मेरठ (ब्यूरो)। मेडिकल कॉलेज में मरीजों को तमाम सुविधाएं मिलती हैैं, इसमें कोई दो राय नहीं। मगर समय पर मिलती है या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है। मगर ये सच है कि मेडिकल कॉलेज में सस्ती जांच की सुविधाएं अक्सर लंबी वेटिंग के चलते जरूरतमंदों को मिल ही नहीं पाती है। अब इसे स्टाफ की कमी कह लीजिए या वहां फैली अव्यवस्था का बोलबाला। एक उदाहरण से समझते हैैं कि लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज में मरीज अगर एमआरआई या सिटी स्कैन कराना है तो कम आठ से नौ माह तक वेट करना पड़ेगा। यानी सीधे तौर पर कहें तो मरीज को आज एमआईई या सीटी स्कैन कराना है तो उसे अगले साल की डेट दी जा रही है।

दो हजार का एमआरआई
गौरतलब है कि प्राइवेट के मुकाबले काफी कम दाम में मेडिकल कॉलेज में एमआरआइ, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड और एक्सरे की सुविधा उपलब्ध है। मगर चिकित्सकों और तकनीशियनों की कमी के कारण ये सुविधा मरीजों को नहीं मिल पा रही है। आमतौर पर प्राइवेट सेंटरों पर एमआरआइ कराने पर छह हजार, सीटी स्कैन कराने पर 1500-तीन हजार, अल्ट्रासाउंड पर 1200 और एक्सरे पर 500 रुपये खर्च आता है। मगर मेडिकल कॉलेज में एमआरआइ दो हजार, सीटी स्कैन 600 से 1500, अल्ट्रासाउंड 110 और एक्सरे 120 रुपये के यूजर चार्ज पर उपलब्ध हैं। यह आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के लिए अच्छी सुविधा है लेकिन उन्हें इसका समय पर लाभ नहीं मिल पाता है। मरीजों को एमआरआई और सिटी स्कैन के लिए आठ से नौ माह का लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।

आठ से नौ माह वेटिंग
मेडिकल कॉलेज के रेडियोलॉजी विभाग में चिकित्सकों और तकनीशियनों की कमी के चलते इन दिनों एमआरआइ की वेटिंग सात से आठ माह तक चल रही है। सीटी स्कैन के लिए भी कम से कम दो माह की वेटिंग चल रही है। जब इतनी लंबी वेटिंग का कारण जानना चाहा तो पता चला कि एमआरआई और सीटी स्कैन करने के लिए एक ही तकनीशियन है। इतना ही नहीं, आमतौर से एक एमआरआइ करने में आधा घंटे से 45 मिनट तक का समय लगता है। एक शिफ्ट में अधिक से अधिक पंद्रह से बीस एमआरआई ही हो पाते हैं। मानक के अनुसार तीन तकनीशियन हों तो एमआरआइ और सीटी स्कैन समय पर हो सकते हैं। मानक के अनुसार आठ एक्सरे तकनीशियन होने चाहिए, जबकि इनकी संख्या मात्र तीन है। विभाग में छह चिकित्सा शिक्षक (एक प्रोफेसर, दो एसोसिएट प्रोफेसर और तीन असिस्टेंट प्रोफेसर) के पद स्वीकृत हैं, लेकिन एक की भी नियुक्ति नहीं हो पाई है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड के दौरान विभाग के रेजिडेंट डॉक्टरों की मदद ली जाती है।

निजी सेंटर्स को फायदा
स्थिति यह है कि रोजाना एक रूपए की पर्ची पर ओपीडी में इलाज कराने आने वाले गरीब मरीजों को लंबी-लंबी वेटिंग के कारण अतिरिक्त खर्च कर निजी सेंटरों पर जाना पड़ रहा है और मंहगे-मंहगे टेस्ट कराने पड़ रहे हैं। इसका फायदा मेडिकल कालेज के बाहर बने दर्जनों निजी लैबों को मिल रहा है। इसका ताजा उदाहरण है कि गढ़ रोड पर मेडिकल कालेज के आसपास एक दर्जन से अधिक निजी डायग्नोस्टिक सेंटर खुल चुके हैं और सभी सेंटर्स पर मेडिकल कालेज के ही 70 प्रतिशत मरीजों की भरमार रहती है।

लगातार सिर में दर्द की शिकायत के चलते पिछले महीने पत्नी को एमआरआई जांच के लिए डॉक्टर ने लिखा था। मेडिकल कालेज में जांच के लिए तीन महीने बाद यानि अक्टूबर की डेट दी गई थी वह भी यह कहा तब आकर एक बार पता कर लेना।
संजय

लंबे समय से मेरी कमर में दर्द की समस्या थी। इसके लिए डॉक्टर ने रीढ़ की हड्डी का एमआरआई लिखा था। पिछले सप्ताह मेडिकल कालेज में एमआरआई के लिए गया था लेकिन पूरे महीने नंबर नहीं आया। थक-हारकर मैैंने प्राइवेट में ही एमआरआई करा लिया।
आशा राम

एमआरआई के तीन दिन पहले पता किया था चार माह की वेटिंग चल रही है। अगर सस्ते इलाज की सुविधा देनी ही नहीं है तो फिर दिखावे के लिए इतनी बड़ी-बड़ी मशीनें क्यों मेडिकल कॉलेज में लगा रखी हैैं। लंबी वेटिंग के चलते मरीजों को प्राइवेट में ही जांच करानी पड़ती है।
सुभाष

जांच के लिए वेटिंग की समस्या को दूर करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है जबकि मशीनों की संख्या कम है। इसलिए वेटिंग पीरियड बढ़ जाता है।
आरसी गुप्ता, प्रिंसिपल, मेडिकल कॉलेज