इनको कई बार खोला गया, लेकिन आज लंबे समय से यही शिकायत पेटिकाएं अपने खुलने का इंतजार कर रही हैं। अंदर क्या है कोई यह जानने की कोई कोशिश नहीं करता। आखिरकार ये शिकायत पेटिकाएं डिब्बे बन गए हैं।

पुलिस की नाफरमानी पर लगी थी शिकायत पेटिकाएं

पब्लिक के मुंह से पुलिस की शिकायतें सुनकर पूर्व कप्तान और वर्तमान में डीआईजी के। सत्यनारायण परेशान हो गए थे। पुलिस पब्लिक को नहीं सुनती, इसलिए पब्लिक अधिकारियों के चक्कर काटती है। शहर में छेड़खानी, चेन लूट, पर्स लूट और चोरी की घटनाएं अधिक बढ़ चुकी थीं। बदमाशों की आमद इस शहर में अधिक हो गई थी। इसके चलते 13 जुलाई को शिकायत पेटिकाएं लगाने का निर्णय लिया गया था। शुरूआत में शहर के अंदर 25 जगहों पर शिकायत पेटिकाएं लगाई गई थीं। इसके बाद इनकी संख्या बढ़ाकर पचास कर दी गई थी।

यहां लगी थीं

शुरूआत में 25 शिकायत पेटिकाएं शहर के गल्र्स कॉलेज और कुछ मुख्य चौराहों पर लगाई गई थीं। जिनमें आरजी कॉलेज, इस्माईल डिग्री कॉलेज, सोफिया गल्र्स स्कूल, सेंट मैरी स्कूल, कनोहरलाल डिग्री कॉलेज, मेरठ कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, पीवीएस मॉल, मेट्रो प्लाजा, ईरा मॉल, बेगमपुल, नेशनल कॉलेज, डीएन कॉलेज, एनएएस कॉलेज, मिलांज मॉल, चाट बाजार, बच्चा पार्क, बुढ़ाना गेट, हापुड़ अड्डा, भैसाली रोडवेज बस अड्डा, सोहराब गेट बस अड्डा, पैंठ बाजार, मेरठ पब्लिक स्कूल, दीवान पब्लिक स्कूल, आईआईएमटी गंगानगर शामिल थे।

अब ये हाल है

इन शिकायत पेटिकाओं को खोलने का दिन रविवार नियत किया गया था। सप्ताह में रविवार को इनके अंदर से शिकायत पत्र निकाले जाते थे। इन शिकायत पेटिकाओं की चाबी एसएसपी के पास रहती थी। कई रविवार शिकायत पेटिकाएं खोली गईं। इनमें शिकायतें मिलीं। रेस्पांस अच्छा था, इसको देखते हुए इनकी संख्या पचास कर दी गई थी। कप्तान प्रमोशन के बाद डीआईजी बनने वाले थे। तभी से पेटिकाएं लावारिस हो गई। जिनको किसी ने कभी खोलने की कोशिश नहीं की। आज इनकी ये हालत है कि ताले टूटे हुए हैं और जिन पर ताले हैं वे जंग खा गए हैं, जिनमें शायद अब ताली भी लगनी मुश्किल होगी।

हुई है कार्रवाई

शिकायत पेटिकाएं लगाए जाने के कुछ समय बाद तक शिकायतों का निस्तारण होता रहा। शिकायतों के अनुसार कार्रवाई हुईं। काफी शिकायतें अटपटी भी होती थीं। लेकिन काफी शिकायतें काम की होती थीं। कई लोगों की शिकायत पर कार्रवाई भी हुई। इसके बाद लोगों में काफी रुचि भी बढ़ी थी। मगर अब इन शिकायतों को निकालने के लिए कोई नहीं है। पब्लिक भी अब सीधे अधिकारियों के पास शिकायत लेकर जा रही है।

कुछ शिकायतें

- सर मैंने बारहवीं पास की है। कृप्या मेरी नौकरी लगवा दीजिए। मेरे पिताजी बीमार रहते हैं।

- मैं एक लडक़ी से शादी करना चाहता हूं। मैरे पिताजी को पसंद नहीं है। मेरी शादी करवा दीजिए।

- चौराहे पर लडक़े शराब पीते हैं जो आती जाती लड़कियों से छेड़खानी करते हैं। पूरा इलाका परेशान है।

- कुछ लडक़े चौराहे पर खड़े रहते हैं। ये बदमाश किस्म के हैं। मेरे पिताजी रोकते हैं तो उनको धमकी देते हैं।

- सर मैं एक लडक़ी से प्यार करता हूं। उसको पसंद करता हूं। मुझे उससे शादी करनी है।

- इलाके में एक गुंडा रहता है। जो चोरी, लूट और कई वारदातें करता है। जिस पर कई मुकदमे हैं। उस पर कार्रवाई करें। उसने जीना हराम कर रखा है।

- कॉलेज के बाहर गुंडों की फौज रहती है। जो आती जाती लड़कियों को छेड़ते हैं।

" इन शिकायत पेटिकाओं के तो ताले तक भी तोड़ दिए गए हैं। पुलिस थाने में ही नहीं सुनती तो इन पेटियों की शिकायतों पर क्या सुनेगी."         - डॉ। रजनीश

"ये पेटियां तो बस टांग दी हैं। इनमें शिकायत डालने से होता कुछ नहीं है। हमने कई शिकायत डाली लेकिन कभी कुछ कार्रवाई नहीं हुई."             - शेरसिंह कपूर

 

"इन पेटिकाओं को अब एसएसपी देखेंगे। हम तो इधर आ गए। अब उनकी ही जिम्मेदारी बनती है."

- के। सत्यनारायण, डीआईजी रेंज