-जिले में सक्रिय हैं बच्चा चोरी करने वाले गिरोह

-बलि देने से लेकर तमाम मकसद के लिए हो रहा नन्हीं जान का सौदा

VARANASI

केस-क्

चोलापुर में घर के बाहर बिस्तर पर नवजात को लिटाकर मां घर में पानी पीने चली गयी। चंद मिनट बाद लौटी तो बच्चा गायब था। कुछ दिनों बाद पास के ही एक गांव के एक घर से बच्चे के मां-बाप ने अपनी कोशिश के जरिए उसे बरामद कर लिया। एक नि:संतान दम्पति ने एक गिरोह के जरिए उसे हासिल किया था। एक बच्चे की चाहत में इस बच्चे की बलि देने की उनकी मंशा थी।

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सफर के लिए मां-बाप के साथ कैंट स्टेशन पहुंची तीन साल की बच्ची अचानक से गायब हो गयी। जीआरपी ने पूरी ताकत लगा दी लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला। स्टेशन कैम्पस से लगायत आसपास की झुग्गी बस्तियों में भी तलाश किया लेकिन मायूसी हाथ लगी। हर कोशिश में असफल होने पर बच्ची के मां-बाप रोते-बिलखते घर को लौट गए।

दोनो केस बताने के लिए काफी हैं कि डिस्ट्रिक्ट में बच्चों का अपहरण करने वाले गिरोह एक्टिव हैं। चौबेपुर थाना एरिया के बीकापुर में नवजात की बलि में भी ऐसे गिरोह की भूमिका नजर आती है। इस मामले में दर्जनों सवाल जो सामने आए उनमें सबसे महत्वपूर्ण है कि वह बच्चा किसका है और उसे बलि के लिए दरिंदों के हाथ में किसने सौंपा। जवाब पुलिस के पास तो है लेकिन वह खामोश है। क्योंकि अगर इसका खुलासा हुआ तो उसके दामन पर दाग लगेगा। पुलिस के पास इस बात कि पुख्ता जानकारी है कि जिले में सक्रिय बच्चों का अपहरण करने वाले गिरोह ने नवजात की जिंदगी का सौदा चंद रुपयों की खातिर किया है। क्योंकि ऐसा पहले भी हो चुका है। पुलिस रिकॉर्ड की मानें तो महज दो साल में दो दर्जन से अधिक बच्चे लापता हो चुके हैं। काफी प्रयास के बाद भी उनका कहीं पता नहीं है। आशंका है कि उनमें से कुछ गलत धंधा करने वालों के चंगुल में फंसे हैं तो कुछ दरिंदगी का शिकार हो चुके हैं।

शिकार की तलाश जारी

बच्चों का अपहरण करने वाले गिरोह की काली नजर हर बच्चे पर जमी हुई है। मौका मिलते ही वह उन्हें अपने कब्जे में ले लेंगे। हॉस्पिटल, रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड, गंगा घाट, भीड़ भरे बाजार, गांव-गिरांव, मोहल्ले, पॉश कालोनियां हर जगह इनके गिरोह सदस्य सक्रिय हैं। ऐसे बच्चे का अपहरण करते हैं जिन्होंने हाल ही में दुनिया में कदम रखा हो या वह जो दुनिया को समझने की अभी समझ नहीं रखते हैं। इसके बाद उनका सौदा कर दिया जाता है। बच्चा चुराने की जिम्मेदारी गिरोह में महिलाओं की होती है। उसका सौदा पुरुष करते हैं। बच्चों के बदले कुछ हजार से लेकर लाख तक हो सकती है। यह निर्भर करता है खरीदने वाले की जरूरत पर। बच्चों के गायब होने के मामले में पुलिस कुछ खास नहीं कर पाती है। बच्चों की तलाश और शिनाख्त दोनों मुश्किल होने की वजह से बरामदगी बेहद कम हो पाती है।

यहां से बच्चे हुए लापता

-मंडलीय हॉस्पिटल से लगायत अन्य हॉस्पिटल से एक साल में सात बच्चे गायब हो चुके हैं

-दो साल में कैंट रेलवे स्टेशन से चार बच्चे रहस्मय ढंग से लापता हो गए

-ग्रामीण थाना क्षेत्रों से एक वर्ष में गायब होने वाले बच्चों की संख्या क्7 है। हालांकि रिपोर्ट पांच की दर्ज हुई

-घाट, और बजार से आधा दर्जन बच्चे एक साल में गायब हुए लेकिन इनमें से चार को बरामद करने दावा पुलिस का है

(पुलिस से मिली सूचना के आधार पर)

हर जान की लगती कीमत

-बच्चों का अपहरण करने वाला गिरोह रुपयों की खातिर इनका सौदा करता है

-फैक्टरी, दुकान, होटल में बच्चों से काम करने वाले गिरोह से बच्चे लेते हैं

-घाटों, चौराहों, मंदिर के पास भीख मांगने वाले इनके बच्चे हासिल करते हैं

-अपहरण कर लाए गए बच्चों को देह व्यापार में ढकेल दिया जाता है

-मानव अंगों की तस्करी करने वाले अपने मकसद के लिए बच्चों की कीमत चुकाकर उन्हें हासिल करते हैं

-अदृश्य क्रूर शक्तियों की उपासना करने वाले साधना क्रिया में उपयोग के लिए बच्चे हासिल करते हैं