-कोरोना के चलते सावन में आने वाले कांवरियों के सामान की दुकानों का नहीं उठा शटर

-करोड़ों के व्यापार पर लगा ब्रेक , कारोबारियों में छायी मायूसी

धर्म नगरी काशी में हर साल सावन आते ही शहर का कोना कोना बोलबम के नारे के साथ भगवा रंग में रंगा दिखता है। मगर इस बार कोरोना ने इस रंगीनियत को भी चौपट कर दिया है। इसकी वजह ये है कि इस बार भोले भक्त कहे जाने वाले कांवरियों के आने पर रोक लगा दी गयी है। इसके चलते इनके भगवा वस्त्र और कमंडल सहित अन्य सामानों का बाजार बेजार है। व्यापारियों ने इस साल कांवरियों से संबंधित किसी भी वस्तु का आर्डर नहीं दिया है। हालांकि जिला प्रशासन ने शुक्रवार को सावन के दौरान बाबा के दरबार में लगने वाली भक्तों की भीड़ के मद्देनजर मीटिंग कर आवश्यक दिशा निर्देश दिया।

छह जुलाई से शुरू हो रहा सावन

इस बार छह जुलाई से सावन शुरू हो रहा है, लेकिन इस साल बाबा का जयकारा नहीं गूंजेगा। कोरोना वायरस ने बाबा दरबार में दूर दूर से जल चढ़ाने के लिए पहुंचने वाले कांवरियों के आने पर रोक लगा दिया है। दो महीने के लॉकडाउन के बाद मंदिर खुले तो जरूर लेकिन भक्तों के लिए तमाम नियम बनाए गए हैं। सावन में बाबा दरबार में जुटने वाली लाखों भक्तों की भीड़ इन नियमों का पालन नहीं कर पाएगी। हालांकि इन नियमों में कुछ छूट दी गयी है, लेकिन कांवरियों की भीड़ को कंट्रोल करना आसान नहीं होगा। बढ़ते संक्रमण को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने पहले ही कई धाíमक आयोजनों, रथयात्रा मेला, गंगा दशहरा पर रोक लगा दी थी।

मार्केट में है सन्नाटा

सावन के दौरान एक महीने तक बनारस में कांवरियों के केसरिया रंग के परिधान व कांवर की खूब बिक्री होती थी। साल में एक माह का काफी बड़ा कारोबार इस वक्त होता था। जिसमें करोड़ों की बिक्री हो जाती थी। कई अस्थायी कांवरियों के वस्त्रों की दुकानें भी सज जाया करती थीं। वहीं बड़े कारोबारियों के पास भोजन करने तक की फुर्सत नहीं होती थी।

करोड़ों की होती थी बिक्री

एक महीने तक चलने वाले कांवर यात्रा के दौरान कांवरिया के केसरिया वस्त्रों जिसमें टी-शर्ट, लोअर, गमछा, टोपी, बैग, साड़ी की लगभग 10 से 12 करोड़ की बिक्री बनारस से हो जाती है। मगर इस बार दो तीन प्रतिशत ही दुकानदारी हुई। ग्रामीण क्षेत्रों से छोटे दुकानदारों ने ही कुछ सामान लिया है अब ट्रेनें बंद होने से वह भी नहीं आएंगे। बनारस से कांवरिया के वस्त्र पूर्वांचल के सभी जगहों, बिहार, काठमांडू, नेपाल तक जाता है। बनारस में इसका मुख्य कारोबार राजादरवाजा, हड़हासराय में होता है। यहां पर देश भर से व्यापारी आकर खरीदारी करते हैं। वैसे पूरे शहर में छोटी-छोटी दुकानें भी सजती हैं। चेन्नई, कोलकाता, सहारनपुर से जनवरी व फरवरी में मॉल बड़े कारोबारी मंगाते हैं। कांवर यात्रा के लिए जनवरी से ही माल स्टॉक करते थे। इस बार सारा सामान डंप पड़ा है। बनारस में राजादरवाजा और हड़हासराय में लगभग पचास बड़े कारोबारी कांवरियों के वस्त्र आदि के हैं। पिछले साल तो मोदी-योगी और अमित शाह का कांवर लिए टी-शर्ट खूब बिका था। इस बार हम लोगों ने गो कोरोना गो स्लोगन लिखा टीशर्ट तैयार करवाया था मगर सब बेकार हो गया।

लाखों भक्तों की होती है भीड़

-सावन ही ऐसा माह है जब बाबा के जलाभिषेक के लिए कांवरियों की अपार भीड़ होती है।

-बनारस ही नहीं इलाहाबाद, गोरखपुर, आजमगढ़, सोनभद्र, गाजीपुर जैसे आसपास के तमाम जिलों के अलावा बिहार के भक्त आते हैं।

-आंकड़ों के मुताबिक सावन में डेली हजारों भक्त बाबा दरबार पहुंचते हैं।

- सोमवार के दिन इनकी संख्या लाखों में पहुंच जाती है।

-कोरोना काल में अगर इतने कावरियां सावन में आएंगे तो वे दर्शन कैसे करेंगे और डिस्टेंस कैसे मेंटेंन होगा, यह सोचने वाली बात है।