- भारतीय सेना को मिले 64 गोरखा जांबाज
- वाराणसी के जीटीसी में जवानों ने देश के लिए बलिदान की ली शपथ
43
सप्ताह की कठिन ट्रेनिंग
39
जीटीसी ग्राउंड में गुजरना पड़ा
शुक्रवार को वाराणसी छावनी क्षेत्र स्थित 39-गोरखा ट्रेनिंग सेंटर (जीटीसी) में 64 रंगरूट भारतीय सेना का अभिन्न हिस्सा बने। भारतीय सेना का हिस्सा बने रंगरूटों ने पासिंग आउट परेड से 43 सप्ताह के कठिन ट्रेनिंग के दौर से 39 जीटीसी ग्राउंड में गुजरना पड़ा। इस दौरान उन्होंने यह सीखा कि विषम परिस्थितियों में भी रहकर वह देश के लिए ही जिएंगे और मरेंगे। वे दुश्मन देश के सामने कभी सिर नहीं झुकाएंगे और भारत भूमि की रक्षा के लिए जरूरत पड़ी तो हंसते हुए शहीद हो जाएंगे। गोरखा रेजीमेंट के पाइप बैंड की धुन के बीच पासिंग आउट परेड के बाद रंगरूट स्मृति धाम पहुंचे और शहीदों को श्रद्धांजलि दी। वहीं रंगरूटों को बधाई देते हुए ब्रिगेडियर हुकुम सिंह बैंसला (सेना मेडल) ने कहा कि एक सैनिक को हमेशा अनुशासन, अपनी फिटनेस और शस्त्र के ठीक से रखरखाव पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। विपरीत परिस्थिति में भी हौसला बुलंद रखना चाहिए और देशभक्ति के जज्बे से ओतप्रोत रहना ही उसकी ताकत होती है। अच्छी शिक्षा ग्रहण करने और रोजाना कुछ नया सीखने की ललक ही उसे आगे लेकर जाती है। पासिंग आउट परेड कार्यक्रम में एनसीसी कैडेट्स, विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राएं, सेना के अफसर और रंगरूटों के परिजन मौजूद रहे।
इस दौरान रंगरूटों ने पवित्र ग्रंथ गीता पर हाथ रखकर भारतीय संविधान में आस्था रखने, देशभक्ति और भारतीय सेना में कर्तव्यनिष्ठा से सेवा करने का संकल्प लिया। परेड के बाद गोरखा जवानों को उनका परंपरागत हथियार खुखरी भेंट किया गया। रंगरूटों के परेड की सलामी ट्रेनिंग सेंटर के कमांडिंग ऑफिसर ब्रिगेडियर हुकुम सिंह बैंसला (सेना मेडल) ने ली। समारोह में कोविड-19 की गाइडलाइन का पूरी तरह से पालन किया गया।
जीटीसी ग्राउंड में जवानों के शपथ लेने का अंदाज भी अनूठा था। जवानों ने कहा: जब कभी भी जमीन, हवा और पानी के रास्ते भेजा जाएगा, जाऊंगा। भारतीय संघ के अधिनायक और सेना के उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन करूंगा। चाहे इसके लिए जीवन की ही न क्यों कुरबानी देनी पड़े, इसके लिए कभी पीछे नहीं हटूंगा।
69 साल पुराना है इतिहास
39 जीटीसी के अफसरों के अनुसार साल 1952 से पहले गोरखा के दो राइफल्स प्रशिक्षण केंद्र थे। 1 अक्टूबर 1952 को दोनों केंद्र को मिलाकर एक कर दिया गया और इस तरह से 39 जीटीसी की नींव पड़ी। उस दौरान 39 जीटीसी का प्रशिक्षण केंद्र देहरादून के बीरपुर में था। 1 जनवरी 1976 को बीरपुर से वाराणसी स्थानांतरित कर दिया गया। उसी वक्त से यहां गोरखा जवानों को प्रशिक्षित कर भारतीय सेना के लिए तैयार किया जाता है।
परेड के बाद यह रंगरूट हुए पुरस्कृत
- बेस्ट इन कॉम्बैट आब्स्टेकल कोर्स/ले। कपाडि़या ट्रॉफी: नवराज सलामी
- बेस्ट इन ड्रिल: सुरेंद्र गुरुंग
- बेस्ट इन टैक्टिक्स/आल राउंड बेस्ट की गौरव तलवार: देउका गुरुंग
- बेस्ट इन बैटल फिजिकल इफिशिएंसी टेस्ट: राजेंद्र बंधु चपागई
- बेस्ट इन फायरिंग: विमल शर्मा
- बेस्ट इन बेनेट एंड खुखरी फाइटिंग: सुजन लोददारी
- ले। जनरल एमके लाहरी मेडल फॉर सेकेंड ऑल राउंड ट्रेनी: पुष्पल चिडी