-बीकापुर में नवजात के सिर के साथ मिली खून से सनी साड़ी और मिट्टी का पात्र नरबलि की कर रहे हैं पुष्टि

-श्मशान के बाशिंदों ने सूनी कोख हरी करने का लालच देकर कराया जघन्य अपराध

VARANASI

चौबेपुर थाना एरिया के बीकापुर में नवजात की बलि देने वाले कौन हैं यह तो अभी तक पता नहीं चल सका है लेकिन उनका मकसद क्या है इसका खुलासा जरूर हो गया है। खेत में गाड़े गए नवजात के सिर के साथ मिले पूजा पाठ और अन्य सामानों से जाहिर होता है कि यह करतूत किसी नि:संतान की है। जिसने अपनी कोख हरी करने के लिए किसी दूसरे की कोख सूनी कर दी। चंद घंटे पहले दुनिया में कदम रखने वाले नवजात का बेरहमी से कत्ल किया और उसके सिर को दफन कर दिया। हालात बताते हैं कि स्वार्थ में अंधे उस शख्स का ऐसा घिनौना कृत्य करने के लिए उकसाने और उसे अंजाम देने में मदद करने वाले भी हर कदम उसके साथ रहे।

मासूम के खून से नहाया भी

मासूम की बलि देने वालों ने हैवानियत की हद पार की है। इसका पता उस खून से सनी लाल साड़ी और खून से सनी मिट्टी की हांडी, चूडि़यों से चलता है जो नवजात के शव के पास मिली थी। किसी नि:संतान दम्पति को संतान दिलाने का दावा करने वाले अघोरी नरबलि के लिए उकसाते हैं। अघोरियों की रहस्यमय दुनिया के बाशिंदों की मानें तो रात के अंधियारे में सुनसान स्थान पर घंटों चलने वाली तांत्रिक क्रिया के दौरान नरबलि दी जाती है। इसमें फूल, माला, सिंदूर, आदि पूजा सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। जिसकी बलि दी जाती है उसके खून को मिट्टी के पात्र में जमा किया जाता है। इस खून से उस स्त्री को स्नान कराया जाता है जिसे संतान की चाहत है। इस दौरान वह मात्र एक लाल साड़ी में लिपटी होती है। शिव, शव और श्मशान के साधकों का दावा होता कि खून के छींटों से महिला की बंजर कोख हरी हो जाती है। बीकापुर में मिले नवजात के शव के पास पूजा पाठ के सामान संग खून से सनी लाल साड़ी और मिट्टी का पात्र गवाही देते हैं कि नवजात की बलि के बाद उसके खून से किसी महिला ने स्नान किया है। इसके बाद महिला के बदन पर मौजूद सभी कुछ को नवजात के सिर के साथ दफन कर दिया गया। किसी स्थान पर बलि दी गयी इसकी जानकारी नहीं हो सकी है। नवजात का धड़ अभी तक बरामद नहीं हुआ है। इससे आशंका प्रबल होती है कि उसका इस्तेमाल भी तंत्र साधन के लिए किया गया है। तांत्रिक साधना करने वाले शव को अपने आराध्य को भोग के रूप में अर्पित करने के बाद प्रसाद के रूप में उसे ग्रहण करते हैं।

अघोरियों का बसेरा है बनारस

नरबलि का मामला बनारस में नया नहीं है। पहले भी कई बार नरबलि के मामले सामने आए हैं। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में। महाश्मशान के नाम से भी दुनिया में पहचाने जाने वाले बनारस में दो महाश्मशान मौजूद हैं। सदियों ने इनके चिता की अग्नि शांत नहीं हुई। इन महाश्मशान में ही सैकड़ों अघोरियों का बसेरा है। शैव सम्प्रदाय के अघोर शाखा से ताल्लुक रहने वाले शिव और शक्ति के उपासक साधना के जरिए अदृश्य और अपार शक्ति हासिल करने की हरसत लिए रहते हैं। तंत्र साधना के तहत ही शिव, शव और श्मशान की साधना करते हैं। बदन पर कफन ओढ़ने वाले अघोरी मानते हैं कि नरबलि से हर इच्छा पूरी हो सकती है। शहर में पढ़े-लिखे लोगों के बीच उनकी बातों पर कोई यकीन नहीं करता है। यह गांव के सीधे-साधे लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। बदले में काफी रुपये और सांसारिक सुख प्राप्त कर रहे हैं। अदृश्य शक्तियों से धारक माने जाने वाले अघोरियों के भय से इनके खिलाफ कोई पुलिस में शिकायत नहीं करता है। इसके चलते उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है और यह लालच और भय के बल पर मौत का नंगा नाच कर रहे हैं।