-शहर में रोजाना वेस्ट हो रहा है पीने का करोड़ों लीटर पानी

-मेरठ के दो ब्लॉक डार्क और तीन ब्लॉक पहुंचे क्रिटिकल जोन में

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जनपद -- मेरठ

आबादी -- बीस लाख

गांव -- 663

ब्लॉक -- 12

शहर में जनसंख्या- 49 फीसदी

शहर में पानी की खपत - 1940 लाख लीटर रोजाना

शहर में पानी की उपलब्धता - 984 लाख लीटर रोजना

निजी संसाधनों से उपलब्धता - 956 लाख लीटर रोजाना

जर्जर पाइप लाइन से वेस्टेज - 290 लाख लीटर रोजना

वार्षिक वर्षा का जल स्तर - 741.30

कुल एग्रीकल्चरल लैंड - 203350 हेक्टेयर

कुल जलाशय- 3062

कुल नलकूप - 55000

पर कैपिटा-130 लीटर

Meerut: क्या आप ब्रश करते समय या शेव करते समय नल खुली रखते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके घर का सबमर्सिबल काम के बाद घंटो यूं ही चलता रहता हो। अगर ऐसा है तो अब संभल जाइए। क्योंकि आपकी यह खराब आदत सृष्टि की जीवन धारा पर भारी पड़ती जा रही है। पानी के फिजूलखर्ची और अति-दोहन की वजह से भूगर्भ जल का स्तर लगातार खिसकता जा रहा है। यहां तक कि हालात इतने बदतर हो गए हैं कि शासन ने सूबे में अलर्ट जारी करते हुए पानी के दोहन पर रोक लगा दी है।

गिर रहा भू-जल स्तर

जिले में लगातार हो रहे भूजल स्तर के दोहन के चलते शासन ने मेरठ के दो ब्लॉकों को डार्क और तीन अन्य ब्लॉक भी क्रिटिकल जोन घोषित कर दिया है। भूजल के अति दोहन को लेकर शासन सख्त निर्देश जारी करते हुए इन ब्लॉकों में नए नलकूप लगाने में पूरी तरह से रोक लगा दी है। आने वाले समय में अब इन जगहों में न कोई बोरिंग किया जा सकेगा और न ट्यूबवेल के लिए कोई कनेक्शन दिया जा सकेगा। सबसे अधिक चौंकाने वाली तो भू-जल मैनेजमेंट की रिपोर्ट है, जिसने मेरठ पर मंडरा रहे खतरे की ओर इशारा कर दिया है।

डेंजर जोन मेरठ

लघु सिंचाई विभाग के आंकड़ों की मानें तो मेरठ पूरी तरह से डेंजर जोन में आकर खड़ा हो गया है। जलापूर्ति के लिए अंधाधुंध तरीके से हो रहे भूजल दोहन का आलम यह है कि 13 अक्टूबर 2014 में मेरठ के दो ब्लॉक रजपुरा और खरखौदा को अति-दोहित करार देते हुए उन्हे डार्क जोन घोषित कर दिया गया है, वहीं माछरा, परीक्षिगढ़ और मेरठ भी क्रिटिकल जोन की जद में आ गए हैं, जबकि दौराला और हस्तिनापुर को सेमी क्रिटिकल जोन में रखते हुए चेतावनी दे दी गई है।

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क्या कहती है सर्वे रिपोर्ट --

कुल ब्लॉक -- 820

डार्क जोन -- 111

क्रिटिकल -- 68

सेफ जोन -- 559

संकट में 179 ब्लॉक

दो बार हो चुका सूखा घोषित

यह कम वर्षा और लगातार कम होते जा रहे भूजल स्तर का परिणाम है कि पिछले एक दशक में मेरठ को दो बार सूखा घोषित किया जा चुका है। कम वर्षा के कारण शासन ने जनपद को 2005 व 2008 में सूखा घोषित कर दिया था। इस पर विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में भूजल से छेडछाड़ के परिणामों को ही सूखे का कारण बताया था।

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गंगाजल परियोजना --

- 341 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पर लग रहा पलीता

- 50 करोड़ की डिमांड की पूरी होने के बाद ही सिंचाई विभाग छोड़ेगा पानी

- वर्ष 2008 में शुरू की गई थी योजना, जल निगम के अनुसार काम पूरा

- 100 मिलियन लीटर पर डे (एमएलडी) पानी देने का है पूरा प्रोजेक्ट

341.30 करोड़ रुपये की है परियोजना

योजना में जेएनएनयूआरएम कार्यक्रम के अन्तर्गत वर्ष 2008-09 में मेरठ नगर के पेयजल पुनर्गठन योजना के लिए 273.01 करोड़ की स्वीकृति 11 जनवरी 2008 में स्वीकृत की गई। बाद में फीडरमेन के एलाइनमेंट को संशोधित करते हुए एक बार फिर से डिजाइन तैयार किया गया और लागत बढ़ाकर नगर विकास विभाग ने 341.30 करोड़ रुपये अनुमोदन किया। यह रकम कई किस्तों में नगर निगम के माध्यम से जल निगम को मिल चुकी है। लेकिन धरातल पर पानी नहीं पहुंच सका है।

