लखनऊ (ब्यूरो)। आब्स एंड गाएनी विभाग की डॉ। रेखा सचान के मुताबिक उनके पास 25 वर्षीय महिला को परिजन सिजेरियन के 10 दिन बाद लाए। उसे एनीमिया और सेप्सिस (इंफेक्शन) था। अंदर पस पड़ गया था। वो इतनी कमजोर थी कि बोल और चल तक नहीं पा रही थी। उसे वेंटिलेटर पर भर्ती किया गया और डिस्टेक्टमी की गई। इसके बाद एंटीबायटिक ट्रीटमेंट शुरू किया गया।

गुलियन बैरे सिंड्रोम की मरीज

डॉ रेखा के मुताबिक मरीज ठीक होने के बाद भी पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही थी। ऐसे में उसकी नर्व कंडक्शन वेलोसिटी जांच कराई तो पता चला कि महिला गुलियन बैरे सिंड्रोम से पीडि़त है। यह एक तरह की नसों की कमजोरी होती है।

प्रेग्नेंसी में बेहद रेयर बीमारी

भारत में प्रेग्नेंसी के दौरान ऐसे मामले बेहद रेयर होते हंै। एक लाख महिलाओं में करीब 1.2 से 1.8 फीसद महिलाओं में यह बीमारी होती है। डॉ। रेखा सचान के मुताबिक ट्रीटमेंट के लिए इम्युनोग्लोबिन थेरेपी दी गई। जिसके लिए करीब 5 इंजेक्शन दिए गए। एक माह तक महिला का इलाज किया गया और ठीक होने पर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया। महिला के ट्रीटमेंट में प्रो। रेखा सचान, डॉ। तमृता कुमार, डॉ। राधे श्याम और डॉ। जिया अरशद शामिल रहे।

यह ही जीबी सिंड्रोम

केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ। आरके गर्ग क मुताबिक ब्रेन और स्पाइनल कार्ड से नर्व होते हुए मसल्स में जाती है। वहां से कमांड मिलने के बाद बॉडी का मूवमेंट होता है। इसमें दिक्कत हो जाए तो आदमी को चलने-फिरने और उठने बैठने में दिक्कतें होती है। उसी को जीबी सिंड्रोम कहते है। इसके दो कारण होते है। पहला यह कि यह इंफेक्शन होने के बाद हो सकता है। दूसरा, यह कोई वैक्सीन लगने के बाद साइड इफेक्ट के कारण हो सकता है। 30 फीसदी मामले सांस की नली में यह देखने को मिलते है।

प्रेग्नेंसी के बाद जीबी सिंड्रोम का मामला मेरे सामने पहली बार आया है। महिला मरीज करीब एक माह तक भर्ती रही, जिसे स्वास्थ होने के बाद डिस्चार्ज किया गया।

डॉ रेखा सचान, क्वीन मेरी