सभी पूरी करते हैं ‘साहब’ की फरमाइश

किसी भी पुलिस थाने में जाएं। गेट पर जो साइन बोर्ड लगा होगा, वो किसी न किसी कंपनी ने लगाया होगा। अंदर घुसेंगे तो पीने के लिए पानी का इंतजाम भी किसी एसोसिएशन की तरफ से होगा। थानेदार के कमरे में कुर्सियां भी कहीं से दान में मिली होंगी। अगर कूलर होगा तो उसका जुगाड़ भी इसी तरह से किया गया होगा। सवाल ये है कि क्या पुलिस डोनेशन, दान या स्पॉन्सरशिप पर चल रही है। और अगर पुलिस डोनेशन ले रही है तो इसके बदले में दे क्या रही है? कहीं डोनेशन पुलिस सिस्टम को डैमेज तो नहीं कर रहा?

दान का सहारा

अब आप इसे डोनेशन कहें या दान या फिर स्पॉन्सरशिप, बस शब्दों का हेरफेर है। नाम कुछ भी हो सकता है, मगर नियत एक ही रहती है। पुलिस अगर नाके लगाती है तो बैरियर भी किसी एसोसिएशन या संस्थान से स्पॉन्सर कराती है। चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस के लिए खड़े होने की जगह भी दान पर बनती है। हम आपको बता दें कि पुलिस थानों की 50 फीसदी व्यवस्थाएं दान पर चल रही हैं। फैंटम या पेट्रोलिंग पार्टी को कई बार पेट्रोल भी स्पॉन्सर कराना पड़ता है।

डोनेशन से चौकी

पुलिस चौकी तो बनती ही दान पर है। सूत्र बताते हैैं कि चौकी बनाने के लिए कोई बजट नहीं मिलता। इसके लिए स्पॉन्सर ही तलाशना पड़ता है। यही कारण है कि पुलिस चौकी की दीवारों पर किसी न किसी संस्था का विज्ञापन देखने को मिलता है। ट्रक की टक्कर से टूटी तेजगढ़ी चौकी कई महीनों तक यूं ही पड़ी रही और फिर उसे एक अस्पताल प्रबंधन ने बनवाया।

कौन देता है दान

पुलिस को दान या डोनेशन देने वालों में एसोसिएशन या एरिया के बड़े-बड़े संस्थान शामिल रहते हैं। पुलिस बहुत आराम के साथ डोनेशन कलेक्ट करती है। एसोसिएशन के पदाधिकारी एक-दो दिन में ही ‘साहब’ की फरमाइश पूरी कर देते है। हम आपको बता दें कि शहर के प्रमुख चौराहों पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे और कंट्रोल रूम में स्क्रीन का जुगाड़ भी डोनेशन के आधार पर किया गया था। यह अलग बात है कि आज शहर में कोई भी कैमरा ठीक से काम नहीं कर रहा है। आईआईए के अध्यक्ष जुगल किशोर कहते हैैं कि पुलिस के पास अगर पैसा भी होगा तो वह ऑफर क्यों नहीं लेगी। कोई कहता है कि यहां चौकी बननी चाहिए। पुलिस वाले कह देते हैं कि हमारे पास फंड नहीं है। इसके बाद कोई ना कोई ऑफर कर देता है।

बदले में क्या मिलता है

दान, डोनेशन या स्पॉनसरशिप गिव एंड टेक की थ्यौरी पर बेस्ड होते है। सवाल ये है कि पुलिस बदले में क्या देती है। जी हां, पुलिस उन्हें क्विक सर्विस मुहैया कराती है और जरूरत पडऩे पर डोनेशन देने वाली पार्टी का फेवर भी करती है। सडक़ पर कोई वारदात हो जाए और आप कंट्रोल रूम पर फोन करें तो शायद पुलिस वक्त पर न पहुंचे, लेकिन किसी ढाबे या रेस्टोरेंट पर अगर मामूली विवाद भी होता है तो पुलिस को पहुंचने में देर नहीं लगती। ये है डोनेशन की पॉवर, जिसे महसूस किया जा सकता है।

डोनेशन पर हो रहे कई काम

- पुलिस थानों के साइन बोर्ड।

- पुलिस थानों में पानी और बैठने की व्यवस्था।

- हवा के लिए पंखे।

- कार्रवाई के लिए स्टेशनरी।

- पेट्रोलिंग के लिए पेट्रोल।

- चेक पोस्ट पर लगने वाले बैरियर्स।

- चौराहों पर ट्रैफिक पुलिस के खड़े होने का इंतजाम।

- चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे।

- लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार।

'हर आदमी सोचता है कि पुलिस से संबंध बनाए। यह आदमी की मजबूरी भी है। इसलिए पुलिस को ऑफर करते हैं। लेकिन इंडस्ट्री वाले इससे बहुत दूर हैं.'

- जुगल किशोर, आईआईए अध्यक्ष मेरठ

'अस्पताल प्रबंधन ने चौकी का निर्माण करवाया था। इससे पुलिस वाले गर्मी और सर्दी से बच जाते हैं। चौकी हमारे थाना क्षेत्र मे है। इससे सभी को फायदा भी है। ऐसे धर्म वाले कामों में अस्पताल प्रबंधन आगे रहता है.'

- मुनेश पंडित, मैनेजर आनंद हॉस्पिटल

'पुलिस के हाथ जो भी फंसता है, उससे सामान मंगवा लेते हैं। इसके बाद जब ड्यूटी चेंज होती हैं तो जो भी सामान होता है वह ट्रक में भरकर एसओ के साथ चला जाता है.'

- अरुण वशिष्ठ, व्यापार संघ अध्यक्ष