लखनऊ (ब्यूरो)। शोध वही है जो इंसानी जीवन को आसान बनाने की कोशिश करे। विज्ञान के बढ़ते दायरे को और आगे ले जाने में शहर के युवाओं का भी रोल बढ़ रहा है। ये युवा न सिर्फ अपने शोधों से लोगों को फायदा पहुंचाने का काम कर रहे हैं बल्कि अपनी शोधों के जरिए देश समेत विदेशों में भी अपना परचम लहरा रहे हैं। किसी ने पहली बार दुनिया के बड़े साइंस जर्नल में अपने शोध के जरिए देश का नाम रोशन किया, तो किसी ने डीएसटी अवसर अवार्ड अपने नाम किया। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के मौके पर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने कुछ ऐसेे ही युवा वैज्ञानिकों और उनकी शोधों के बारे में जाना। पेश है एक खास रिपोर्ट

डीएसटी अवसर अवार्ड अपने नाम किया

एनबीआरआई के शोध छात्र गौरव जैन पौधों में डिफेंस मकैनिज्म पर काम कर रहे हैं। एनबीआरआई के प्लांट मॉलिक्यूलर एंड बायोटेक्नॉलजी डिपार्टमेंट में सीनियर रिसर्च फेलो गौरव ने एक टोबैको की ऐसी ट्रांसजेनिक क्रॉप डिवेलप की है, जिसमें मेथेनॉल की मात्रा अधिक पाई जाती है। गौरव बताते हैं कि यह मेथनॉॅल एक ऐसा कंपाउंड है जो पौधों में कीटों से लडऩे के लिए डिफेंस मकैनिज्म को बढ़ावा देता है। हम कह सकते हैं कि जब कोई पौधा स्ट्रेस में होता है तो वह मेथेनॉल के जरिए दूसरे पौधों से कम्युनिकेट करके उन्हें कीटों से बचाव के लिए प्रेरित करता है। हमने एक ऐसा जीन पेक्टिन मिथेलाइनएस्टेरस खोजा है जो पौधों में मिथेनॉल कंपाउंड को ज्यादा मात्रा में बनाता है ताकि पौधे खुद को कीटों से बचा सकें और भविष्य में फसल बर्बाद न हो। इस शोध के राइटअप के लिए मुझे डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की ओर से इस साल का डीएसटी अवसर अवार्ड भी मिला है। इस अवार्ड के लिए देशभर में 100 लोगों को चुना जाता है।

बीटरूट क्रैकर और खजूर की गुठली के मफिन्स

सोसायटी में बढ़ रही हेल्थ अवेयरनेस को देखते हुए इंटीग्रल यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने भी हेल्दी ब्रेकफास्ट के लिए क्रैकर, कुकीज और मफिन्स तैयार किए हैं। फूड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के थर्ड ईयर स्टूडेंट्स ने चुकंदर के छिलके, अनार के छिलके और खजूर की गुठली से बिस्टिक, मफिन्स और क्रैकर तैयार किए हैं। छात्र तौकीर ने बताया कि आमतौर पर हम लोग अनार और चुकंदर के छिलके को फेंक देते हैं, लेकिन इसमें कई न्यूट्रियंट्स होते हैं। इसके अलावा खजूर की गुठली को भी अक्सर फेंक दिया जाता है। ऐेसे ग्रुप ने कुछ हेल्दी और न्यूट्रिशन वाले प्रोडक्ट बनाने पर विचार किया। छिलकों और गुठली को सुखाकर उनको पाउडर फॉर्म में बनाने के बाद उनका इस्तेमाल कुकीज, क्रैकर और मफिन्स में किया ताकि बच्चे और डायबिटिक लोग भी इसे इस्तेमाल कर सकें। टीम में पीएचडी स्कॉलर प्रियंका दुबे, साक्षी, श्वेता के साथ टीम के अन्य सदस्य शामिल हैं।

क्रिस्पर कैस 9 टेक्नोलॉजी से एमआईपेप खत्म

एनबीआरआई के शोधार्थी रहे और सीमैप में डीएसटी इंस्पायर्ड फैकल्टी डॉ। आशीष शर्मा ने क्रिस्पर कैस 9 टेक्नोलॉजी के जरिए पौधों में मौजूद पोषक तत्वों में जरूरत के हिसाब से बदलाव को लेकर शोध किया। आशीष बताते हैं कि क्रिस्पर कैस 9 टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल एराबिडोप्सिस पौधे में किया। पौधे में जीन जोकि छोटे-छोटे पेपटाइड या प्रोटीन बनाता है, उसे डिफाइन कर आइसोलेट किया। इसके बाद उन्होंने उन एमआईपेप माइक्रो आरएनए पेपटाइड को एडिटिंग कर खत्म कर दिया, जिससे पौधे में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की मात्रा बहुत बढ़ गई। आशीष शर्मा के मुताबिक, इन छोटे-छोटे पेपटाइड को अलग से निकाल कर अगर पौधे में बाहर से डाला जाए तो यह पौधे की ग्रोथ को काफी हद तक बढ़ा देंगे। उनका शोध नेचर ऑफ साइंस के नेचर प्लांट जनरल में पब्लिश होने वाला पहला शोधपत्र है। उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन, डेनमार्क में टीचर ऑफ द ईयर का खिताब भी मिला है। आशीष फिलहाल सीमैप के मेडिसिनल प्लांट्स में इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके मेडिसिनल वैल्यू के बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इस रिसर्च के लिए उन्हें डीएसटी से प्रोजेक्ट मिला है।