-14 अगस्त 1947 को आधी रात में आजादी की घोषणा होते घर से बाहर निकल पड़े थे लोग

-कुछ ही देर में ठसाठस हो गया था टाउन हॉल व आसपास का एरिया, चितरंजन पार्क से मशाल जुलूस लेकर पहुंचे थे कांग्रेस कार्यकर्ता

-पार्किंग निर्माण के चलते हटाया गया शहीद स्तंभ, परंपरा पर संकट के बादल

आजादी की लड़ाई में बनारस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही। यहां से पूरे देश में मूवमेंट चलाया जा रहा था। और यहां के लोगों ने आजादी के जंग में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। यहां तक कि महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद जहां बनारस से चल रहे आंदोलन को धार देते रहे वहीं लाल बहादुर शास्त्री, पं। मदन मोहन मालवीय, शिव प्रसाद गुप्त सहित अनगिनत लोग काशी में चल रहे आंदोलन से सीधे जुड़े रहे। जिस दिन देश को आजाद करने की घोषणा हुई उस दिन का नजारा तो सबसे अलग रहा।

14 अगस्त 1947 की आधी रात में 12.1 बजे जैसे ही घोषणा हुई वैसे ही लोग घरों से बाहर निकल पड़े। हर कोई टाउनहाल की ओर बढ़ चला था। देश भक्ति की धुन और गगनभेदी नारों से गलियां गुंजायमान हो गयी थीं। आजाद भारत के लोग हाथों में मशाल लिए जश्न मनाने के लिए मैदागिन की ओर रुख कर दिए थे। आलम यह कि कुछ ही देर में वहां तिल रखने की जगह नहीं बची थी। वहीं रामनगर में भी जश्न का माहौल रहा।

पूरी रात मना था जश्न

आजादी मिलने की खुशी का आलम यह था कि टाउनहाल मैदान से लेकर चेतगंज, गोदौलिया, मैदागिन सहित आसपास के एरिया में ठसाठस भीड़ रही। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व हेड प्रो। सतीश राय ने बताया कि उस दिन पूरे जिले में जगह जगह जश्न मनाया गया। इसके चलते विभिन्न जगहों पर तिल रखने की जगह नहीं बची थी। लोग अपनी जगह से एक इंच भी हिल नहीं पा रहे थे। जश्न मनाने की दिवानगी ऐसी कि आंखों से नींद गायब हो गयी थी। पूरी रात लोग जगे हुए थे। इनमें जवान क्या बुजुर्ग, सभी के चेहरे पर देश के आजाद होने की चमक साफ झलक रही थी।

पहले ही पहुंच गए थे लोग

यूं तो देश को स्वतंत्रता मिलने की आहट लोगों को दिन में ही लग गयी थी। जिसका नतीजा रहा कि घोषणा होने से पहले ही बड़ी संख्या में लोग टाउनहॉल के लिए निकल पड़े थे। प्रो। सतीश राय ने बताया कि तत्कालीन कांग्रेस कार्यालय पर दिन से ही लोगों के पहुंचने का क्रम शुरू हो गया था। उल्लास ऐसा कि देर रात तक कार्यालय सहित आसपास के एरिया में हर तरफ सिर ही सिर दिखायी दे रहे थे।

याद में बनाया गया स्तंभ

सन् 1932 में अंग्रेजी पुलिस की गोली से तीन लोग शहीद हो गए थे। उनकी याद में मैदागिन स्थित टाउनहॉल मैदान में शहीद स्तंभ का निर्माण कराया गया। इस स्तंभ तक हर साल कांग्रेस के कार्यकर्ता गोदौलिया स्थित चितरंजन पार्क से आधी रात में मशाल जुलूस निकालकर पहुंचते हैं। वहीं अगले दिन शहीद स्तंभ पर कांग्रेस के लोग तिरंगा झंडा फहराते हैं। लेकिन इस साल मैदान में पार्किंग का निर्माण होने के चलते स्तंभ को हटा दिया गया है। ऐसे में हर साल निकलने वाला मशाल जुलूस स्तंभ तक नहीं पहुंच पाएगा। बता दें कि चितरंजन पार्क में 13 अगस्त 1942 में पुलिस की गोली से सात लोग शहीद हो गए थे।

पूर्व प्रधानमंत्री से राजपरिवार तक

आजादी के जंग में रामनगर की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। रामनगर निवासी पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी आजादी में बड़ा योगदान रहा है। कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा। इस बीच उन्हें जेले में यातनाएं भी मिली, लेकिन आजादी की लड़ाई में वे पीछे नहीं हटे। भारत आजाद होने के बाद वो अक्सर रामनगर आते थे तो यहां भी झंडा फहराते थे। वहीं काशी नरेश डॉ। विभूति नारायण सिंह ने 15 अगस्त 1947 को रामनगर किला के झंडा गेट पर तिरंगा फहराया था। इसके बाद आजादी का जश्न पूरे जोश ओ खरोस के साथ मनाया गया था। इसके बाद बतौर मुख्य अतिथि काशी नरेश हर 15 अगस्त को झंड़ा फहराने के कार्यक्रमों में जाते थे। सन् 1978 के बाद किसी कारण झंडा फहराने के कार्यक्रम में विराम लग गया। 2001 से राजपरिवार के अनंत नारायण सिंह ने झंड़ा फहराने की पुरानी परंपरा को शुरू किया।