लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी के पीजीआई, केजीएमयू और लोहिया संस्थान में कार्डियक सर्जन की भारी कमी है। आलम यह है कि यहां पर एक रेजिडेंट तक नहीं है। सर्जरी की वेटिंग एक साल तक चल रही है, जिसके चलते सलाह देने से लेकर सर्जरी और आईसीयू तक फैकल्टी को देखना पड़ रहा है। इसके चलते हार्ट संबंधी सर्जरी की वेटिंग बढ़ती जा रही है। डॉक्टर्स की माने तो नीट काउंसलिंग में स्टूडेंट्स अब सीवीटीएस के तहत एमसीएच सीटें पूरी तरह से खाली चल रही है। पूरे देश में इस फील्ड में काफी कमी देखने को मिल रही है। अगर स्थिति यही रही तो आगे सरकारी अस्पतालों में कार्डियक सर्जन मिलना मुश्किल हो जायेंगे। ऐसे में निजी अस्पतालों में या विदेश जाकर महंगी सर्जरी करानी पड़ सकती है। सरकार को इस गंभीर समस्या को देखते हुए नियमों में बदलाव करने की जरूरत है।

खाली चल रही एमसीएच की सीटें

आईएसीटीएस के पूर्व सदस्य और लोहिया में कार्डियोलॉजी के एचओडी प्रो। एपी जैन बताते हैं कि इस सुपर स्पेशयलिटी फील्ड में मेहनत सबसे ज्यादा है। पर इसके बावजूद बॉन्ड भरवाना, काम के अनुसार सैलरी न होना और दूसरों के द्वारा सम्मान न मिलना बड़ी वजह है, जिससे यंग डॉक्टर्स का कार्डियक सर्जन बनने से मोह भंग हो रहा है। बीते दो साल से एमसीएच की सीट खाली चल रही है। ऐसे में आगे चलकर समस्या और गंभीर हो सकती है। वहीं, नॉन क्लीनिकल ब्रांच में कम मेहनत और जल्द अच्छी कमाई की वजह से स्टूडेंट्स उस ओर ज्यादा भाग रहे हैं। सबसे ज्यादा गेस्ट्रो, मेडिसिन, इंडोक्राइन आदि में च्वाइस भरी जा रही हैं। वहीं, केजीएमयू के सीवीटीएस के एचओडी डॉ। एसके सिंह के मुताबिक, बीते चार साल से एमसीएच की दो सीटों पर एक भी कैंडिडेट नहीं आया है। वहीं, एक्सपर्ट यानि सिखाने वाले ही नहीं होंगे तो आगे कार्डियक सर्जन कौन तैयार करेगा। इसके लिए लीडरशिप की जरूरत है। नए कार्डियक सेंटर खोलने की जरूरत है।

एनएमसी को भेजा नया प्रपोजल

इंडियन एसोसिएशन ऑफ कार्डियोथोरेसिक सर्जन (आईएसीटीएस) के एकेडमिक काउंसिल के हेड और जाने-माने कार्डियक सर्जन प्रो। शमशेर सिंह लोहचब के मुताबिक, पूरे देश में करीब 3 हजार कार्डियक सर्जन ही मौजूद हैं, जो भारतीय आबादी के मुकाबले बेहद कम हैं। सरकारी नीतियों के चलते एमसीएच सुपरस्पेशयलिटी कोर्स की काउंसलिंग में करीब 74 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिल रही है। इसकी बड़ी वजह बॉन्ड भरवाना, सैलरी बेहद कम होना, लोड अत्यधिक होना समेत अन्य कई कारण हैं, जिसके कारण डॉक्टर निजी अस्पतालों में या फिर विदेश चले जा रहे हैं। अगर इसमें सुधार नहीं किया गया, तो आगे कार्डियक सर्जन की भारी कमी हो जायेगी। इसके लिए नेशनल मेडिकल कमिशन को प्रपोजल दिया गया है। जिसके तहत एमएस के साथ 5-6 साल का इंटिग्रेटेड कोर्स ऑफर करना चाहिए, जैसा कि एम्स ऋषिकेश द्वारा चलाया जा रहा है। अगर यह नियम सभी जगह लागू हो जाये तो इससे स्टूडेंट्स को दो बार नीट देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके अलावा बॉन्ड खत्म करना और सैलरी को बढ़ाया जाना बेहद जरूरी है, जैसे अमेरिका जैसे देशों में हो रहा है। कार्डियक सर्जन बनने के लिए अत्यधिक मेहनत की जरूरत होती है। ऐसे में यंग कार्डियक सर्जन तैयार करने के लिए सरकार को भी नियमों में सुधार करते हुए आगे आना चाहिए, ताकि हम यंग डॉक्टर्स को सर्जन बनने के लिए लुभा सकें।

यहां इतनी फैकल्टी

पीजीआई -05

केजीएमयू -05

लोहिया संस्थान -04

नोट -संस्थानों में एक भी रेजीडेंट नहीं है

कार्डियक सर्जन की बेहद कमी हो चली है। एमसीएच में करीब 74 फीसदी तक की गिरावट हो रही है। इसके लिए एमएनसी को नया प्रपोजल बनाकर भेजा गया है, ताकि इसमें सुधार किया जा सके।

-प्रो। शमशेर सिंह लोहचब, हेड एकेडमिक काउंसिल, इंडियन एसोसिएशन ऑफ कार्डियोथोरेसिक सर्जन