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फैक्ट एंड फिगर

जल निगम ने बनाई ट्यूबवेल : 57

अंडर ग्राउंड टैंक्स : 4

नॉर्मल टैंक्स : 31

भोले की झाल पर डब्ल्यूटीपी : 100 एमएलडी क्षमता

मुख्य पाइप लाइन : 17.80 किमी

डिस्ट्रीब्यूशन लाइन : 759 किमी

पंपिंग लाइन : 14 किमी

फीडर लाइन : 21 किमी

प्रोजेक्ट कॉस्ट : 341 करोड़ रुपए

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वार्षिक वर्षा जल स्तर की रिपोर्ट --

2009 430.0

2010 950.0

2011 860.0

2012 950.0

2013 1035

2014 1080

पानी के बर्बादी के तीन बड़े कारण

एक - शहर में पानी की सबसे अधिक बर्बादी पशु डेयरियों की भेंट चढ़ रहा है। मौजूदा समय में शहर में 1705 डेयरियां उपलब्ध हैं। ये डेयरियां रोजाना लाखों लीटर धरती का पानी गोबर में मिला कर नालियों में बहा देतीं हैं। आंकड़ों की मानें तो एक डेयरी रोजना 40 से 50 हजार लीटर पानी फिजूल खर्च करती है।

दो - पानी की बर्बादी का दूसरा बड़ा कारण शहर के मीट प्लांट हैं। इन मीट प्लांटों में मीट की सफाई के लिए हर रोज करोड़ों लीटर पानी इस्तेमाल किया जाता है। और इस तरह से धरती का यह साफ सुथरा पानी नालियों में बहा दिया जाता है। आंकड़ों के मुताबिक एक मीट प्लांट मीट की सफाई में रोजाना 8 से 9 लाख लीटर पानी की इस्तेमाल करता है।

तीन - पानी की बर्बादी का तीसरा बड़ा कारण कार वाशिंग है। शहर में हर रोज वाहनों की धुलाई में पानी की एक बड़ी मात्रा वेस्ट होती है। वाटर सेविंग को लेकर काम कर रही एक संस्था की मानें तो पाइप से एक कार को वॉश करने में दो से तीन हजार लीटर पानी बर्बाद होता है।

भूजल संरक्षण को लेकर पिछले कई सालों से काम कर रही सामाजिक संस्था नीर फाउंडेशन के डायरेक्टर रमण त्यागी ने बताया कि शहर में बड़े पैमाने पर पानी की बर्बादी हो रही है, जिसका सबसे अधिक असर भूजल स्तर पर पड़ रहा है। रमण त्यागी ने बताया कि उन्होंने इस दिशा में कई बडे़ अभियान चला कर लोगों को जागरुक बनाने का कार्य किया है।

पानी का री-यूज --

-ऐसी या वॉशिंग मशीन के पानी को फेंके नहीं, बल्कि वाहनों को धुलने में इसका इस्तेमाल करें।

-आरओ के बचे हुए पानी को पौधों में डाल सकते हैं या इस पानी से घर की साफ सफाई कर सकते हैं।

-एसी के पानी को इंवर्टर की बैटरी आदि में डाल सकते हैं।

-आलू या अंडे उबालने के पानी को ठंडा कर पौधों में डालें

-फिश टैंक को साफ करने के बाद पानी को पौधों में डालें

अभी सिंचाई विभाग की ओर से पानी की सप्लाई नहीं शुरू की गई है। उन्होंने 50 करोड़ रुपए की डिमांड की है। जिसके लिए शासन को लिख दिया गया है। सप्लाई शुरू होने के चार महीनों तक टेस्टिंग का काम पूरा होगा।

- एसके जैन, पीई, जल निगम

शासनादेश के मुताबिक प्रतिबंधित क्षेत्रों में नए नलकूपों की स्थापना पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगा दी गई है। मेरठ में पांच ब्लॉकों की स्थिति अधिक खराब है वहां नए वित्तीय वर्ष में कोई नलकूप नहीं लगाया जा सकेगा।

विश्राम यादव, अधिशासी अभियंता, लघु सिंचाई विभाग

डार्क जोन में किसी निजी नलकूप को कनेक्शन जारी नहीं किए जा रहे हैं। धरती का जल स्तर लगातार घटता जा रहा है। यह बहुत ही संवदेनशील मामला है।

विजय विश्वास पंत, एमडी पीवीवीएनएल