डेढ़ बजे दोपहर में हुए इस एक्सिडेंट के बाद चीख पुकार और शोर, हर ओर बस ऐसा ही मंजर था। कहीं चप्पलें पड़ी थी तो कहीं किसी की चादर, ट्रेन की पलट चुकी बोगियों के नीचे लोगों के दबे हाथ और शरीर के अन्य अंग इस दर्दनाक हादसे की हकीकत बयान कर रहे थे। हावड़ा से चलकर देहरादून को जा रही दून एक्सप्रेस के मेहरांवां के पास बेपटरी हो जाने के बाद नजारा कुछ ऐसा ही था। दोपहर में बनारस कैंट स्टेशन से चलने के बाद ट्रेन लगभग डेढ़ बजे जौनपुर के मेहरांवां स्टेशन से गुजरी। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि ट्रेन की स्पीड लगभग 90 किमी प्रतिघंटे रही होगी। रेलवे फाटक बंद था इसलिए लोग ट्रेन के आगे गुजर जाने का वेट कर रहे थे।

और हुआ तेज धमाका

ट्रेन मेहरांवां रेलवे स्टेशन से होते हुए रेलवे फाटक से ज्यों ही निकली बंद फाटक खुलने लगा। लोग अपनी गाडिय़ां लेकर निकलने के बारे में सोच ही रहे थे तभी तेज धमाके की आवाज ने लोगों को शॉक्ड कर दिया। जबतक क्रॉसिंग पर मौजूद लोग कुछ समझ पाते तब तक लोगों के सामने धूल का गुबार था। धूल की गुबार छटने का इंतजार कर रहे लोग हुआ क्या है ये जानने के लिए क्रॉसिंग के आगे बढ़े। मौके पर मौजूद लोगों का कहना था कि दून एक्सप्रेस के स्लीपर कोच एस 4, एस 5, एस 6, एस 7 और एस 8 एक एक करके पटरी से हटकर नीचे की ओर लुढ़क रहे थे। लुढ़कते डिब्बों में अंदर बैठे लोगों की चीख पुकार से आस पास का माहौल दहल गया था।

आठ डिब्बे जमीन पर

देखते ही देखते दून एक्सप्रेस के आठ डिब्बे पटरी को छोड़कर जमीन पर पहुंच गए। एस 4 से लेकर एक 8 तक के पांच डिब्बे जमीन पटरी से जमीन पर पलट गए थे जबकि एस 9 से एस 11 तक के डिब्बे डिरेल्ड होकर जमीन पर खड़े हो गए। ट्रेन के रुकते ही पूरे इलाके में हड़कंप मच गया। बोगियों के पहिए और रेलवे ट्रैक मेहरांवां स्टेशन के आसपास कुछ इस तरह से फैले थे जैसे कोई जलजला अभी अभी यहां से गुजरा हो। ट्रेन के आठ डिब्बों के बेपटरी होने की सूचना पर मौके पर आस पास के लोगों का बड़ा हुजूम जमा होने लगा। पब्लिक ने मदद को हाथ आगे बढ़ाया और दुघर्टनाग्रस्त हो चुकी ट्रेन में फंसे लोगों को अंदर से निकालने का काम शुरू किया।

छह लाशों को मिली गठरी

इंसान को मौत के बाद हमेशा चार कंधों की दरकार होती है लेकिन दून एक्सप्रेस हादसे में जिन छह लोगों की मौत हुई है उनको कंधे तो नहीं बल्कि चादर की गठरी जरुर मिली। ट्रेन के पांच कोच के पलटने के कारण इनमे सवार लोग बोगियों के नीचे कुछ इस तरह से दबे की उनकी लाशों को निकलने के लिए कसाइयों को बुलवाना पड़ा। सूचना के घंटों बाद भी रेलवे की ओर से कोई गैस कटर न पहुंचने से लाशों को बोगियों के नीचे से खींचकर निकालने के बाद उनकी हालत बुरी तरह से बिगड़ गई थी। किसी का सिर अंदर फंसा था तो किसी की पूरी बॉडी ही आधी हो गई थी। घटना में मृतक लोगों की शिनाख्त नहीं हो सकी है जबकि हादसे में घायल लोगों को वाराणसी सहित जौनपुर के जिला अस्पताल में भर्ती किया गया है।

मौके पर पहुंचा पूरा महकमा

हादसे की सूचना मिलते ही रेलवे के साथ साथ पूरा जिला प्रशासन भी फास्ट हो गया। बनारस से डीआईजी ए गणेश के साथ कमिश्नर चंचल कुमार तिवारी, एनईआर के डीआरएम ललित कपूर मौके पर पहुंचे जबकि जौनपुर के डीएम डॉ बलकार सिंह ने पहले से ही मोर्चा संभाल रखा था। डॉ बलकार सिंह के मुताबिक ये घटना बहुत दर्दनाक है और कैसे घटी ये जांच का विषय है। फिलहाल सभी घायलों का इलाज जारी है और मृतकों की बॉडी को जौनपुर के जिला अस्पताल की मरचरी में उनके परिजनों द्वारा शिनाख्त के लिए रखवा दिया गया है।

