-सरकारी विभागों में उपेक्षित दिव्यांग, नहीं रखा जाता सुविधाओं का ख्याल

-व्यवस्था से जूझ रहे दिव्यांग पल- पल हो रहे उपेक्षा का शिकार, विभागों में शौचालय पर ताला, आने-जाने के लिए रैंप नहीं

Meerut : प्रधानमंत्री के 'विकलांग' के 'दिव्यांग' कह देने से क्या होता है? बता दीजिए, किसी एक दिव्यांग को कोई सहूलियत मिली हो। विकास भवन में टूटा पड़ा शौचालय बन गया या कलक्ट्रेट के शौचालय का ताला खुल गया। आज भी हिकारत की नजर से देखते हैं पेंशन लेने जाओ तो, सरकारी विभागों में उपेक्षित तो हैं ही कहीं-कहीं दुत्कार भी मिल जाती है। 'सरकार' की छोड़े हमें तो 'परिवार' में भी सम्मान नहीं मिलता। यह पीड़ा है भारतीय विकलांग उत्थान परिषद के सचिव दिव्यांग पुण्य प्रताप सिंह की। 35 सालों से दिव्यांग की लड़ाई लड़ रहे सिंह की 'जिम्मदारों' से नाराजगी है।

'अपनों' की नहीं 'अपने' का दर्द

एमडीए के संपत्ति विभाग में तैनात एक कर्मचारी दिव्यांग हैं। दोनों पैरों से चलते में लाचार कर्मचारी अपनी स्कूटी से रोजाना दफ्तर तक पहुंचने के लिए गेट की सीढ़ी पार करते हैं। अफसर ने यदि बुला लिया जो जान लीजिए कि आफत की आ गई। संकरा जीना चढने में कर्मचारी को पसीना छूट जाता है। बताते हैं कि कई बार बोला, सुनवाई नहीं हुई तो कहना छोड़ दिया। दर्जा छोडि़ए अधिकार मिल जाए, बस। एमडीए में दिव्यांगों के आने-जाने के लिए रैंप नहीं है तो शहर बनाने वाले विभाग ने एक शौचालय नहीं बनाया। परिसर में स्थित सूचना कार्यालय तक पहुंचने के लिए भी रैंप नहीं है।

नगर निगम

शहर का सबसे अधिक महत्वपूर्ण विभाग समझा जाता है, नगर निगम। चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार जहां दिव्यांगों की सुविधाओं के लिए तमाम तरह की मुहिम चला रही है, वहीं इस महत्वपूर्ण विभाग ने अपनी जिम्मेदारी से आंखे मूंद रखी हैं। आलम यह है कि कोई जरूरतमंद दिव्यांग निगम के दफ्तर तक नहीं पहुंच सकता। यह लापरवाही का ही नतीजा है कि निगम प्रशासन ने दिव्यांगों के लिए रैंप तक का निर्माण कराना जरूरी नहीं समझा।

बिजली विभाग

रोजाना सैकड़ों शहरवासियों को पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम कार्यालय तक आना-जाना। कनेक्शन, डिस्कनेक्शन, बिल जमा कराने से शिकायत तक की प्रक्रियाओं के लिए आज भी दिव्यांग कंज्यूमर्स को एक सहारे की तलाश होती है। हाईटेक मुख्यालय में लिफ्ट जैसे सुविधाएं हैं किंतु दफ्तर के भीतर तक पहुंचने को लाचार हैं।

शिक्षा विभाग

शिक्षा के सरकारी विभाग क्षेत्रीय बोर्ड कार्यालय जहां पर हर रोज हजारों लोगों में से सैकड़ों दिव्यांगों का आना जाना होता है। उस विभाग में दूर-दूर तक कही भी दिव्यांगों के लिए एक रैम्प तक नही है।