-राजकीय संप्रेषण गृह में बंद बाल अपराधियों का है शातिराना अंदाज

-हत्या और रेप के आरोपी, पर चेहरे नहीं नजर आती शिकन

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केस-1

चंदौली जिले में दो पक्षों में जमीन को लेकर विवाद हुआ। मामला थाने से लेकर आलाधिकारियों की चौखट तक गया। मगर सही फैसला नहीं होने से विवाद बढ़ता गया। एक दिन दोनों पक्षों में जमकर मारपीट हुई। कई लोग घायल हो गए। पूरी घटना के बाद जो हुआ वह चौंकाने और डराने वाला था। पूरी मारपीट की घटना देख रहा एक नाबालिग डरने और घर में छिपने के बजाए दूसरे पक्ष के एक शख्स पर हमला बोल दिया। वो भी इस कदर कि उसकी मौत हो गई। पकड़े गए नाबालिग को पुलिस ने सुधरने के लिए राजकीय संप्रेषण गृह भेज दिया। जहां उसे सुधारने के सभी प्रयास किए जा रहे हैं। मगर उसके अपराधी प्रवृत्ति में बदलाव नहीं हो रहा है।

केस-2

विकास की ओर अग्रसर समाज में रेप की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। रेप जैसे घिनौने कृत्य को अंजाम देने वालों में अनपढ़-कम पढ़े लिखे लोग, क्रिमिनल माइंडेड, साइकोलॉजिकल मरीज नहीं बल्कि नाबालिगों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। ऐसा ही एक मामला बनारस में हुआ। जहां एक युवती के साथ रेप की घटना हुई। पुलिस ने कार्रवाई शुरू की तो जांच चौंकाने वाली थी। रेप की घटना को अंजाम देने वाला नाबालिग था। उसने अपनी उम्र से करीब पांच साल बड़ी युवती के साथ रेप किया। हालांकि पकड़े जाने पर उसने अपना जुर्म कबूल नहीं किया, पर मिले साक्ष्य के आधार पर आरोप तय होने से पुलिस ने उसे राजकीय संप्रेषण गृह भेज दिया।

मासूम की हर हरकत दिल में बस जाती है। सभी उसे प्यार करना चाहते हैं। इसी उम्र में कुछ ऐसे भी होते हैं जो बेहद खौफनाक वारदात को अंजाम दे जाते हैं। इसके पीछे होता है शातिर दिमाग जिसे पहचानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। हम बात कर रहे जुवेनाइल अपराधी की जो चेहरे से भले ही मासूम लगते हैं, मगर उनके अपराध किसी पेशेवर अपराधी से कम नहीं होते। बनारस के राजकीय संप्रेषण गृह में बंद 80 में करीब 60 जुवेनाइल हत्या, हत्या का प्रयास, रेप और अप्राकृतिक दुष्कर्म के आरोपी हैं। इनमें से ज्यादातर को उनके शातिर दिमाग ने अपराधी बना दिया। कुछ ऐसे भी हैं जो समय की मार ने अपराध कर बैठे।

वर्जन-

18 साल से कम उम्र होने पर अपराधियों को जेल के बजाए राजकीय संप्रेषण गृह में रखा जाता है। यहां आने वाले कई अपराधी तो मासूम नजर आते हैं, मगर कई दिमाग से बहुत शातिर होते हैं। जिन्हें सुधारने और अन्य बाल अपराधियों पर उनका इफेक्ट पड़ने से रोकने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है।

सुबोध कुमार सिंह, अधीक्षक राजकीय संप्रेषण गृह