- कचहरी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं

- पब्लिक और वाहनों की चेकिंग की व्यवस्था नहीं

Meerut: सुरक्षा की दृष्टि से जिला एवं सत्र न्यायालय बेहद संवेदनशील है। पूर्व में भी कचहरी कई बार रक्तरंजित हो चुकी है। शनिवार को वाराणसी के कचहरी में बम बरामद हुआ। ऐसे में कचहरी की सुरक्षा व्यवस्था जिम्मेदार विभाग की प्राथमिकता में होनी चाहिए। बावजूद इसके कचहरी की सुरक्षा दोयम दर्जे की है। रोजाना सैकड़ों लोगों की कचहरी में में आमद होती है। इनकी चेकिंग की परिसर में कोई व्यवस्था नहीं है। व्यवस्था लागू करने से पहले जिम्मेदारों को किसी भीषण हादसे का इंतजार है।

इन हादसों से दहल चुकी है कचहरी

5 नवंबर 2014 को भरी कचहरी में गवाही के लिए जेल से लाये गए नितिन गंजा को गोलियों से भून दिया गया था।

18 मार्च 2013 को मेरठ कचहरी में पेशी पर आए शातिर उधम सिंह और बदन सिंह आमने सामने आ गए थे। पुलिस में हड़कंप मच गया था और कचहरी रक्तरंजित होने से बच गई थी।

4 सितम्बर 2011 को एक वकील पर पिस्टल से गोली चलाकर जानलेवा हमले करने का प्रयास किया गया था।

15 अक्टूबर 2006 को कचहरी में ही कुख्यात रविंद्र भूरा की गोलियों से भून कर बदमाशों ने पुलिस की चूलें हिला दीं थी। इस वारदात में सिपाही समेत तीन अन्य भी मारे गए थे।

बेरोकटोक आवाजाही

कचहरी में गंभीर अपराध होने के बावजूद सुरक्षा व्यवस्था को लेकर यहां पर पुख्ता इंतजाम नहीं है। महज सीसीटीवी लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी गई। कचहरी के दो मेन गेट हैं। सैकड़ों लोग रोज आते-जाते हैं। लेकिन इनकी चेकिंग की कोई व्यवस्था नहीं है।

वाहनों की चेकिंग नहीं

कचहरी में वाहनों की आमद भी काफी होती है। वाहन सबसे आसान जरिया होते हैं किसी भी प्रकार की आपत्तिजनक वस्तु को छिपाकर ले जाने के लिए। कचहरी में वाहनों की चेकिंग की भी कोई व्यवस्था नहीं है। सीजीएम कोर्ट के सामने वाहनों की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। वहीं गेट के अलावा कचहरी में घुसने के कई एंट्री प्वाइंट हैं। मेरठ बार एसोसिएशन, कलेक्ट्रेट, एसएसपी ऑफिस की तरफ से भी कोई भी कचहरी में घुस सकता है।