर पर बाहर से आये मरीजों को ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते ऐसे मरीज कई बार बाहर से ही महंगी दवाएं खरीद लेते हैं।

बाहर की लिख रहे दवाएं

सरकार का सख्त आदेश है कि सरकारी संस्थानों में मरीजों को बाहर की दवा न लिखी जाये। पर इसके बावजूद डॉक्टर अलग से पर्ची पर दवा का नाम लिखकर बाहर से खरीदने के लिए भेज देते हैं। इतना ही नहीं, खास ब्रांड और मेडिकल स्टोर तक बताया जाता है। वहीं, डॉक्टर जेनरिक दवा तक लिखने से परहेज कर रहे हैं। जिसके कारण अस्पतालों के बाहर लगी मेडिकल स्टोरों पर लोगों की भीड़ ज्यादा देखने को मिलती है। ऐसे में संस्थान प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद मरीजों को दवा के लिए भटकना पड़ रहा है।