आसमान में छा गया धूल का गुबार

पलटी हुई बोगियों के ज्यादातर पैसेंजर्स अपने होश खो बैठे थे। जो बेहोश थे वे हालात को समझ तो रहे थे पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे। मेहरांवां स्टेशन के पास रेलवे क्रॉसिंग से सटी एक चाय की दुकान पर टाइम पास कर रहे तीन युवकों ने सामने ट्रैक पर गुजरती हुई दून एक्सप्रेस की आखिरी बोगी में कुछ धमाके की आवाज सुनी। पहले तो उन्हें लगा कि शायद ट्रैक चेंज करने की कोई आवाज हो। फिर उन्हें याद आया कि अरे, अपने यहां तो सिंगल ट्रैक है। फिर उन्होंने देखा कि आसमान में धूल का गुबार सा उठा है। कम से कम एक किलोमीटर दूर से आ रही चीख पुकार भी सुनाई देने लगी। जब तक कोई कुछ समझ पाता मेहरांवां का नौजवान राजेश सिंह का सिक्स्थ सेंस जाग चुका था। वह चीख पड़ा अरे, गाड़ी पलट गयी है दौड़ो।

चारो तरफ मची थी चीख पुकार

इसके बाद तो जैसे राजेश और उसके दोनों दोस्तों धनंजय सिंह और विकास सिंह में आसमानी ताकत उतर आयी हो। वे तीनों ट्रैक दौड़ पड़े। वे पूरी ताकत से चिल्लाते हुए जा रहे थे और आसपास के लोगों को मदद के लिए बुला रहे थे। जब तक बाकी के और लोग जमा होते वे तीनों वहां पहुंच कर अपने दम पर राहत कार्य शुरु कर चुके थे। पलटी बोगी की छत पर चढ़ कर सबसे पहले उसमें उतरे राजेश सिंह। उसने बिना घबराये एक एक कर लोगों को बाहर निकालना शुरु किया। धनंजय सिंह ने अपने भतीजे विकास की मदद से मुक्का मार कर बोगी के शीशे तोड़ डाले। इससे उनके खुद के हाथ लहूलुहान हो गये लेकिन जाबांजों ने हिम्मत नहीं हारी। संयोग से तीनों के पास अपना मोबाइल था। उन्होंने अपने ढेर सारे दोस्तों को कॉल कर बुलाया। फिर क्या था वहां मददगारों की भीड़ जुट गयी। सबने मिल कर मां से बिछड़े बच्चों को मिलाया तो भाई बहन को साथ ले आए। बेसहारा बुजुर्गों को सहारा दिया अलग से।

और भी थे शूरवीर

असहाय लोगों की मदद करने वालों में खेतसराय के शांतिभूषण मिश्र व मनरापुर के सुभाष यादव का नाम भी शामिल है। घटना की जानकारी होते ही शांतिभूषण कुछ ही देर में मौके पर पहुंच गए। अपने साथियों के जज्बे को देख वह भी लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने में लग गया। कोचेज में फंसे सभी लोग जब तक बाहर नहीं निकल गए तब तक वह जुटा रहा। उधर धनंजय की कॉल पर पहुंचा सुभाष यादव भी बिना लेट किए उसका हाथ बंटाने लगा। यही नहीं उसने डीएम को फोन कर हादसे की जानकारी दी।

शरारत नहीं हादसा है

मौके पर पहुंचे एनईआर वाराणसी डिवीजन के डीआरएम ललित कपूर ने मीडिया के सवालों का गोलमोल जवाब दिया। अचानक एक्सिडेंट के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह जांच के बाद ही साफ होगा कि किन परिस्थितियों में ट्रेन के पांच कोच पलट गए और तीन डिरेल्ड हो गए। इसके कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है। जांच स्टार्ट हो गयी है, रिपोर्ट मिलने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। डीआरएम ने तोडफ़ोड़ की किसी भी संभावना से इंकार किया है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि ट्रेन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी। तभी अचानक कोचेज ट्रैक से तेज आवाज के साथ डिरेल्ड हो गए। ट्रैक के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी तो सामान्य ढंग से चल रही ट्रेन का अचानक ट्रैक से नीचे उतर जाना किसी के समझ से परे है। ट्रेन हादसे के पीछे कहीं आतंकी तत्वों और तोडफ़ोड़ में लिप्त लोगों का हाथ तो नहीं है। इसके जवाब में डीआरएम ने कहा कि अभी मैं इसपर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। जब तक पूरे मामले की इंक्वायरी नहीं हो जाती तब तक इसपर कुछ बोलना उचित नहीं होगा।