-घरों में आरओ वॉटर प्लांट लगाकर अंडरग्राउंड वॉटर का किया जा रहा है जबरदस्त दोहन

-बिना लाइसेंस व रजिस्ट्रेशन के धड़ल्ले से बेचा जा रहा है शुद्ध पानी

-पानी के कारोबार से लगातार नीचे जा रहा है अंडरग्राउंड वॉटर का लेवल, शहर में हो रही पानी की किल्लत

VARANASI

घर, दुकान, हॉस्पिटल, ऑफिस हर जगह आपको आरओ वॉटर के गैलन देखने को मिल जाएंगे। इस गैलेन में वही पानी है जिसके लिए आपको दो बार कीमत चुकानी पड़ती है। एक वॉटर टैक्स के रूप में और दूसरा इस गैलेन को खरीद कर। क्योंकि शहर में लोगों ने अपने घरों में पानी का कनेक्शन भी ले रखा है और उन्हें पानी के टैक्स के रूप में भारी भरकम राशि भी अदा करनी पड़ती है। इसके बाद भी जलकल विभाग से आने वाला पानी पीने लायक नहीं होता है। बस इसी का फायदा ये अवैध प्लांट संचालक उठा रहे हैं। शहर में सैकड़ों की संख्या में लोग बोरिंग करा कर प्लांट लगाये हैं और धड़ल्ले से पानी बेचा जा रहा है। जो सीधे अंडरग्राउंड वॉटर लेवल को नुकसान पहुंचा रहा है। लेकिन इस तरह से हो रहे जल दोहन पर सरकारी महकमा आंख बंद किये बैठा है।

इतना ही नहीं शुद्ध पानी के लिए आरओ प्लांट में 70 प्रतिशत पानी बर्बाद होता है। जल दोहन का सबसे बड़ा कारण बने अवैध आरओ प्लांट बिना परमीशन सिटी के कोने-कोने में फैल चुके हैं। इनके रजिस्ट्रेशन की बात की जाए तो किसी विभाग को नहीं पता कि इन्हें लाइसेंस कौन दे रहा है। सभी एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं।

कितना शुद्ध है आरओ वॉटर

पानी हर बीमारी का कारण बनता है। हेल्थ ठीक रखने के लिए ही लोग अब आरओ वॉटर को ही अपनी दिनचर्या में शामिल करते जा रहे हैं। लेकिन आरओ प्लांट से निकलकर घरों तक पहुंचने वाला पानी कितना शुद्ध है इसकी कोई जांच नहीं होती है। शहर में पनप चुके वॉटर सप्लायर्स आरओ तकनीक के नाम पर साधारण पानी को ही ठंडा कर गैलन से सप्लाई कर रहे हैं। साफ और ठंडे पानी की बढ़ती मांग को देखते हुए शहर के हर एरिया में घरों में आरओ प्लांट लगवाये गए हैं। इन प्लांटों से ख्0 लीटर के गैलन से पानी की सप्लाई की जाती है। इसके अलावा पानी के ग्लास, पाउच का भी निर्माण होता है।

बिना लाइसेंस करोड़ों का कारोबार

एक गैलन में ख्0 लीटर पानी आता है। इस एक गैलन की कीमत फ्0 से फ्भ् रुपये वसूली जाती है। महीने में 900 से क्ख्00 रुपये तक लिए जाते हैं। रोजाना हजारों की तादाद में पूरे शहर में वॉटर गैलन सप्लाई होती हैं। शहर में ख्भ्0 के आसपास आरओ वॉटर सप्लायर्स पनप चुके हैं। जो घरों में या कहीं और अवैध प्लांट लगाकर पानी की सप्लाई कर रहे हैं। एक प्लांट से डेली कम से कम ख्0 से भ्0 गैलन पानी की सप्लाई होती है। गर्मी में खपत दो से चार गुना हो जाती है। अगर आंकड़ों को देखा जाए तो एक प्लांट वाला एक दिन में पांच सौ से क्भ् सौ रुपये कमाता है। यानी रोजाना शहर में डेढ़ से तीन लाख रुपये का पानी का कारोबार हो रहा है। यानी महीने में लगभग दस लाख रुपये का पानी बिक रहा है। शादी समारोह में इसकी खपत दस गुना से भी ज्यादा हो जाती है। इस तरह से सालाना कारोबार ख्0-ख्भ् करोड़ से ऊपर का है।

न लाइसेंस, न रजिस्ट्रेशन

शहर में मौजूद ज्यादातर प्लांट्स का न तो कोई लाइसेंस है और न ही रजिस्ट्रेशन। नगर निगम का कहना है कि आरओ प्लांट लगाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड परमीशन देता है और वही इसके लिए रजिस्ट्रेशन करता है। जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि इसकी परमीशन उसकी ओर से नहीं दी जाती है। इसके लिए उद्योग विभाग जिम्मेदार है।

70 प्रतिशत जल भी है बेकार

आरओ प्लांट से फिल्टर होने के बाद जो 70 प्रतिशत पानी वेस्ट निकलता है वह किसी काम का नहीं रह जाता है। जल संरक्षण के एक्सपर्ट बताते हैं कि वेस्ट हुए पानी को अंडरग्राउंड रीचार्ज के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। मिट्टी में गढ्डा बनाकर उसमें फिल्टर लगाने के बाद ही उसे वापस जमीन में डालना चाहिए।

हमारी ओर से कोई परमीशन नहीं दी जाती है। इसके लिए प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड जिम्मेदार है।

अपर नगर आयुक्त, नगर निगम

आरओ प्लांट लगाने के लिए इंडस्ट्रीयल एरिया में ही परमीशन दी जाती है। इसके लिए खाद्य और उद्योग विभाग परमीशन देता है।

घनश्याम, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड

आरओ प्लांट में यूज होने वाला भूजल का 70 प्रतिशत पानी को फिल्टर के बाद नालियों में बहा दिया जाता है। जो किसी काम का नहीं रह जाता है। पानी के बर्बादी का सबसे बड़ा कारण यही है।

सजल कुमार, जल प्रहरी