-नगर निगम की कैबिनेट बैठक में उठी प्री-ऑडिट की मांग

-कहा, भुगतान के बाद ऑडिट कराने का नही है फायदा

-पिछले पांच सालों में निगम में नहीं हुआ कोई भी ऑडिट

Meerut: नगर निगम की कैबिनेट बैठक के दौरान सदस्यों ने प्री-ऑडिट की मांग रखी। सदस्यों का कहना था कि निगम में भिन्न-भिन्न तरीकों से करोड़ों रुपए का भुगतान किया जाता है, लेकिन भुगतान से पूर्व किसी भी फाइल का कोई ऑडिट नहीं किया जाता, यदि किया भी जाता है तो वह भुगतान के बाद किया जाता है जबकि भुगतान के बाद ऑडिट का कोई महत्व नहीं रह जाता। कैबिनेट मेंबर्स द्वारा उठाई गई प्री-ऑडिट की मांग पर मुख्य नगर लेखा परीक्षक भड़क गए और इसको नियम के विपरीत बताया। एमएनएलपी के नकारात्मक रुख पर कार्यकारिणी सदस्यों ने हंगामा कर दिया।

क्या है प्री-ऑडिट

कैबिनेट बैठक की शुरुआत में कार्यकारणी सदस्य शाहिद अब्बासी की ओर से सवाल उठाया गया कि नगर निगम में हर साल करोड़ों रुपए का भुगतान किया जाता है, तो ऐसे में फाइलों का प्री-ऑडिट क्यों नहीं कराया जाता। पार्षद ने कहा कि फाइल का भुगतान करने के बाद ऑडिट कराने का कोई महत्व नहीं रह जाता क्योंकि निगम की ओर से पैसा रिलीज कर दिया जाता है। इस कारण नगर निगम को हर साल लाखों रुपए के घाटा का सामना करना पड़ रहा है। पार्षद की बात पर भड़के मुख्य नगर लेखा परीक्षक सचिदानंद त्रिपाठी ने कहा कि नियम में प्री-ऑडिट करने का कोई प्रावधान नहीं है। लेखा परीक्षक के अडि़यल रवैये से खफा कैबिनेट मेंबर्स ने बैठक में हंगामा कर दिया।

पांस साल से ऑडिट नहीं

कार्यकारिणी सदस्य गजेन्द्र गुर्जर ने सवाल उठाया कि नगर निगम अधिनियम में प्रावधान है कि मुख्य नगर लेखा परीक्षक निगम में होने वाले आय-व्यय के ऑडिट का पूरा ब्यौरा प्रति माह कार्यकारणी के समक्ष प्रस्तुत करें, बावजूद इसके पिछले पांच सालों से नगर लेखा परीक्षक की ओर से एक बार भी आय-व्यय का ब्यौरा कार्यकारिणी के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। सदस्यों की इस मांग पर लेखा परीक्षक ने जल्द ही ब्यौरा प्रस्तुत करने का आश्वासन दिया। इस मौके पर हाजी सरताज, प्रमोद खड़ौली, परमानंद उर्फ पम्मी, तहसीम अंसारी, हरीश व पूजा वाल्मीकि आदि सदस्य मौजूद रहे।