-सन् 1886 में प्रिंस आफ वेल्स ने बनारस में बनवाया था गैसर का वस्त्र

-छठवें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर बीएचयू में संवाद श्रृंखला के तहत बुनकर ने दी जानकारी

बनारस में करीब 200 सालों से गैसर के वस्त्र बनाए जा रहे हैं। वर्ष 1886 में प्रिंस आफ वेल्स जब भारत आए थे, तब उन्होंने गैसर वस्त्र स्वयं के लिए बनवाया था। इन वस्त्रों का प्रयोग तबसे और लोकप्रिय हुआ और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त बुनकर उस्ताद शाहिद अंसारी बनारस के एकमात्र ऐसे बुनकर हैं, जो इस कला को अभी तक इस देश में जीवित बनाए रखे हैं। ये बातें बुनकर शाहिद अंसारी ने बुधवार को विशिष्ट बनारसी साडि़यों की कला और बुनकरी शैली पर बीएचयू के भारत कला भवन की उप निदेशक डा। जसमिंदर कौर से बातचीत में कही। छठवें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (सात अगस्त) को लेकर भारत कला भवन में एक लंबी संवाद श्रृंखला चल रही है। इसमें बताया गया कि बौद्ध धर्म में उपयोग किए जाने वाले रेशमी-जरी वस्त्र गैसर के बारे में बीएचयू के छात्र-छात्राओं और बुनकरों को कई तकनीकी जानकारियां दी गई। उस्ताद अंसारी ने बताया कि चीन, जापान, तिब्बत, नेपाल से लेकर भारत में बोधगया, सारनाथ और उत्तर पश्चिमी राज्यों के बौद्ध विहारों में इसका इस्तेमाल बड़ी मात्रा में होता है।

सिर्फ बनारसी हथकरघे पर ही निर्माण

शाहिद अंसारी ने कहा कि इस्तेमाल भले ही कई स्थान पर हो मगर इस खास वस्त्र का निर्माण केवल बनारस के हथकरघे पर ही संभव है। गैसर के बहुआयामी प्रयोग हैं, जिसमें थंका चित्र, लहंगा, गाउन, होम फíनशिंग्स और पैनल शामिल हैं। इस कार्यक्रम का प्रसारण भारत कला भवन के यूट्यूब, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी हुआ।