लखनऊ (ब्यूरो)। संजय गांधी पीजीआई में प्रदेश के साथ अन्य राज्यों और देशों से भी मरीज इलाज कराने आते हैं, जिसमें अधिकतर मरीज गंभीर रोग वाले होते हैं। उनको एडवांस जांचें लिखी जाती हैं। इतना बड़ा संस्थान होने के बावजूद यहां महज एक ही एमआरआई मशीन लगी है। वो भी करीब 12 वर्ष पुरानी हो चुकी है और कई मौकों पर बंद भी हो जाती है। मेंटीनेंस कंपनी ने भी इसे बनाने से हाथ खड़े कर दिए हैं, जबकि एमआरआई के लिए दो से तीन माह की वेटिंग चल रही है।

मशीन हुई 12 साल पुरानी

पीजीआई में इस समय एक ही एमआरआई मशीन होने से जांच का लोड बढ़ गया है। यहां रोजाना 3 हजार से अधिक मरीज आते हैं। जिसमें डॉक्टर द्वारा 60-80 मरीजों को एमआरआई जांच के लिए लिखा जाता है। पर एक ही मशीन होने की वजह से महज 20-25 जांचें ही हो पा रही हैं, क्योंकि रेडियोलॉजी विभाग में लगी एमआरआई मशीन को लगे हुए 12 वर्ष हो चुके हैं, जबकि मेटीनेंस करने वाली कंपनी 10 वर्ष तक ही देखरेख का काम करती है। ऐसे में, मशीन खराब होने पर जब अधिकारी इसे बनाने के लिए कंपनी को फोन करते है, तो कंपनी आनाकानी करने लगती है।

मरीजों की दिक्कत बढ़ी

संस्थान में एक ही एमआरआई मशीन होने से दिक्कतें बढ़ रही हैं, जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। क्योंकि जांच के लिए दो-तीन माह की वेटिंग चल रही है। कई बार गरीब मरीज बाहर से डबल फीस देकर जांच कराने को मजबूर हो जाते हैं। संस्थान में कई माह पूर्व पीपीपी मॉडल और संस्थान द्वारा स्वयं एक-एक एमआरआई मशीन लगाने की योजना बनी थी, पर अभी तक मशीन आ नहीं पाई है, जिससे मरीजों की समस्या और बढ़ रही है।

संस्थान में जल्द दो एमआरआई मशीनें आ रही हैं। एक पीपीपी मॉडल और एक गवर्नमेंट से मिल रही है। उम्मीद है कि अगले पांच-छह माह में मशीनें आ जायेंगी।

-प्रो। आरके धीमन, निदेशक, एसजीपीजीआई