वाराणसी (ब्यूरो)। एसटीएफ वाराणसी इकाई के एडिशनल एसपी विनोद कुमार सिंह ने बताया कि सूचना मिली थी कि झारखंड और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के बेरोजगार युवकों को एक गैंग लगातार ठग रहा है। इस सूचना के आधार पर इंस्पेक्टर पुनीत परिहार को कार्रवाई के लिए कहा गया। रविवार को इंस्पेक्टर पुनीत को सूचना मिली कि गैंग के लोग छावनी स्थित जेएचवी मॉल के समीप कुछ बेरोजगार युवकों से मिलने आए हैं। इस सूचना के आधार पर घेराबंदी कर तीनों को गिरफ्तार किया गया।

यूपी और झारखंड के लड़कों को ठगते थे
सरगना की शिनाख्त बलिया जिले के भीमपुरा थाना के बरवारति पट्टी निवासी नीलेश सिंह उर्फ छोटू उर्फ अभिषेक के तौर पर हुई है। गिरोह के दोनों सदस्यों की शिनाख्त मऊ जिले के मधुबन थाना के परसपुर के प्रदीप कुमार सिंह और चंदौली जिले के सकलडीहा थाना के रानेपुर के अजय प्रताप सिंह के तौर पर हुई है। गैंग के 2 अन्य सदस्यों बलिया के सिकंदरपुर के चंद्रभूषण यादव और झारखंड के महतो की तलाश की जा रही है। ये उत्तर प्रदेश और झारखंड के लड़कों को ठगते थे

विभाग में भर्ती का करते थे दावा
एसटीएफ की पूछताछ में नीलेश ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग, रेलवे, पुलिस, वन विभाग और आर्मी में सिपाही की नौकरी दिलाने का झांसा वह बेरोजगारों को देता था। बताया कि उसका गिरोह वर्ष 2019 से सक्रिय है। कहा कि इंटरनेट पर सरकारी नौकरी की वेबसाइट चेक किया करते हैं। बेरोजगार युवकों को नौकरी का लालच देकर प्रति कैंडिडेट 7 से 10 लाख रुपए में सौदा तय किया जाता था। पैसे लेने के बाद उन्हें फर्जी नियुक्ति पत्र थमा कर टरका दिया जाता था। अब तक ऐसे 23 बेरोजगार युवक उनके झांसे में आ चुके थे और उनसे 70 लाख रुपए हम लोग ऐंठ चुके थे।

12 बेरोजगारों को ठगने की तैयारी
पूछताछ में गिरोह के सरगना ने बताया कि 12 अन्य बेरोजगार युवकों से नौकरी दिलाने की बातचीत चल रही थी। ठगी से मिले पैसे का निवेश कपड़े की दुकान, हार्वेस्टर मशीन और ज्वेलरी की खरीदारी में किया गया है। वेरिफिकेशन की बात कह कर भरोसा दिलाते थे। नीलेश ने बताया कि अजय और प्रदीप नौकरी दिलाने के नाम पर बेरोजगार युवकों के अभिभावकों से अपने मोबाइल से मेरी बात कराते थे। इसके बाद जिनका पैसा मिलता था, उनके कूटरचित नियुक्ति पत्र और पुलिस वेरिफिकेशन के कागजात पोस्ट ऑफिस या स्वयं और सहयोगियों चंद्रभूषण यादव व महतो के माध्यम से डाक से उनके पते पर भेज देते थे। नीलेश ने बताया कि बेरोजगारों के अभिभावकों से वह कहता था कि थाने पर जाकर भेजे गए वेरिफिकेशन पत्र को सत्यापित कराकर भेज दो। इस पर उन्हें विश्वास हो जाता था कि उनके बेटे की नौकरी लग गई है।