-हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से भी मांगा जवाब

-निदेशक प्रारंभिक शिक्षा और चंपावत के डीएम को भी नोटिस

नैनीताल: राज्य में हो रहे बाल विवाह और कम उम्र में लड़कियों के मां बनने के बढ़ते आंकड़ों पर हाई कोर्ट ने चिंता जताई है और इस मामले में राज्य के साथ साथ केंद्र सरकार से भी जावाब तलब किया है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने निदेशक प्रारंभिक शिक्षा तथा जिलाधिकारी चम्पावत से भी तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है।

याचिका पर हुई सुनवाई

सोमवार को मुख्य न्यायाधीश केएम जोसफ व न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ के समक्ष नैनीताल निवासी चंपा उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में ह्यूमन लॉ नेटवर्क की ओर से जनवरी-2016 में किए गए सर्वे में आए तथ्यों को आधार बनाया गया है। याचिका में कहा गया है कि कानून होने के बावजूद राज्य सरकार इसे रोकने में नाकाम रही है।

बालिकाओं का भविष्य हो रहा बर्बाद

याचिका में कहा गया है कि बालिकाओं की शिक्षा आधे में रोककर विवाह कराने का क्रम जारी है। राज्य में 39 फीसद विवाहित लड़कियां 15 से 19 साल की आयु में बच्चों को जन्म दे रही हैं। अकेले पिथौरागढ़ जिले में यह आंकड़ा 43.01 फीसद व चम्पावत में 39.3 फीसद है। बाल विवाह की वजह से बेटियों की शिक्षा तो प्रभावित हो ही रही है, कम उम्र में मां बनने से उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है। याचिका में कहा गया है कि बाल विवाह अधिनियम-2006 का क्रियान्वयन न होने से बालिकाओं के स्कूल छोड़ने पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उत्तराखंड के किसी भी जिले में बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई है। यही नहीं, राज्य में विवाह पंजीकरण को अनिवार्य रूप से लागू तक नहीं किया जा रहा है। मामले में अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी।

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डराने वाले हैं आंकड़े

-39 प्रतिशत विवाहित लड़कियां अल्पआयु में बन रही हैं मां

-15 से 19 साल की लड़कियां बन रही हैं मां

-43.01 प्रतिशत आंकड़ा सबसे ज्यादा पिथौरागढ़ जिले का

-39.3 फीसदी बाल विवाह हो रहे हैं चंपावत में