- नॉन परफॉर्मिग असेट्स में फंसा बैंकों का हजारों करोड़ रुपा

यूपी वालों ने डकारे 26 हजार करोड़

- प्राइवेटाइजेशन, मर्जर के विरोध में बैंक

13 लाख करोड़ डूबेगा एनपीए फंड

LUCKNOW: एसोसिएट बैंकों के मर्जर और सरकारी बैंकों के निजीकरण का विरोध अब तेज हो रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि ऐसा करने से ना केवल बैंकों में जमा 80 लाख करोड़ रुपये प्राइवेट हाथों में चले जाएंगे, बल्कि 13 लाख करोड़ रुपये का नॉन परफॉर्मिग असेट्स (एनपीए) फंड भी डूब जाएगा। जिसमें से अकेले यूपीवाले ही सरकारी बैंकों का 26 हजार करोड़ रुपया डकारे बैठे हैं। ऐसे में बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों की डिमांड है कि सरकार पहले इस पैसे को वसूल करने का बंदोबस्त करे।

पहले बुला ली गई हड़ताल

सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन और मर्जर के विरोध में पहले 29 जुलाई को स्ट्राइक कॉल की गई थी। इसमें ऑल इंडिया बैंक इंप्लाई एसोसिएशन और ऑल इंडिया बैंक आफिसर्स एसोसिएशन ने शामिल होने का फैसला किया है। लेकिन, वित्त मंत्रालय द्वारा तेजी से लिए जा रहे फैसलों को देखते हुए स्ट्राइक को 16 दिन पहले यानी 13 जुलाई को करने का फैसला किया गया। लेकिन, इसमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों और कर्मचारियों ने शामिल होने से मना कर दिया। एसोसिएट बैंक के कर्मचारी 12 और 13 जुलाई के अलावा 28 और 29 जुलाई को भी स्ट्राइक पर रहेंगे।

मर्जर से बेहतर नया बैंक बनाएं

सेंट्रल फाइनेंस मिनिस्ट्री का प्लान है कि जितने भी एसोसिएट बैंक हैं, उन्हें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ मर्ज कर दिया जाए। इनमें स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावनकोर और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर शामिल है। इन बैंकों का कुल बिजनेस नौ लाख 6 हजार करोड़ रुपये का है। ऐसे में डिमांड यह है कि इन बैंको को मर्ज करने के बजाय एक नया बैंक खोल कर सभी को उसमें मर्ज किया जाए।

क्या होता है एनपीए

यूपी बैंक इम्प्लाईज यूनियन के एजीएस दीप कुमार वाजपेई बताते हैं कि एनपीए यानी नॉन परफार्मिग असेट्स उसे कहते हैं, जब उपभोक्ता बैंकों से कर्ज लेता है और उसकी लगातार तीन महीने की किस्त जमा नहीं कर पाता। इसके बाद बैंक इसे एनपीए कैटेगरी में डाल देता है। इस एमाउंट को रिसीव करने के लिए डेप्थ रिकवरी ट्रिब्यूनल का सहारा लिया जाता है, जिसमें कई साल लग जाते हैं। अंत में ओटीएस यानी वन टाइम सेटेलमेंट का सहारा लिया जाता है, जिसमें बैंकों को नुकसान उठाता पड़ता है।

क्यों है परेशानी

बैंकों के लिए दिक्कत यह है कि उसका दूसरे सेक्टर से होने वाला प्रॉफिट भी एनपीए में मिला दिया जाता है, जिससे प्रॉफिट कम और नुकसान ज्यादा होता है। एक अधिकारी का कहना है कि कई बार सरकारी योजनाओं के तहत लिए गए लोन को लोग इसलिए नहीं चुकाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि मौजूदा या आनेवाली सरकार इसे माफ कर देगी।

यूपी में किस बैंक का कितना एनपीए

बैंक रकम (करोड़ रु। )

पंजाब नेशनल बैंक - 6000

बैंक ऑफ बड़ौदा - 3140

बैंक ऑफ इंडिया - 1666

इलाहाबाद बैंक - 1254

सेंट्रल बैंक - 898

केनरा बैंक - 736