-भीषण गर्मी में बदहाली झेल रहे हैं सारनाथ मिनी जू के जानवर

-दाना-पानी और गर्म हवा के थपेड़ों से बचने का नहीं है प्रॉपर इंतजाम

VARANASI

वो बेजुबान जरूर हैं लेकिन उनमें भी जान है। जिंदा रहने के लिए इंसान की तरह ही खाना-पानी और हवा चाहिए। मौसम के थपेड़ों से खुद को बचाने के लिए एक आशियाना भी चाहिए होता है। खुली अवस्था में वो इन सबके लिए किसी के मोहताज नहीं होते हैं लेकिन बंदी हालत में उन्हें जैसे रखा जाए वैसे रहने को मजबूर होते हैं। इसका उदाहरण है सारनाथ मिनी जू। इसमें मौजूद परिंदे और जानवर बदतर हालत में हैं। इस भीषण गर्मी में भी उनके लिए दाना-पानी का प्रॉपर इंतजाम नहीं है। गर्मी हवा के थपेड़ों से बचने के लिए खास व्यवस्था नहीं है। हर सुबह उनकी आंख तो खुलती है लेकिन कब बंद हो जाए कोई नहीं जानता। इस तापमान में भी साधारण तौर पर मिलने वाले दाना और पानी पर गुजर-बसर कर रहे हैं।

पिजड़ों की हालत खस्ता

पूर्वाचल में एकमात्र मिनी जू सारनाथ में है। इनमें ढेरों वाइल्ड एनिमल्स और बर्ड हैं। हर प्रजाति को रखने के लिए अलग-अलग केज बनाया गया है। रख-रखाव के अभाव में सभी पिजड़ों की हालत खस्ता हो चुकी है। सारस और बत्तख के पिंजड़े जगह-जगह से टूट चुके हैं। इनके अंदर गंदगी जमा होती रहती है। इनकी सफाई महीनों में एकाध बार होती है। मगरमच्छ और घडि़याल भी गंदे पानी में रहने को मजबूर हैं। चीतल और हिरण जिस एरिया में रहते हैं वहां गंदगी की भरमार है। चिडि़यों, खरगोश, गिनीपीग के पिंजड़े भी जगह-जगह से टूटे और गंदे रहते हैं

सारनाथ मिनी जू में एनिमल्स और ब‌र्ड्स की सिक्योरिटी का भी खास इंतजाम नहीं है। किसी केज के पास कोई सिक्योरिटी परसन नहीं होने से लोग एनिमल्स के साथ मनमानी करते हैं। लोगों को जानवरों के साथ कैसा बिहेव करना चाहिए ऐसा बोर्ड लगा है लेकिन इसे कोई फॉलो नहीं करता है। रोक के बावजूद लोग एनिमल्स और ब‌र्ड्स को खाने की चीजें देते हैं। उन्हें पकड़ने की कोशिश करते हैं, उनको पत्थर से मारते हैं। पिजड़ों में पॉलिथिन आदि जैसे हार्मफुल सामान फेंक देते हैं। हिरण और चीतल को खीरा, ककड़ी, गाजर खिलाने के लिए लोगों की भीड़ जमा रहती है।

होती है मोटी कमायी

भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली पर शीश नवाने पूरी दुनिया से लोग आते हैं। एक अच्छा पिकनिक प्लेस होने की वजह से पूर्वाचल के साथ अपने शहर के लोगों का भी तांता लगा रहता है। सारनाथ में डेली लगभग पांच सौ से एक हजार लोग आते हैं। यहां आने वाला लगभग हर शख्स मिनी जू को जरूर देखता है। इसके लिए उसे टिकट खरीदना होता है। इस टिकट से हर महीने लगभग पचास हजार रुपये का इनकम होता है। फेस्टिवल सीजन में आमदनी दोगुना हो जाती है। इसके बावजूद जानवरों के रख-रखाव का इंतजाम नहीं हो पा रहा है। उनको भरपेट चारा भी नहीं मिल पाता है।

आप कर सकते हैं हेल्प

सारनाथ मिनी जू में बदहाली में जीवन गुजार रहे जानवरों की मदद आप कर सकते हैं। इन्हें गोद लेकर कैद में भी एक अच्छी जिंदगी दे सकते हैं। इसके लिए वन विभाग को आवेदन करना होता है। डिपार्टमेंट से औपचारिकता पूरी होने के बाद आप चाहे जिस जानवर या चिडि़यों को गोद ले सकते हैं। इसके बाद आप जानवरों के चारा की कीमत दे सकते हैं और रहने का बेहतर इंतजाम कर सकते हैं। पेशे से चिकित्सक डॉ। मधुलिका पाण्डेय ने चिडि़यों के एक पिंजड़े को गोद लिया है। इसी तरह डॉ। पद्मा गुप्ता और टीचर संगीता पाण्डेय ने भी चिडि़यों के एक-एक बाड़े को गोद लिया है। वह सारा खर्च उठाती हैं।

जू में यह हैं जानवर

- सारस

- बत्तख

- घडि़याल

- मगरमच्छ

- तोते

- लालमुनिया

- मोर

- खरगोश

- गिनीपिग

- काकातुआ

- चीतल

-हिरन

- आठ काला हिरण